‘बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना’ यानी ‘राजीव लिफ्ट पेयजल परियोजना’ से पहली बार जिले के लोगों का मीठा पानी पीने का ख्वाब साकार हो सका। कहने का आशय यह है कि अब बाड़मेर जिले के लोग इंदिरा गांधी नहर के मीठे पानी से अपनी प्यास बुझा सकेंगे क्योंकि इसी नहर से नई परियोजना को जोड़ा गया है। सोनिया गांधी ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए उम्मीद जाहिर की है कि इस पेयजल परियोजना से मरुभूमि की सदियों की समस्या खत्म हो सकेगी। थार की सदियों से प्यासी मरुधरा के लिए 30 अगस्त का दिन स्वर्णिम एवं ऐतिहासिक कहा जा सकता है जब थार के द्वार हिमालय का जल पहुंचा और सृजन का एक नया इतिहास रचा गया। मीलों तक पसरे रेत के इस समंदर में बूंद-बूंद पानी का मोल यहां के बाशिंदों के सिवाय कौन जान सकता है जो सदियों से न जाने कितनी ही कठिनाइयों से पानी को संजोकर रखते आ रहे हैं। बेरियों, बेरों, नाड़ियों और टांकों से लेकर आज के नवीन स्रोत और संसाधन देखने वालों के लिए यह कल्पना से परे था कि हिमालय का पानी कभी उनके आंगन तक भी पहुंच जाएगा। ऐसे में यह राजस्थान सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और भगीरथ प्रयासों का ही परिणाम है कि आज हिमालय का पानी मरुस्थल पहुंचकर लोगों की प्यास बुझाने के काम आ सका है। राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिले के लिए वह दिन यादगार रहेगा जब यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी ने ‘बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना’ यानी ‘राजीव लिफ्ट पेयजल परियोजना’ की शुरुआत की।
इस परियोजना से पहली बार जिले के लोगों का मीठा पानी पीने का ख्वाब साकार हो सका। कहने का आशय यह है कि अब बाड़मेर जिले के लोग इंदिरा गांधी नहर के मीठे पानी से अपनी प्यास बुझा सकेंगे क्योंकि इसी नहर से नई परियोजना को जोड़ा गया है। सोनिया गांधी ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए उम्मीद जाहिर की है कि इस पेयजल परियोजना से मरुभूमि की सदियों की समस्या खत्म हो सकेगी। राजस्थान में पेयजल प्रबंधन का स्वर्णिम इतिहास रचने वाली इस योजना का सूत्रपात दरअसल, 7 फरवरी 2003 को हुआ जब प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ तथा बाड़मेर शहर में इसका शिलान्यास किया था। उस समय इसके लिए 424.91 करोड़ रुपए की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई थी लेकिन अब तक लगभग 688 करोड़ रुपए की धनराशि व्यय हो चुकी है। इस तरह काफी वर्षों के मशक्कत और परिश्रम के बाद अब जाकर यह काम धरातल पर फलीभूत हुआ है।
राजस्थान सरकार के अधिकारियों के अनुसार, ‘बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना’ के पहले चरण में बाड़मेर और जैसलमेर जिले के करीब छह लाख लोगों को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की जाएगी। मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा है कि आने वाले वर्षों में बाड़मेर और जैसलमेर के और इलाकों को इस पेयजल योजना से जोड़ जाएगा। बाड़मेर शहर तक पानी पहुंचाने के लिए इंदिरा गांधी मुख्य नहर से मोहनगढ़ होते हुए बाड़मेर शहर के बीच करीब 196 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई गई है। इससे न सिर्फ बाड़मेर बल्कि आसपास के लगभग 74 गांवों को भी शुद्ध एवं मीठा पानी मिल सकेगा। इसके अलावा उत्तरलाई स्थित एयरफोर्स स्टेशन, जैसलमेर स्थित डिफेंस लैब, भारत-पाक सीमा पर तैनात बीएसएफ जवानों, शिव तहसील के 27 और रामसर तहसील के 9 गांवों को भी पानी मिलेगा।
बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना से कुल 529 गांवों को लाभ पहुंचाने की बात है। इनमें विधानसभावार स्वीकृत गांवों में बायतु में 151, सिवाना में 2, पचपदरा में 3 तथा बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र के सभी 211 गांव स्वीकृत हैं। इसी प्रकार क्लस्टर में स्वीकृत गांवों में बायतु विधानसभा क्षेत्र के 145, सिवाना का एक, पचपदरा के तीन तथा बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र के 90 गांव स्वीकृत हैं। जानकार बताते हैं कि वर्ष 2036 जब क्षेत्र की आबादी 15.64 लाख के करीब पहुंच जाएगी, उसे देखते हुए इलाके में पेयजल की आपूर्ति को बढ़ाना जरूरी हो जाएगा। फिलहाल, सरकार ने बाड़मेर और आसपास के जिलों में लगभग 38,450 लाख लीटर क्षमता वाले तालाबों का कराया है। इनमें करीब 21 दिनों का पानी संरक्षित किया जा सकेगा। अधिकारियों ने बताया है कि 1,720 लाख लीटर क्षमता के एक फिल्टर प्लांट का भी निर्माण कराया गया है इसके साथ ही मोहनगढ़ और नजदीक के भागू गांव में पंप स्थापित किए गए हैं। इन पंपों से बाड़मेर तक शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा सकेगा।
परियोजना के पहले चरण में ढांचागत विकास पर ज्यादा जोर दिया गया है। जबकि 979.75 करोड़ रुपए के दूसरे चरण का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना के द्वितीय चरण में विभिन्न क्षेत्रों को पेयजल से लाभान्वित किया जाएगा। इसके लिए क्लस्टर पार्ट-ए व बी निर्धारित है। क्लस्टर पार्ट-ए के अंतर्गत भाड़का-चोखला-बांदरा परियोजना से कुल 172 गांव लाभांवित होंगे। इनमें तहसील बायतु के 128, बाड़मेर के 40, पचपदरा के तीन तथा सिवाना का एक गांव शामिल है। इस योजना के लिए 202.36 करोड़ का कार्य आवंटित किया जा चुका है। इसी प्राकर क्लस्टर पार्ट-बी के अंतर्गत बाड़मेर तहसील के 67 गांवों के लिए निविदाएं प्रक्रियाधीन हैं जबकि शेष 239 गांवों के लिए सर्वे का कार्य प्रगति पर है।
थार मरुभूमि में पेयजल की समस्या सदियों पुरानी है। यहां के सुदूर ग्रामीण इलाकों की महिलाएं एक दिन में कई-कई बार सात से आट किलोमटीर चलकर पानी लाती रही हैं। बदले में अगर उन्हें कुछ मिली है तो सिर्फ बीमारी क्योंकि रेगिस्तान का पानी न सिर्फ खारा है बल्कि उसमें फ्लोराइड की मात्रा भी अत्यधिक है। ऐसे में बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना निःसंदेह रेगिस्तान की तपती भूमि पर मीठी फुहार की तरह आई है।
इस परियोजना से पहली बार जिले के लोगों का मीठा पानी पीने का ख्वाब साकार हो सका। कहने का आशय यह है कि अब बाड़मेर जिले के लोग इंदिरा गांधी नहर के मीठे पानी से अपनी प्यास बुझा सकेंगे क्योंकि इसी नहर से नई परियोजना को जोड़ा गया है। सोनिया गांधी ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए उम्मीद जाहिर की है कि इस पेयजल परियोजना से मरुभूमि की सदियों की समस्या खत्म हो सकेगी। राजस्थान में पेयजल प्रबंधन का स्वर्णिम इतिहास रचने वाली इस योजना का सूत्रपात दरअसल, 7 फरवरी 2003 को हुआ जब प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ तथा बाड़मेर शहर में इसका शिलान्यास किया था। उस समय इसके लिए 424.91 करोड़ रुपए की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई थी लेकिन अब तक लगभग 688 करोड़ रुपए की धनराशि व्यय हो चुकी है। इस तरह काफी वर्षों के मशक्कत और परिश्रम के बाद अब जाकर यह काम धरातल पर फलीभूत हुआ है।
राजस्थान सरकार के अधिकारियों के अनुसार, ‘बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना’ के पहले चरण में बाड़मेर और जैसलमेर जिले के करीब छह लाख लोगों को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की जाएगी। मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा है कि आने वाले वर्षों में बाड़मेर और जैसलमेर के और इलाकों को इस पेयजल योजना से जोड़ जाएगा। बाड़मेर शहर तक पानी पहुंचाने के लिए इंदिरा गांधी मुख्य नहर से मोहनगढ़ होते हुए बाड़मेर शहर के बीच करीब 196 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई गई है। इससे न सिर्फ बाड़मेर बल्कि आसपास के लगभग 74 गांवों को भी शुद्ध एवं मीठा पानी मिल सकेगा। इसके अलावा उत्तरलाई स्थित एयरफोर्स स्टेशन, जैसलमेर स्थित डिफेंस लैब, भारत-पाक सीमा पर तैनात बीएसएफ जवानों, शिव तहसील के 27 और रामसर तहसील के 9 गांवों को भी पानी मिलेगा।
बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना से कुल 529 गांवों को लाभ पहुंचाने की बात है। इनमें विधानसभावार स्वीकृत गांवों में बायतु में 151, सिवाना में 2, पचपदरा में 3 तथा बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र के सभी 211 गांव स्वीकृत हैं। इसी प्रकार क्लस्टर में स्वीकृत गांवों में बायतु विधानसभा क्षेत्र के 145, सिवाना का एक, पचपदरा के तीन तथा बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र के 90 गांव स्वीकृत हैं। जानकार बताते हैं कि वर्ष 2036 जब क्षेत्र की आबादी 15.64 लाख के करीब पहुंच जाएगी, उसे देखते हुए इलाके में पेयजल की आपूर्ति को बढ़ाना जरूरी हो जाएगा। फिलहाल, सरकार ने बाड़मेर और आसपास के जिलों में लगभग 38,450 लाख लीटर क्षमता वाले तालाबों का कराया है। इनमें करीब 21 दिनों का पानी संरक्षित किया जा सकेगा। अधिकारियों ने बताया है कि 1,720 लाख लीटर क्षमता के एक फिल्टर प्लांट का भी निर्माण कराया गया है इसके साथ ही मोहनगढ़ और नजदीक के भागू गांव में पंप स्थापित किए गए हैं। इन पंपों से बाड़मेर तक शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा सकेगा।
परियोजना के पहले चरण में ढांचागत विकास पर ज्यादा जोर दिया गया है। जबकि 979.75 करोड़ रुपए के दूसरे चरण का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना के द्वितीय चरण में विभिन्न क्षेत्रों को पेयजल से लाभान्वित किया जाएगा। इसके लिए क्लस्टर पार्ट-ए व बी निर्धारित है। क्लस्टर पार्ट-ए के अंतर्गत भाड़का-चोखला-बांदरा परियोजना से कुल 172 गांव लाभांवित होंगे। इनमें तहसील बायतु के 128, बाड़मेर के 40, पचपदरा के तीन तथा सिवाना का एक गांव शामिल है। इस योजना के लिए 202.36 करोड़ का कार्य आवंटित किया जा चुका है। इसी प्राकर क्लस्टर पार्ट-बी के अंतर्गत बाड़मेर तहसील के 67 गांवों के लिए निविदाएं प्रक्रियाधीन हैं जबकि शेष 239 गांवों के लिए सर्वे का कार्य प्रगति पर है।
थार मरुभूमि में पेयजल की समस्या सदियों पुरानी है। यहां के सुदूर ग्रामीण इलाकों की महिलाएं एक दिन में कई-कई बार सात से आट किलोमटीर चलकर पानी लाती रही हैं। बदले में अगर उन्हें कुछ मिली है तो सिर्फ बीमारी क्योंकि रेगिस्तान का पानी न सिर्फ खारा है बल्कि उसमें फ्लोराइड की मात्रा भी अत्यधिक है। ऐसे में बाड़मेर लिफ्ट पेयजल परियोजना निःसंदेह रेगिस्तान की तपती भूमि पर मीठी फुहार की तरह आई है।
Path Alias
/articles/dhaoraon-kai-dharatai-para-haimadhaaraa
Post By: Hindi