भारत डोगरा

भारत डोगरा
कानून से होता अन्याय
Posted on 13 Apr, 2012 11:31 AM

राजस्थान में वन अधिकार कानून की मनमानी व्याख्या कर अधिकारियों द्वारा आदिवासियों को भूमिहीन बनाने का सिलसिला निरं

नदी जोड़ योजना का संतुलित मूल्यांकन जरूरी
Posted on 31 Mar, 2012 04:53 PM

बांधों व नहरों के इस जाल से बहुत से वन, संरक्षित क्षेत्र व वन्य जीवों के आश्रय स्थल भी तबाह होंगे। मछलियों व अन्

कूड़ा बीनने वालों को मिली नई संभावनाएं
Posted on 23 Feb, 2012 11:08 AM

नगर निगम व पुलिस से संपर्क स्थापित कर कूड़ा बीनने वालों को परेशान करने वाली प्रवृत्तियों पर काफी हद तक रोक लगाई

आदिवासी क्षेत्रों के विशेषाधिकार समाप्त करने की साजिश
Posted on 12 Feb, 2012 10:56 AM

लंबे इंतजार के बाद राजस्थान में पेसा कानून को लेकर बनाए गए नियम जब सार्वजनिक हुए तो यह बात सामने आई कि इनके माध्

विकल्पों के लिए व्यापक आंदोलन
Posted on 04 Feb, 2012 11:38 AM

जलवायु बदलाव जैसे संकट के दौर में यह और भी जरूरी हो जाता है कि सभी पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं के अस्तित्व और भलाई

जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना कैसे करें
Posted on 09 Nov, 2011 11:15 AM

सवाल उठता है कि बड़ी व विकट होती आपदाओं का सामना करने की तैयारी कैसे करें। यदि हम इन सवालों को एक मुख्य प्राथमिकता बनाएं व सरकार तथा प्रशासन भी इस प्राथमिकता के अनुकूल ही तैयार रहे, तो जलवायु बदलाव के प्रतिकूल दुष्परिणामों को चाहे पूरी तरह न रोका जा सके, पर इन दुष्परिणामों को काफी कम अवश्य किया जा सकता है।

जलवायु बदलाव की समझ रखने वाले अधिकांश विशेषज्ञ व संस्थान यह चुनौती दे रहे हैं कि इस संकट को नियंत्रित करने के लिए बहुत व्यापक प्रयास अभी नहीं हुए तो कुछ वर्षो में हालात हाथ से निकल जाएंगे। इसलिए अब समय आ गया है कि इन्हें बचाने की कोशिशें अभी से शुरू कर दी जाएं। कुछ कदम हैं, जो तुरंत ही उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले तो वनों को बचाना बहुत जरूरी है। अनुमान है कि हमारी दुनिया से हर एक मिनट में तकरीबन 50 फुटबॉल मैदानों के बराबर ट्रॉपिकल या उष्ण कटिबंधीय वन नष्ट हो जाते हैं यानी प्रतिवर्ष 55 लाख हेक्टेयर। कई जगह इन्हें जलाकर नष्ट कर दिया जाता है और सिर्फ इसी वजह से धरती पर 20 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। कहीं इन वनों को काट दिया जाता है। कभी लकड़ी के लिए, कभी उद्योगों के लिए, तो कभी खेती के लिए।

वनों की रक्षा का कार्य सदा से महत्वपूर्ण रहा है। मिट्टी व जल संरक्षण, बाढ़ व सूखे के संकट को कम करने व आदिवासियों-गांववासियों की आजीविका की दृष्टि से वनों !

भूमि सुधार के लिए जन-सत्याग्रह की जरूरत
Posted on 02 Nov, 2011 04:04 PM

प्राकृतिक संसाधनों की लूट व इससे जुड़े भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिए। सबसे गरीब परिवारों को जहां

भूमि सुधार
नदियों के प्रवाह की रक्षा जरूरी
Posted on 24 Sep, 2011 06:09 PM

नदियों से पानी मोड़ने की उस हद तक ही अनुमति दी जाए जो कि नदी के पर्यावरणीय प्रवाह की सीमा से अध

बाढ़ के रास्ते
Posted on 20 Sep, 2011 11:41 AM

पहले वर्षा का बहुत–सा पानी तालाबों-पोखरों में समा जाता था। इन पर अतिक्रमण या इन्हें पाट दिए जाने के कारण यह पानी बाढ़ का सबब बनता है और रिहायशी इलाके या खेती को चौपट करता है। आज भी बाढ़ और सूखे दोनों का समाधान यही है कि इन तालाबों पोखरों को साफ और गहरा किया जाए और इनमें पानी आने के मार्ग अवरोध-मुक्त किए जाएं।

हाल के वर्षों में विश्व का एक बड़ा क्षेत्र बाढ़ के बेहद विनाशक दौर से गुजरा है। पिछले वर्ष अनेक देशों खासकर ब्राजील, आस्ट्रेलिया और श्रीलंका में बाढ़ ने कहर बरपाया था। ब्राजील के मुख्य शहर भी इस अति-विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आए और वहां सात सौ से अधिक लोग मारे गए। आस्ट्रेलिया में बाढ़ जब अपने चरम पर थी तो बाढ-प्रभावित क्षेत्र जर्मनी और फ्रांस इन दो देशों के संयुक्त क्षेत्रफल की बराबरी कर रहा था। श्रीलंका में बाढ़ के कारण इतनी व्यापक क्षति हुई कि स्थानीय राहत-प्रयास पर्याप्त नहीं हो सके; भारत और चीन तक से सहायता पहुंचानी पड़ी। पाकिस्तान में तो बाढ़ ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए; वहां लगभग सत्तर लाख परिवार पिछले वर्ष की बाढ़ से प्रभावित हुए।
ग्रामीण वैज्ञानिक की बाधा भरी राह
Posted on 08 Sep, 2011 06:06 PM

देश के एक ग्रामीण वैज्ञानिक मंगल सिंह ने न केवल देश को अरबों रुपए की बिजली व डीजल की बचत की राह दिखाई है। बल्कि पर्यावरण-रक्षा करते हुए बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी का अवसर भी उपलब्ध किया है। लाखों किसानों को उनकी इस खोज से सस्ती सिंचाई की सुविधा मिल सकती है और ग्रामीण कुटीर उद्योगों को बिजली भी मिल सकती है। इस आविष्कार 'मंगल टरबाइन' को पेटेंट प्राप्त हो गया है, साथ ही मौक

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