पंकज चतुर्वेदी
हम अभी भी नहीं सुधर रहे हैं
Posted on 16 Apr, 2016 12:50 PMबुन्देलखण्ड में लागातर सूखे के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। य
पर्यावरण विरोधी है आईपीएल
Posted on 14 Apr, 2016 09:22 AMएक मैच के दौरान व्यय बिजली, पानी, वहाँ बजने वाले संगीत के शोर, वहाँ पहुँचने वाले लोगों के आवागम
टके सेर टमाटर
Posted on 10 Apr, 2016 12:47 PMबुन्देलखण्ड व मराठवाड़ा-विदर्भ में किसान इस लिये आत्महत्या कर
सिमटती नदियाँ, संकट में मानव सभ्यता
Posted on 08 Apr, 2016 02:28 PMबहुत पुरानी बात है, हमारे देश में एक नदी थी सिंधु। इस नदी की घाटी में खुदाई हुई तो मोहन जोदड़ों नाम का शहर मिला, ऐसा शहर जो बताता था कि हमारे पूर्वजों के पूर्वज बेहद सभ्य व सुसंस्कृत थे और नदियों से उनका शरीर-श्वांस का रिश्ता था। नदियों के किनारे समाज विकसित हुआ, बस्ती, खेती, मिट्टी व अनाज का प्रयोग, अग्नि का इस्तेमाल के अन्वेषण हुए।
जल, जंगल और जमीन का जुनून: संजय कश्यप
Posted on 28 Mar, 2016 01:51 PM
वैसे तो वे एक वकील हैं, एक राजनीतिक दल के समर्पित कार्यकर्ता भी हैं, लेकिन उनके दिल और दिमाग में हर समय जो मचलता रहता है, वह है अपनी धरती को आधुनिकता से उपजे प्रदूषण से मुक्त करना। वे हिण्डन नदी बचाने के आन्दोलन में भी उतने ही सक्रिय रहते हैं जितना कि गौरेया संरक्षण में और उतना ही पाॅलीथीन प्रयोग पर पाबन्दी को लेकर। दिल्ली से सटे गाजियाबाद जिले में उनकी पहल पर कई ऐसे काम हो गये जो यहाँ के लाखों बाशिंदों को स्वच्छ हवा-पानी मुहैया करवाने में अनुकरणीय पहल हैं। संजय कश्यप ने एमबीए कर एक कम्पनी में प्रबंधन की नौकरी की और वह भी कश्मीर घाटी में वहाँ वे बाँध व जल प्रबंधन को नजदीक से देखते तो रहे, लेकिन कभी पर्यावरण संरक्षण जैसी कोई भावना दिल में नहीं उपजी।
धरती के बढ़ते तापमान से संकट में है इंसानी अस्तित्व
Posted on 17 Mar, 2016 04:08 PM
इस साल जनवरी खत्म होते-होते मौसम ने अचानक तेवर बदल दिये। दिल्ली वाले इन्तजार ही करते रहे कि इस साल कड़ाके की ठंड व कोहरा कब पड़ेगा कि शरीर आधी बाँह की शर्ट के लिय मचलने लगा। और फिर मार्च शुरू होते ही जब उम्मीद थी कि अब मौसम का रंग सुर्ख होगा, फसल ठीक से पकेगी; उसी समय बादल बरस गए और ओलों ने किसानों के सपने धराशाही कर दिये।
स्वच्छता के लिये जरूरी है मनोवृत्ति में बदलाव
Posted on 13 Mar, 2016 03:48 PM
स्वच्छता ,स्वास्थ्य और देश का विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे देश में स्वच्छता गम्भीर चुनौती है क्योंकि संसार में सबसे अधिक लगभग 60 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं। अस्वच्छता से अतिसार, बच्चों में कुपोषण और शारीरिक विकास में कमी व अन्य खतरनाक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं जिनसे मनुष्य के जीवन को बहुत बड़ा खतरा है।