आगे-आगे तटबंध-पीछे-पीछे तबाही

जैसे-जैसे तटबंध आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे इस तरह की कहानियों की, उनसे जुड़ी उम्मीदों और आश्वासनों की सूची लम्बी होती जायेगी। अभी तक तो उन गाँवों की पूरी सूची भी तैयार नहीं हुई है जहाँ से इस तटबंध को गुजरना है। इसका यह भी मतलब निकलता है कि दस्तूर के मुताबिक तटबंध का अलाइनमेन्ट अभी तक तय नहीं हुआ है। पश्चिम में औराई से लेकर पूरब में कनौजर घाट तक के लोग आशंकित हैं कि तटबंध मुमकिन है उनके गाँव को लील जाए।

कल्याणपुर, प्रखंड औराई, जिला मुजफ्फरपुर के प्रमोद कुमार राय बताते हैं, ‘‘...जब तक यह तटबंध शिवनगर तक था तब तक बागमती का पानी वहाँ से निकल कर पहले मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी मार्ग से टकराता था। वहाँ सड़क आज से बहुत नीची थी और कटौंझा के पास एक लम्बा लचका था जिसके ऊपर से पानी बहना शुरू होता था। हमलोग लचके के पास पानी की स्थिति देखकर बाढ़ का अन्दाजा लगा लेते थे और सुरक्षा का इंतजाम कर लेते थे। अब हमारा गाँव तटबंध के किनारे पड़ गया है। गाँव के पश्चिम में मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी रेल लाइन का निर्माण हो रहा है और उसके 1-1.5 किलोमीटर पश्चिम में मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी राष्ट्रीय मार्ग (एन.एच. 77) है। अब अगर तटबंध कहीं टूटेगा तो क्या होगा यह हमारे लिए कह पाना मुश्किल है। 2007 में बागमती तटबंध का विस्तार शुरू हुआ और उसके बाद इस नदी में पहले जैसा पानी नहीं आया। रेल लाइन के पश्चिम में तटबंध टूटने पर बाढ़ का पानी हमारे यहाँ रेल पुल से होकर आयेगा। रेल लाइन के पूर्व अगर आस-पास में कहीं टूटा तो रेल लाइन पानी को फैलने से रोकेगी और हमारा गाँव पानी में फंसेगा। अगर कभी भरथुआ के पास तटबंध टूटा तो हमारे गाँव का पता भी नहीं लगेगा। तटबंध अगर है तो कहीं-न-कहीं टूटेगा जरूर।’’

निर्मली, महादेव मठ, भटनियाँ और करहारा गाँवों/कस्बों के चारों ओर रिंग बांध कोसी परियोजना के अधीन 1950 के दशक में बनाये गए थे। इनमें से करहारा का रिंग बांध 1966 की बाढ़ में बह गया और 1971 में भटनियाँ का रिंग बांध भी बह गया। निर्मली और महादेव मठ के रिंग बांध अपने आधे दक्षिणी भाग की तबाही के बीच अभी भी सलामत हैं। इनके बारे में जानकारी लेखक की पुस्तक-दुइ पाटन के बीच में-कोसी नदी की कहानी (2006) में उपलब्ध है। चानपुरा और बैरगनियाँ रिंग बांधों के बारे में जानकारी पंडित प्रसाद भट्ट इसी पुस्तक में अन्यत्र दी गयी है।

बाजार व्यवस्था में दूसरों का हित या फिर सामूहिक हित गौण हो चुका है इसलिए सामूहिक विरोध या सामूहिक सुझाव देने का भी रिवाज खत्म होता जा रहा है। इसी हताशा की अभिव्यक्ति होती है ग्राम भगवतपुर, प्रखंड गायघाट, मुजफ्फरपुर के अरविन्द यादव के बयान से। वह कहते हैं, ‘‘...मुझे मालुम है कि हमारा पूरा का पूरा गांव बागमती के दोनों तटबंधों के बीच चला जायेगा। हमारे यहाँ 350 बीघे का एक चौर है जिसमें से अधिकांश हमारे परिवार का है। बाबा की 300 बीघा जमीन है। सब की सब तटबंध के अंदर चली जायेगी। लदौर चौर में हमारे तीन फरीक की 100 बीघा से ज्यादा जमीन है। वह भी जायेगी। नदी के उस पार बलौर निधि और पाटा मौजे की 82 बीघा जमीन हमारे परिवार की है- सबकी सब चली जायेगी। न तो कोई नौकरी है परिवार में न कोई व्यापार है। परिवार का सारा खर्च इसी जमीन से आता है। हमारी तो, मान लीजिये, कुछ हैसियत भी है, बाहर जमीन खरीद लेंगे और नये सिरे से जिंदगी शुरू कर लेंगे। मगर जिस मजदूर के परिवार में 5 सदस्य हैं और जो रोज कमाता-खाता है वह कहाँ से जमीन खरीदेगा?’’

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Post By: tridmin
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