भारत डोगरा

भारत डोगरा
बाढ़-नियंत्रण व राहत पर गंभीर विमर्श जरूरी
Posted on 07 Sep, 2011 02:27 PM

साफ पेयजल उपलब्धि निश्चय ही एक उच्च प्राथमिकता है व इस दृष्टि से ऊंचे हैंडपंप लगाने, समय पर ब्

पहली प्राथमिकता बने शुद्ध पेयजल
Posted on 02 Sep, 2011 11:45 AM

सामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता से गांव समुदाय ने एक होकर पास की पहाड़ी पर जल संरक्षण का कार्य क

प्रकृति रक्षा को संवैधानिक मान्यता
Posted on 26 Aug, 2011 06:14 PM
विश्व के विभिन्न देशों के संविधानों में मनुष्य के अधिकारों की चर्चा तो बार-बार और विभिन्न कोणों से हुई है, पर ऐसा बहुत कम सुना गया है कि किसी देश के संविधान में प्रकृति के अधिकारों की रक्षा करने के महत्व को स्वीकार किया गया है, या प्रकृति के किसी अधिकार के अस्तित्व को मान्यता दी गई है। मौजूदा दौर में इस कमी को दक्षिण अमेरिका स्थित दो देशों बोलीविया व इक्येडॉर के संविधान या कानूनों में दूर किया गया
बचत से ही बचेगा किसान
Posted on 17 Aug, 2011 04:37 PM

आजकल प्रधानमंत्री से लेकर पटवारी तक सभी खेती को लाभ का धंधा बनाने में जुटे हैं। ये पूरी श्रृंख

प्राकृतिक आपदा का प्रबंध कौशल
Posted on 08 Aug, 2011 01:22 PM

बरसात के दिनों में पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ते भू-स्खलनों के कारण कहीं तीर्थ-यात्रियों तो कहीं पर्यटकों के फंसने के समाचार मिलते ही रहते हैं। शासन-प्रशासन को पर्यटकों और तीर्थ-यात्रियों की चिंता तो होनी ही चाहिए, विशेषकर इस वजह से कि उनमें से अधिकांश पर्वतीय आपदाओं का सामना करने में अधिक सक्षम नहीं होते हैं और वे ऐसी अनजान जगह पर होते हैं जहां की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति उनके अनुकूल नहीं होती

भूस्खलन
पहली प्राथमिकता बने शुद्ध पेयजल
Posted on 29 Jul, 2011 08:53 AM

पॉश कालोनियों और बड़े होटलों में स्वीमिंग पूल, लॉन, गोल्फ कोर्स में सबसे गैरजरूरी कार्यों के लि

समुद्र तटीय क्षेत्रों का संरक्षण
Posted on 15 Jul, 2011 03:21 PM

यह बहुत जरूरी है कि जलवायु बदलाव व बढ़ती आपदाओं के दौर में समुद्र तटीय क्षेत्रों के पर्यावरण व

समुद्री तटों का संरक्षण जरूरी
Posted on 21 Jun, 2011 10:29 AM

भारत में भी समुद्र तटीय विकास को लेकर नई चेतना और दृष्टि की आवश्यकता है, क्योंकि सुनामी की विभी

बुंदेलखंड के संकट की वजह
Posted on 18 Jun, 2011 08:54 AM

हाल के वर्षों में बुंदेलखंड क्षेत्र बार-बार सूखे की विकट स्थिति, भूख व गरीबी की भीषण मार के कारण चर्चित हुआ है। कभी भूख से होने वाली मौतों के समाचार सुर्खियों में रहे तो कभी किसानों की आत्म-हत्याओं के। सूखे के चरम दौर में अनेक गांवों में पशुधन इतना कम हो गया है कि इसकी क्षतिपूर्ति हो पाना बहुत कठिन है। पलायन जीवन का अनिवार्य हिस्सा हो गया है। किसानों पर कर्ज का दबाव इतना है कि भविष्य अंधकारमय न

परमाणु ऊर्जा के तेज प्रसार के खतरे
Posted on 23 May, 2011 12:37 PM

यह समय सिद्ध है कि परमाणु ऊर्जा न तो साफ सुथरी है और न ही सस्ती! इसके अलावा दुर्घटना की स्थिति में होने वाले विनाश का आकलन कर पाना भी कठिन है। इसके विकिरण सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में विद्यमान रहेंगे और मानवता को नुकसान पहुंचाते रहेंगे। भारत के राजनीतिज्ञों ने परमाणु ऊर्जा विकास को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है और देश की सुरक्षा को दरकिनार कर दिया है।

भारत सरकार परमाणु ऊर्जा के तेज प्रसार का निर्णय ले चुकी है। नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से अभी तक हम जितनी बिजली पूरे देश में प्राप्त कर सके हैं, उससे कहीं अधिक बिजली निकट भविष्य में मात्र एक परियोजना, महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के रत्नागिरी जिले में स्थित जैतापुरा जहां 1650 मेगावाट के छः सयंत्र लगाने से अथवा 9900 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता से प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। इस विशालकाय परियोजना का विरोध वैसे तो स्थानीय लोग आरंभ से कर रहे हैं, पर जापान के फुकुशिमा हादसे के बाद इस विरोध ने और अधिक जोर पकड़ा है। वैश्विक जन-विरोध को फुकुशिमा के बाद बेहतर समझा जा रहा है और उसे अधिक व्यापक समर्थन मिल रहा है। परंतु महाराष्ट्र सरकार के दृष्टिकोण में बहुत कम परिवर्तन आया है। वह इस परियोजना को हर हालत में आगे ले जाने के लिए तैयार लगती है। भारत सरकार के दृष्टिकोण में बस इतना सा फर्क आया है कि सुरक्षा पक्ष को थोड़ा सा और पक्का कर दिया जाए।
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