दस्तूर का पाबंद जल-संसाधन विभाग-पहले योजना पर काम, बाद में पुनर्वास-

राज्य सरकार की इस पुनर्वास नीति में इतना तो जरूर हुआ कि तटबंधों के अंदर बने घर के एवज में उसकी मालियत के अनुरूप मुआवजे के भुगतान का संकल्प लिया गया, घर के जरूरी और चलायमान सम्पत्ति को नये आवास में ले जाने के लिए अनुदान की व्यवस्था हुई और इन गाँवों पर आश्रित बेरोजगार हुए मजदूरों के वास्ते कुछ दिनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करने का प्रस्ताव किया गया।

इतना कह लेने के बाद हम तीसरे दौर के पुनर्वास के बारे में चर्चा करते हैं। जैसे ही बागमती नदी पर रुन्नी सैदपुर से हायाघाट तक तटबंधों का निर्माण शुरू हुआ, पुनर्वास की बात उठी। शुरुआती दौर में 2007 में ही यह तय हो गया था कि बड़ी संख्या में परिवार विस्थापित होंगे और उनके पुनर्वास के लिए सरकार को कुछ न कुछ व्यवस्था करनी पड़ेगी। यहाँ यह बता देना जरूरी है कि तटबंधों के विस्तार का काम दिसम्बर 2006 में शुरू हो गया था और फरवरी 2007 में तटबंध एन.एच. 77 को पार करके जनार और कटौंझा तक आ पहुँचा था लेकिन 19 फरवरी 2007 को राज्य के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने एक नई पुनर्वास नीति की घोषणा की। इस नीति के अनुसार राज्य के जल-संसाधन विभाग का कहना था, ‘‘...जब बाढ़ नियंत्रण हेतु बांधों/तटबंधों का निर्माण कराया गया है तो दोनों तरफ तटबंधों के बीच नदी और जलधारा का स्तर काफी ऊँचा हो जाता है तथा दोनों बांधों के बीच धारा उच्च वेग से प्रवाहित होती है। फलस्वरूप पानी का स्तर बढ़ जाने के कारण दोनों तटबंधों के बीच स्थित बस्तियाँ जलमग्न हो जाती हैं। इस कारणवश बस्तियों को बांध से बाहर समुचित स्थल पर पुनर्वासित करना आवश्यक हो जाता है। ऐसा पाया गया है कि पुनर्वास के उपरांत भी भू-धारी मकान को खाली नहीं करते हैं तथा उसी में आवास बनाये रखते हैं। फलतः वर्षा में बाढ़ के दौरान खतरे की स्थिति उत्पन्न होने पर उन्हें बचाने के लिए कार्यवाही करनी पड़ती है। बागमती नदी के तटबंधों के प्रस्तावित विस्तार के कारण विस्तारित तटबंधों के बीच आवासित परिवारों को पुनर्वासित करने के लिए निर्णय लिया गया है कि प्रशासनिक स्वीकृति के दिन जो भूमि बासगीत उपयोग में होगी उसका अर्जन कर लिया जायेगा। अतः बासगीत भूमि धारकों को नयी भू-अर्जन नीति (राजस्व एवं भूमि सुधार विभागीय ज्ञापांक 15 डी.एल.ए. नीति (पुनर्वास) 07/06/395 दिनांक 19.02.2007 द्वारा निर्गत) के अनुसार भूमि, मकान आदि के लिए मुआवजा तथा अन्य लाभ देय होगा। बांधों के बीच कृषि में प्रयुक्त भूमि का अर्जन नहीं किया जायेगा। अतः इस पर भू-स्वामी का आधिपत्य बना रहेगा तथा इसके लिए कोई मुआवजा या भुगतान देय नहीं होगा। ...यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा।’’

इस ज्ञापन के साथ राज्य के जल-संसाधन विभाग ने एक विस्तृत विवरण भी सम्बद्ध अधिकारियों को भेजा जिसका आंशिक विवरण नीचे दिया जा रहा हैः

‘‘भूमि का मूल्य निर्धारण”
1.1 वर्तमान प्रावधान के अनुसार अर्जित की जाने वाली भूमि का मूल्य निर्धारण भू-अर्जन हेतु धारा 4 की अधिसूचना के तुरंत पहले समरूप भूमि के निबंधन मूल्य के आधार पर किया जाता है। सरकार का निर्णय है कि इस मूल्य पर 50 प्रतिशत जोड़ कर अर्जित की जाने वाली भूमि का मूल्य तय किया जायेगा।
1.2 इस तरह निर्धारित मूल्य पर 30 प्रतिशत सोलेशियम देकर भू-अर्जन किया जायेगा। लेकिन जहाँ भूधारी स्वेच्छा से भूमि देना चाहे, उस स्थिति में सोलेशियम की दर 60 प्रतिशत होगी।

उदाहरण:


(1) नई नीति लागू होने के पूर्व दर निर्धारण की प्रक्रिया-भूमि का दर 1.00 लाख रुपये प्रति एकड़ है तो देय राशि: 1.00 लाख रुपये एवं 30 प्रतिशत सोलेशियम यानि 30 हजार रुपये कुल 1,30,000/- (एक लाख तीस हजार रुपये) देय था।
(2) नई नीति लागू होने के पश्चात् दर का निर्धारण:

(क) सामान्य प्रक्रिया- भूमि का दर 1.00 लाख रुपये प्रति एकड़ है तो देय राशि 1.00 लाख रुपया पर 50 प्रतिशत राशि जोड़ी जाएगी यानी अब कुल राशि 1,50,000/- रुपये होगी। सामान्य स्थिति में 1,50,000/- रुपये पर 30 प्रतिशत सालेशियम यानी 45 हजार रुपये, कुल 1,95,000/- रुपया (एक लाख पचानबे हजार रुपये) देय होगा। इस प्रकार पूर्व में जहाँ 1,30,000/- रुपये की राशि देय होती, अब 1,95,000/- रुपये की राशि देय होगी।

(ख) स्वेच्छा से भूमि देने पर- भूमि का दर 1.00 लाख रुपये प्रति एकड़ है तो देय राशि 1.00 लाख रुपया पर 50 प्रतिशत राशि जोड़ दी जाएगी, यानी अब कुल राशि 1,50,000- रुपये होगी। भूधारी द्वारा स्वेच्छा से भूमि देने पर 1,50,000/- रुपये पर 60 प्रतिशत सोलेशियम यानी 90,000/- हजार रुपये, कुल 2,40,000/- (दो लाख चालिस हजार रुपये) देय होगा। इस प्रकार पूर्व में जहाँ 1,30,000/- रुपये की राशि देय होती, अब स्वेच्छा से भूमि देने की स्थिति में 2,40,000/- रुपये देय होगी।

2. आवासीय भूमि की अधिग्रहण देयता


2.1 भू-अर्जन की प्रक्रिया के अंतर्गत यदि किसी भूधारी का आवास या आवासीय भूमि का अधिग्रहण किया जाता है तो आवासीय भूमि का जितना रकबा अधिगृहित किया जाता है, उतनी ही भूमि, अधिकतम 5 डि. आवासीय उद्देश्य हेतु अधिगृहित कर उस व्यक्ति को दी जायेगी।
2.2 अस्थायी आवास हेतु सहायता-प्रत्येक भूधारी, जिसकी आवासीय भूमि अधिगृहित की गयी हो, को अस्थायी आवास हेतु 10,000/- (दस हजार रुपये) एकमुश्त राशि सहायता स्वरूप दी जायेगी।
2.3 परिवहन सहायता- जिस भूधारी का आवासीय स्थल अधिगृहित किया गया है उसे रु. 5,000/- (पाँच हजार रुपये) अपने आवासीय सामग्रियों के परिवहन हेतु सहायता स्वरूप दिया जायेगा।

3. विस्थापित कृषक मजदूर को देयता


3.1 विस्थापित कृषक मजदूर जो दूसरे भूधारी के कृषि योग्य भूमि, जिसका अधिग्रहण किया गया है, पर विगत कम से कम 3 वर्षों से कार्य कर जीविका चलाते थे और बेरोजगार हो गए उन्हें 200 दिनों का सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी एकमुश्त एवं राष्ट्रीय/राज्य रोजगार गारंटी योजना के तहत जॉब कार्ड देय होगा।’’

राज्य सरकार की इस पुनर्वास नीति में इतना तो जरूर हुआ कि तटबंधों के अंदर बने घर के एवज में उसकी मालियत के अनुरूप मुआवजे के भुगतान का संकल्प लिया गया, घर के जरूरी और चलायमान सम्पत्ति को नये आवास में ले जाने के लिए अनुदान की व्यवस्था हुई और इन गाँवों पर आश्रित बेरोजगार हुए मजदूरों के वास्ते कुछ दिनों के लिए रोजगार की व्यवस्था करने का प्रस्ताव किया गया। जो नहीं हुआ वह यह कि खेती की जमीन तटबंधों के बीच ही फंसी रह गयी और यह भविष्य में उसी गति को प्राप्त होगी जैसी मीनापुर बलहा, अदौरी, खैरा पहाड़ी, डुमरा या बराही जगदीश की जमीन की हुई थी। जिन मजदूरों की रिहाइशी जमीन अपनी नहीं थी और वह मालिकों की जमीन पर घर बना कर रह रहे थे वह पुनर्वास से बेदखल हो गए। गृह निर्माण के लिए दी जाने वाली जमीन की सीमा 5 डेसिमल तय कर दी गयी। पुनर्वास की नीति तो तैयार हो गयी मगर उसमें वर्णित कार्यवाही के नाम पर कहीं कोई सुन-गुन नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि जब मार्च 2007 के महीनें में तटबंध बेनीपुर की सीमा पर दस्तक देने लगा तब वहाँ के बाशिन्दों के कान खड़े हुए। बेनीपुर इस क्षेत्र के ख्यातिलब्ध साहित्यकार रामबृक्ष बेनीपुरी का गाँव है और यह पूरा का पूरा गाँव तटबंधों की भेंट चढ़ जाने वाला था। अपनी साहित्यिक और राजनैतिक उपलब्धियों के इतर बेनीपुरी जी को इस बात का श्रेय भी जाता है कि वह 1936 में गाँधी जी को यहाँ पास के गाँव भरथुआ में लाने में सफल हुए थे और उन्हीं के प्रयासों से भरथुआ चौर के पानी का निस्सरण हो सका था। इस गाँव में अभी भी रामबृक्ष बेनीपुरी का एक अच्छा खासा मकान है यद्यपि वहाँ रहने वाला अब कोई बचा नहीं है। उनके जन्मदिन 23 दिसम्बर पर वहाँ जरूर साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम अभी भी होते हैं। यह गाँव और यह घर अब बागमती के थपेड़ों से कब तक बचा रहेगा और कब तक यह कार्यक्रम अपने मूल स्थान पर हो पायेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा।

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Post By: tridmin
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