मार्च 2007 खत्म होते न होते बेनीपुर में तटबंध का काम शुरू हो गया। गाँव वालों की चिंता थी कि बिना उनका पुनर्वास किये तटबंध आगे बढ़ता है तो बरसात में गाँव पानी में फंस जायेगा और उनका जीना दूभर हो जायेगा। अप्रैल 2007 को इन लोगों ने स्थानीय जूनियर इंजीनियर से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक सबको अपनी स्थिति के बारे में लिखा। जब कोई हाल पूछने वाला नहीं हुआ तब यह लोग विरोध स्वरूप बांध पर ही धरने पर बैठ गए। यह लोग तटबंध निर्माण के पहले पुनर्वास चाहते थे। इनकी मदद के लिए आस-पास के उन गाँवों के लोग भी धरने में शामिल हो गए जो तटबंधों के बीच फंसने वाले थे। इस धरने का संज्ञान सरकार की किसी संस्था या व्यक्ति ने तभी लिया जब ठेकेदारों को काम रुकने से नुकसान होने लगा और तभी विभागीय इंजीनियरों ने तीन महीनें के अंदर सारी व्यवस्था दुरुस्त कर देने का आश्वासन दिया। यह मामला भू-अर्जन से संबंधित था और पता नहीं इंजीनियरों को ऐसा आश्वासन देने की क्षमता थी भी या नहीं। इस बीच बरसात का मौसम आकर चला गया। बेनीपुर के घर-घर में पानी घुसा और एक से दो फुट तक मिट्टी भर गयी। रामबृक्ष बेनीपुरी का घर भी इससे अछूता नहीं बचा और 2007 दिसम्बर में उनका जन्मदिन समारोह मनाने के लिए घर के फर्श के ऊपर बैठी एक फुट मिट्टी को हटाना पड़ गया था। इस साल गाँव की पूरी अगहनी फसल को नदी ने धो दिया और रबी के मौसम में गाँव वालों के पास न पूंजी थी और न सूखी जमीन जिस पर वह खेती कर सकें। सरकार ने भले ही आश्वासन दे रखा हो कि तीन महीनें के अंदर पुनर्वास का कार्यक्रम हर तरह से पूरा कर लिया जायेगा। तीन महीनें में जो हुआ वह सिर्फ इतना ही था कि जुलाई 2007 में सरकार की तरफ से बिहार के अखबारों में बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव द्वारा एक विज्ञापन दिया गया, ‘‘...नई भू-अर्जन पुनःस्थापन एवं पुनर्वास नीति 2007 दिनांक 19.02.2007 से बिहार राज्य में लागू है। इस नीति के अंतर्गत भूमि का मूल्य तय किया जायेगा। इस मूल्य पर सामान्य प्रक्रिया अंतर्गत 30 प्रतिशत सोलेशियम दिया जायेगा। लेकिन स्वेच्छा से भू-धारी द्वारा भूमि देने पर सोलेशियम की राशि 60 प्रतिशत यानी 30 प्रतिशत ज्यादा होगी... अतः भू-धारियों से अपील है कि भू-अर्जन अधिनियम की धारा-4 (अधिसूचना) के पूर्व भूमि का पूर्ण ब्यौरा देते हुए अपनी सहमति सम्बंधी शपथ पत्र संबंधित विशेष भू-अर्जन पदाधिकारी को दे-दें ताकि उन्हें 60 प्रतिशत सोलेशियम दिया जा सके।’’ इस तरह सेफरवरी 2007 में बनी नई पुनर्वास नीति को फाइलों से अखबार तक पहुँचने में लगभग 5 महीनें का समय लग गया और नये तटबंधों के बीच फंसे- जीवाजोर, बेनीपुर और भरथुआ जैसे गाँवों की एक बरसात उनके छप्परों, छतों और तटबंध पर बीत गयी। अब इन लोगों को जाड़े के मौसम में होने वाली परेशानियों का इंतजार था।
3 दिसम्बर 2007 को बेनीपुर निवासियों ने एक बार फिर सारे सम्बद्ध अधिकारियों और मंत्रियों को चेताया कि अगर उनके पुनर्वास के लिए कुछ नहीं किया जाता है तो वह लोग निर्माणाधीन बांध परतो धरना देंगे ही, 15 दिसम्बर 2007 से एन.एच. 77 को भी जाम करेंगे। इस पत्र के जवाब में ठेकेदारों के स्थानीय गुण्डे धरना स्थल पर आये और धरनार्थियों की दरी, तिरपाल आदि को उठा कर फेंक दिया और उनके बैनर आदि फाड़ दिये। गाँव वालों का अभी भी यही कहना था कि उनका विरोध तटबंध के निर्माण से नहीं है, उनकी मांग अपने पुनर्वास की है। इस तरह का विरोध धीरे-धीरे दूसरी जगहों पर भी पनपने लगा था और सरकार ने यह तय किया कि तटबंध का काम उन जगहों पर रोक दिया जाए जहाँ उनका विरोध हो रहा है। जहाँ विरोध केवल नाम मात्र का है या क्षीण है वहाँ तटबंध का निर्माण चालू रखा जाए। ऐसा करने से विरोध करने वाले भी थक हार कर बैठ जायेंगे और निर्माण कार्य भी बदस्तूर चलता रहेगा।
उसके बाद की अद्यतन घटनाओं के बारे में बताते हैं पुनर्वास संघर्ष समिति, बेनीपुर के संयोजक रजत सिंह। उनका कहना है, ‘‘...जीवाजोर और बेनीपुर के पुनर्वास के लिए अभी तक कुछ नहीं हुआ है। घरों की नाप-जोख 3-4 बार हुई। बिल्डिंग वाले (पी.डब्लू.डी.) भी जाकर देख कर आये । हम लोग विशेष भू-अर्जन कार्यालय में गए रतवारा। उनका कहना था कि अभी तक बिल्डिंग वालों के यहाँ से फाइल नहीं आयी है। जन-स्वास्थ्य विभाग के यहाँ से चापाकल के बारे में कोई खबर नहीं आयी है। पेड़-पौधों का मूल्यांकन वन विभाग वाले करेंगे। जिलाधीश के यहाँ भी हम लोग गए थे। वहाँ बात हुई कि रिहाइश वाली जमीन को विकसित करके हम लोगों को दिया जायेगा मगर अभी तक कुछ हुआ नहीं है। हम लोग वहीं पुरानी जगह पर ही गाँव में डूब-भस करके जी रहे हैं। हमारी फाइलें तो अलग-अलग विभागों में घूम रही हैं और उधर तीन साल से नदी हमारे गाँव में घूम रही है मगर सरकार के यहाँ किसी को कोई जल्दी नहीं है। हमारी हालत अब यह है कि हम चारों तरफ से पानी से घिर गए हैं और भागने का भी रास्ता नहीं बचा है। सरकार का वह कानून कहाँ गया कि पुनर्वास पहले होगा योजना बनने से पहले और विस्थापितों को पहले से ज्यादा सुविधा मिलेगी क्योंकि वह लोकहित में अपनी कुर्बानी दे रहे हैं?’’
तटबंधों के बीच रामबृक्ष बेनीपुरी का घर और वहाँ लगी उनकी प्रतिमा - कुछ नहीं रहेगा।
3 दिसम्बर 2007 को बेनीपुर निवासियों ने एक बार फिर सारे सम्बद्ध अधिकारियों और मंत्रियों को चेताया कि अगर उनके पुनर्वास के लिए कुछ नहीं किया जाता है तो वह लोग निर्माणाधीन बांध परतो धरना देंगे ही, 15 दिसम्बर 2007 से एन.एच. 77 को भी जाम करेंगे। इस पत्र के जवाब में ठेकेदारों के स्थानीय गुण्डे धरना स्थल पर आये और धरनार्थियों की दरी, तिरपाल आदि को उठा कर फेंक दिया और उनके बैनर आदि फाड़ दिये। गाँव वालों का अभी भी यही कहना था कि उनका विरोध तटबंध के निर्माण से नहीं है, उनकी मांग अपने पुनर्वास की है। इस तरह का विरोध धीरे-धीरे दूसरी जगहों पर भी पनपने लगा था और सरकार ने यह तय किया कि तटबंध का काम उन जगहों पर रोक दिया जाए जहाँ उनका विरोध हो रहा है। जहाँ विरोध केवल नाम मात्र का है या क्षीण है वहाँ तटबंध का निर्माण चालू रखा जाए। ऐसा करने से विरोध करने वाले भी थक हार कर बैठ जायेंगे और निर्माण कार्य भी बदस्तूर चलता रहेगा।
उसके बाद की अद्यतन घटनाओं के बारे में बताते हैं पुनर्वास संघर्ष समिति, बेनीपुर के संयोजक रजत सिंह। उनका कहना है, ‘‘...जीवाजोर और बेनीपुर के पुनर्वास के लिए अभी तक कुछ नहीं हुआ है। घरों की नाप-जोख 3-4 बार हुई। बिल्डिंग वाले (पी.डब्लू.डी.) भी जाकर देख कर आये । हम लोग विशेष भू-अर्जन कार्यालय में गए रतवारा। उनका कहना था कि अभी तक बिल्डिंग वालों के यहाँ से फाइल नहीं आयी है। जन-स्वास्थ्य विभाग के यहाँ से चापाकल के बारे में कोई खबर नहीं आयी है। पेड़-पौधों का मूल्यांकन वन विभाग वाले करेंगे। जिलाधीश के यहाँ भी हम लोग गए थे। वहाँ बात हुई कि रिहाइश वाली जमीन को विकसित करके हम लोगों को दिया जायेगा मगर अभी तक कुछ हुआ नहीं है। हम लोग वहीं पुरानी जगह पर ही गाँव में डूब-भस करके जी रहे हैं। हमारी फाइलें तो अलग-अलग विभागों में घूम रही हैं और उधर तीन साल से नदी हमारे गाँव में घूम रही है मगर सरकार के यहाँ किसी को कोई जल्दी नहीं है। हमारी हालत अब यह है कि हम चारों तरफ से पानी से घिर गए हैं और भागने का भी रास्ता नहीं बचा है। सरकार का वह कानून कहाँ गया कि पुनर्वास पहले होगा योजना बनने से पहले और विस्थापितों को पहले से ज्यादा सुविधा मिलेगी क्योंकि वह लोकहित में अपनी कुर्बानी दे रहे हैं?’’
![तटबंधों के बीच रामबृक्ष बेनीपुरी का घर और वहाँ लगी उनकी प्रतिमा - कुछ नहीं रहेगा। तटबंधों के बीच रामबृक्ष बेनीपुरी का घर और वहाँ लगी उनकी प्रतिमा - कुछ नहीं रहेगा।](/sites/default/files/hwp/images/Rambriksh beniburi ka ghar.jpg)
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