डॉ. दिनेश मिश्र

डॉ. दिनेश मिश्र
पुनर्वास की बहस जनता के बीच
Posted on 20 Dec, 2011 11:17 AM

कोसी क्षेत्र के लोग शायद ज्यादा जागरूक थे इसलिए उन्होंने सरकार से घरों के निर्माण के लिए पैसा

पुनर्वास की बदहाली पर प्रशासन की नींद टूटी
Posted on 18 Dec, 2011 01:41 PM
जहाँ तक पुनर्वास पैकेज का सवाल था वहाँ तो सिर्फ ढुलाई शुल्क और रिहाइशी प्लॉट के अलावा किसी परिवार को तो कुछ मिलना नहीं था। इसलिए जब आंशिक पुनर्वास की बात की जाती है तब या तो इन परिवारों को ढुलाई शुल्क नहीं मिला होगा या फिर प्लॉट का आवंटन नहीं किया गया होगा। वैसे भी पुनर्वास के प्लॉट का आवंटन किये बिना ढुलाई शुल्क के भुगतान का कोई मतलब नहीं होता। पुनर्वास बस्तियों का विकास तो सरकार को करना था जिससे
पुनर्वास, भूमि अधिग्रहण और भ्रष्टाचार
Posted on 18 Dec, 2011 09:45 AM

‘‘...बागमती नदी के बीच में जितने भी गाँव पड़ते हैं उनमें से बहुतों के पुनर्वास की व्यवस्था नही

बागमती की 1966 की बाढ़
Posted on 17 Dec, 2011 10:37 AM

1966 तो जैसे तैसे बीता मगर बाढ़ों ने सीतामढ़ी का पीछा नहीं छोड़ा। 1968 में देश के प्रायः समूचे

बागमती की 1956 की बाढ़
Posted on 17 Dec, 2011 10:29 AM

इस परियोजना की रूप रेखा 1956 में तय की जा चुकी थी और नदी के निचले हिस्से में दायें किनारे पर स

बागमती योजना के निर्माण की बहस जनता और जन-प्रतिनिधियों के बीच
Posted on 17 Dec, 2011 10:28 AM

दिसम्बर 1955 में सेन्ट्रल वाटर ऐण्ड पॉवर कमीशन के मुख्य अभियंता डॉ. के. एल.

1954 तथा 1955 की बागमती की बाढ़
Posted on 16 Dec, 2011 12:52 PM

दरभंगा जिले में आयी अब तक की इस सबसे बड़ी और भयंकर बाढ़ में जिले का कुल 65 प्रतिशत क्षेत्र प्र

इमरजेन्सी में लागू की गयी पुनर्वास नीति
Posted on 16 Dec, 2011 11:48 AM

खेती की जमीन के बदले जमीन दिये जाने का प्रावधान न तो कोसी परियोजना में किया गया था और न ही बाग

बागमती की 1953 की बाढ़
Posted on 16 Dec, 2011 10:41 AM

दिसम्बर 1953 में सरकार ने कोसी नदी पर तटबन्धों के निर्माण का अनुमोदन कर दिया था जिसकी वजह से र

फेज-2 का पुनर्वास
Posted on 16 Dec, 2011 10:25 AM
तटबंध निर्माण का दूसरा दौर 1971 में शुरू हुआ जब बागमती पर सीतामढ़ी में ढेंग से रुन्नी सैदपुर तक तटबंध बनाये गए। तटबंध निर्माण के इस दौर में आते-आते आम लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुर्बानी देने का जज्बा समाप्ति पर था। नेताओं की नई जमात सामने आ रही थी जो भावुक तथा जुझारू कम और व्यावहारिक ज्यादा थी। ब्रिटिश शासन काल के इंजीनियरों की पीढ़ी भी धीरे-धीरे आंखों से ओझल हो रही थी और अब इन लोगों ने
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