कूड़ा बीनने वालों को मिली नई संभावनाएं

नगर निगम व पुलिस से संपर्क स्थापित कर कूड़ा बीनने वालों को परेशान करने वाली प्रवृत्तियों पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकी। महिलाओं को अपने बच्चों को इस कार्य में लगाने से रोकने व उन्हें स्कूल में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया गया व इसके लिए उन्हें कुछ सहायता भी दी गई। इस तरह इस कार्य से बाल मजदूरी पहले की अपेक्षा काफी कम हुई। पुणे व पिंपरी नगर-निगम ने कूड़ा बीनने वालों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना स्वीकार की तथा इसके लिए प्रीमियम भी नगर-निगम की ओर से ही भरा जाता है।

वैसे तो हमारे शहरों में अधिकांश कूड़ा बीनने वालों का जीवन बहुत दर्दनाक है और उनके हितों की बहुत उपेक्षा हुई है, पर हाल के समय में बदलाव के कुछ संकेत भी मिले हैं। अब इस बारे में यह समझ बनने लगी है कि कूड़ा बीनने वाले कई कठिनाइयां व उपेक्षा सहते हुए भी समाज में मूल्यवान योगदान दे रहे हैं। इस समझ के आधार पर कुछ ऐसे प्रयास आरंभ हुए हैं जो कूड़ा बीनने वालों की आजीविका को बेहतर बनाना चाहते हैं व साथ ही इन प्रयासों को पर्यावरण की रक्षा व स्वच्छता-सफाई के व्यापक उद्देश्यों से जोड़ना चाहते हैं।ऐसा ही एक उम्मीद भरा प्रयास पुणे व आसपास के क्षेत्र में 'कागद कछ पत्र कष्टकारी पंचायत' नामक कूड़ा बीनने वालों के संगठन की ओर से हो रहा है। इस संगठन के आरंभ होने से पहले यहां कू़ड़ा बीनने वालों की स्थिति बहुत दर्दनाक थी।

ये मजदूर पूरी तरह उपेक्षित थे। उन्हें समय-समय पर पुलिस व चौकीदार परेशान करते थे। मेहनत से एकत्रित किए गए कूड़े की बिक्री के समय व्यापारी कम तोलकर उन्हें कम पैसे देते थे। अधिकांश कार्य महिलाएं करती थीं पर प्रायः बच्चे भी उनके साथ आ जाते थे जिससे वे शिक्षा से वंचित हो जाते थे। इन स्थितियों ने सामाजिक कार्यकर्ता मोहन नानावड़े को परेशान किया व उन्होंने क्षेत्र के सबसे वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता बाबा आधव से अपील की कि इन मजदूरों के लिए संगठन बनाना जरूरी है। अपनी व्यस्तताओं के बावजूद बाबा आधव ने इस कार्य को अपना पूरा समर्थन व प्रोत्साहन दिया, जिससे कम समय में ही नानावड़े के प्रयास को अच्छी सफलता मिलने लगी। नगर निगम व पुलिस से संपर्क स्थापित कर कूड़ा बीनने वालों को परेशान करने वाली प्रवृत्तियों पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकी।

महिलाओं को अपने बच्चों को इस कार्य में लगाने से रोकने व उन्हें स्कूल में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया गया व इसके लिए उन्हें कुछ सहायता भी दी गई। इस तरह इस कार्य से बाल मजदूरी पहले की अपेक्षा काफी कम हुई। पुणे व पिंपरी नगर-निगम ने कूड़ा बीनने वालों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना स्वीकार की तथा इसके लिए प्रीमियम भी नगर-निगम की ओर से ही भरा जाता है। सदस्यों के अपने प्रीमियम से जीवन बीमे की व्यवस्था भी की गई। इसके अतिरिक्त साहूकारों के ऊंचे ब्याज के कर्ज से अपने सदस्यों की रक्षा के लिए इस संगठन ने अपनी सहकारी साख समिति का गठन किया जिससे अन्य सदस्यों को आसानी से व कम ब्याज पर कर्ज मिल जाता है।

रद्दी की बिक्री के लिए एक उपक्रम की स्थापना भी संगठन की ओर से की गई। इन विभिन्न सार्थक गतिविधियों के बीच संगठन की सदस्य संख्या बढ़ कर 6000 के आसपास पहुंच गई है। इस संगठन ने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन भी बनाए हैं जिससे कि कूड़ा बीनने वाले मजदूरों की भलाई के प्रयासों को और व्यापक बनाया जा सके। यह एक ऐसा मॉडल है जो आजीविका बेहतर करने, शहर को स्वच्छ रखने व पर्यावरण को सुधारने के उद्देश्यों को एक साथ जोड़ता है। उम्मीद है कि इस तरह के प्रयासों को बढ़ती मान्यता मिलेगी व पुणे व आसपास के क्षेत्र के यह मूल्यवान अनुभव अधिक व्यापक स्तर पर अपनाए जाएंगे।

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