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बाड़मेर जिला
पंचायत समिति बाड़मेर की भूजल स्थिति
Posted on 16 Nov, 2015 01:02 PMपंचायत समिति, बाड़मेर (जिला बाड़मेर) सुरक्षित श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा बाड़मेर जिले में 13692 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 11502 मिलियन घनमीटर हो गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
अब मरुधरा में छलकेगा अमृत
Posted on 02 Nov, 2012 03:30 PMराजस्थान में जहां पारंपरिक जलस्रोतों का जीर्णोद्धार हुआ है वहीं, वृहद, मध्यम एवं लघु पेयजल परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से लोगों को पेयजल उपलब्ध हुआ है। सरकार ने 23 महत्वपूर्ण परियोजनाओं की घोषणा की है।प्रदेश में जहां पारंपरिक जलस्रोतों का जीर्णोद्धार हुआ है। वहीं वृहद, मध्यम एवं लघु पेयजल परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से लोगों को पेयजल उपलब्ध हुआ है। पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थल की गोद में बसे बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में पेयजल परियोजनाओं ने इस क्षेत्र की प्यास बुझाने के साथ ही यहां विकास के नए द्वार खोले हैं। राजस्थान जैसे वृहद राज्य में कठिन भौगोलिक परिस्थितियां और पानी की कमी के बावजूद यहां के जनजीवन में कभी भी मायूसी का माहौल नहीं रहा। यहां कि महिलाएं सिर पर मटकी रखे मीलों चलकर पानी लाती रही हैं। पानी के लिए यहां के लोग सदैव ही इंद्रदेव की मेहरबानी के लिए दुआएं करते रहे हैं। इतने बड़े राज्य में देश में उपलब्ध पानी का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा ही मौजूद है। ऐसे में पानी के महत्व को मरुधरा के लोगों से बेहतर कौन जान सकता है लेकिन समय बदलने के साथ ही पेयजल का परिदृश्य भी बदलने लगा है।
धोरों की धरती पर हिमधारा
Posted on 29 Sep, 2012 04:16 PM ‘बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना’ यानी ‘राजीव लिफ्ट पेयजल परियोजना’ से पहली बार जिले के लोगों का मीठा पाबाड़मेर में ग्रामीणों ने किया पानी का बंटवारा
Posted on 28 Apr, 2011 10:20 AMप्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि पानी को लेकर होने वाले झगड़ों को रोकने के लिए पानी का बंटवारा
पेड़ नहीं घास बचाएगी रेगिस्तानीकरण से
Posted on 14 Sep, 2010 09:57 AMभारत का विशाल रेगिस्तान ‘थार‘ फैलता ही जा रहा है और यह प्रतिवर्ष करीब 12000 हेक्टेयर उपयोगी भूमि को या तो निगल रहा है या उसे खराब कर रहा है। इससे सचेत होकर राजस्थान सरकार ने राज्य प्रदूषण निवारण बोर्ड से पूछा है कि भूमि को खराब होने और भू क्षरण से कैसे रोका जा सकता है। बोर्ड द्वारा सूखी धरती पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित 200 शोध पत्रों के अध्ययन के पश्चात यह सुझाव दिया गया कि राज्य में व्यापक स्तर पर पेड़ों की बागड़ लगाई जाए। परंतु कुछ वैज्ञानिकों को डर है कि यह कदम रेगिस्तान के संवेदनशील पर्यावरण को और अधिक बिगाड़ेगा। हड़बड़ी में किया गया कार्य कभी-कभी अच्छी भावना से किए गए कार्य को भी संदेह के घेरे में ले आता है। राजस्थान में रेगिस्तानीकरण को रोकने के लिए पेड़ों की बागड़ का विचार भी ऐसा ही एक कदम है। आवश्यकता इस बात की है कि पारंपरिक ज्ञान का सहारा लेकर और भूजल आधारित खेती को समाप्त कर रेगिस्तानीकरण रोकने की नई रणनीति बनाई जाए।भारत का विशाल रेगिस्तान ‘थार‘ फैलता ही जा रहा है और यह प्रतिवर्ष करीब 12000 हेक्टेयर उपयोगी भूमि को या तो निगल रहा है या उसे खराब कर रहा है। इससे सचेत होकर राजस्थान सरकार ने राज्य प्रदूषण निवारण बोर्ड से पूछा है कि भूमि को खराब होने और भू क्षरण से कैसे रोका जा सकता है। बोर्ड द्वारा सूखी धरती पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित 200 शोध पत्रों के अध्ययन के पश्चात यह सुझाव दिया गया कि
कैसा जमाना आया, पानी बिक रहा है
Posted on 23 Dec, 2009 09:45 AM-दिलीप बीदावत
पानी कितना अमूल्य धरोहर है, यह बात तो मरू वासियों के जहन में सदियों से बैठी हुई है। लेकिन अपनी प्यास बुझाने के लिये पानी का भारी मूल्य चुकाना पड़ेगा, यह कभी यहां के लोगों ने सोचा नहीं था। पानी की एक-एक बूंद के लिये मोहताज थार के रेगिस्तान में पानी के करोड़ों के कारोबार का कथन अविश्वसनीय लग सकता है, किंतु यह बात सत्य है।
सूखे के लिए तैयार परियोजना की अकाल मौत
Posted on 17 Oct, 2009 10:13 AM
बाड़मेर। ‘‘यह बारिश नहीं बरसेगी। कहीं और जाकर बरसेगी। शायद बाड़मेर, शायद जोधपुर, जयपुर, या उससे भी आगे दिल्ली। बारिश, फिर दगा दे गई।’’
अकाल पर सुकाल का टांका
Posted on 28 Aug, 2009 05:15 PM
पश्चिमी राजस्थान के थार में बीते सालों के मुकाबले इस साल सूखे की छाया ज्यादा काली है। इसके बावजूद गीले रहने की परंपरागत कलाओं से तरबतर कुछ गांवों में पानी की कुल मांग में से 40 प्रतिशत तक फसल उगाने की जुगत जारी है। बायतु, बाड़मेर से सुखद समाचार लेकर लौटे शिरीष खरे की रिपोर्ट -
थार का अकाल
Posted on 25 Aug, 2009 04:00 PMथार में फिर अकाल के हालात बन पड़े हैं- इस समय की सबसे खतरनाक पंक्ति को सवाल की तरह कहा जाना चाहिए. दरअसल अकाल को बरसात से जोड़कर देखा जाता है और राजस्थान के अकालग्रस्त जिलों से लेकर जयपुर या दिल्ली तक नेताओं, अफसरों और जनता के बड़े तबके तक यही समझ बनी हुई है. कुछ तो जानबूझकर और कुछ मजबूरी में.