डॉ. दिनेश मिश्र

डॉ. दिनेश मिश्र
आगे-आगे तटबंध-पीछे-पीछे तबाही
Posted on 26 Dec, 2011 01:14 PM
जैसे-जैसे तटबंध आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे इस तरह की कहानियों की, उनसे जुड़ी उम्मीदों और आश्वासनों की सूची लम्बी होती जायेगी। अभी तक तो उन गाँवों की पूरी सूची भी तैयार नहीं हुई है जहाँ से इस तटबंध को गुजरना है। इसका यह भी मतलब निकलता है कि दस्तूर के मुताबिक तटबंध का अलाइनमेन्ट अभी तक तय नहीं हुआ है। पश्चिम में औराई से लेकर पूरब में कनौजर घाट तक के लोग आशंकित ह
अनिश्चित भविष्य लिए हुए भरथुआ
Posted on 26 Dec, 2011 11:46 AM

रिंग बांध की बात इसलिए उठी कि हम लोगों का घर नहीं उजड़ेगा, जहाँ है वहीं रहेंगे। अगर ऐसा नहीं क

बेनीपुर की जल समाधि
Posted on 26 Dec, 2011 09:51 AM
मार्च 2007 खत्म होते न होते बेनीपुर में तटबंध का काम शुरू हो गया। गाँव वालों की चिंता थी कि बिना उनका पुनर्वास किये तटबंध आगे बढ़ता है तो बरसात में गाँव पानी में फंस जायेगा और उनका जीना दूभर हो जायेगा। अप्रैल 2007 को इन लोगों ने स्थानीय जूनियर इंजीनियर से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक सबको अपनी स्थिति के बारे में लिखा। जब कोई हाल पूछने वाला नहीं हुआ तब यह लोग
दस्तूर का पाबंद जल-संसाधन विभाग-पहले योजना पर काम, बाद में पुनर्वास-
Posted on 24 Dec, 2011 04:23 PM

राज्य सरकार की इस पुनर्वास नीति में इतना तो जरूर हुआ कि तटबंधों के अंदर बने घर के एवज में उसकी

पुनर्वास का तीसरा दौर-रुन्नी सैदपुर से हायाघाट
Posted on 24 Dec, 2011 12:12 PM

सरकार की इस तरह की बातें लोग बहुधा मान लेते हैं क्योंकि सरकार के प्रचार तंत्र ने यह झूठ परोस द

एक नजर जीविका के मुख्य स्रोत खेती पर
Posted on 24 Dec, 2011 10:09 AM

‘‘...हमारे गाँव में जिसकी 5 एकड़, 10 एकड़ या 25 एकड़ जमीन है वह ज्यादातर बांध के अंदर है जहाँ

उजड़ा दयार-रामपुर कंठ
Posted on 23 Dec, 2011 04:43 PM

बहरहाल, अगर इंजीनियरों की गलती या लापरवाही से तटबंध टूट गया और इतने लोग बेघर हो गए और प्रशासन

इब्राहिमपुर-यहाँ शिव मन्दिर को हर साल बालू हटा कर निकालना पड़ता है
Posted on 23 Dec, 2011 11:56 AM
इब्राहिमपुर गाँव का पुनर्वास पूर्वी तटबंध के बाहर रैन संकर में दिया गया था। पुनर्वास की जमीन बहुत कम थी जिसमें परिवार के बैठने और माल-जाल रखने की कोई गुंजाइश है ही नहीं। खेत-खलिहान, टट्टी-पेशाब आने-जाने, बकरी-मुर्गी या जानवर चराने की भी कोई जगह नहीं है। जो अत्यंत गरीब हैं और किसी अन्य की जमीन में बसे हैं उसके लिए तो पुनर्वास ठीक है पर अगर जिसके पास कुछ जम
बाकी जगह भी कोई फर्क नहीं है
Posted on 21 Dec, 2011 04:17 PM
मसहा आलम में तो तीन चौथाई परिवारों को पुनर्वास मिला ही नहीं। सारे संपर्कों के बावजूद अखता में भी लोग छूट ही गए और वह सचमुच सड़क पर हैं। एक दूसरे गाँव बरवा टोला में पुनर्वास मिला मगर वहाँ कोई गया ही नहीं। इस गाँव के मुहम्मद शकील बताते हैं, ‘‘...हमारा साठ सदस्यों का संयुक्त परिवार था जब पुनर्वास की बात उठी थी। हम लोग चार भाई थे और चारों जवान थे। हम लोगों को
पुनर्वासितों के साथ वायदा खिलाफी
Posted on 21 Dec, 2011 01:16 PM
बागमती परियोजना के विस्थापितों ने धोखा कैसे खाया वह तो अब धीरे-धीरे साफ हो रहा है मगर कितना धोखा खाया और इसके बाद भी बेहतरी की उम्मीद नहीं छोड़ी यह जानने के लिए कुछ इस तरह के गाँवों की ओर चलते हैं जिनकी उम्मीदें अभी भी कायम हैं। शुरुआत करते हैं ढेंग और बैरगनियाँ के बीच बागमती के दाहिने किनारे बसे (या अब उजड़े) मसहा आलम के विस्थापितों से-
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