विज्ञान पर्यावरण केन्द्र द्वारा कोयले और लिग्नाइट पर आधारित ताप विद्युत संयन्त्रों की कार्य प्रणाली व दुष्प्रभावों को लेकर किया गया अध्ययन आगामी 21 फरवरी को सार्वजनिक किया जाएगा। इस अध्ययन में कार्य, कार्य प्रणाली और परिणाम की हरित गुणवत्ता के आधार पर तापविद्युत संयन्त्रों की ग्रीन रेटिंग करने का भी प्रस्ताव है; कौन सा ताप विद्युत संयन्त्र सबसे अच्छा है और कौन सबसे बेकार? उनका मानना है कि ग्रीन रेटिंग अध्ययनों के जरिए से उद्योगों को पर्यावरण की दृष्टि से अपनी कार्य प्रणाली बेहतर करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा सकेगा। यदि पर्यावरण के भिन्न घटक हमारे जिन्दा रहने के लिए जरूरी है, तो बिजली भी आज हमारी बुनियादी जरूरतों का हिस्सा बनकर महत्वपर्ण बन गई है। बहस, बिजली के अनुशासित उपयोग के अलावा अब सिर्फ इस पर आकर टिक गई है कि हम अपनी जरूरत की बिजली किस स्रोत से और कितनी कुशलता के साथ उत्पादित करें। हवा, सूरज, जैविक तथा भू-तापीय स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन को लेकर चर्चा चाहे कितनी ही हो, हकीकत यही है कि भारत में उत्पादित होने वाली कुछ बिजली का सबसे बड़ा हिस्सा ताप वि़द्युत संयन्त्रों द्वारा ही उत्पादित किया जाता है। किन्तु तापविद्युत संयन्त्रों की ख्याति, एक पर्यावरण मित्र के तौर पर तो कभी नहीं रही।
आम धारणा
ताप विद्युत संयन्त्रों को लेकर आम धारणा यह है कि ये पर्यावरण का नुकसान करते हैं। इनसे निकलने वाली राख तथा गर्म पानी स्थानीय आबादी, मिट्टी, उसकी नमी, वनस्पति तथा जल जीवों के लिए नुकसानदेह होती है। पर्यावरण कार्यकर्ता, ताप विद्युत संयन्त्रों को लेकर इसी आधार पर अक्सर आपत्तियाँ दर्ज कराते रहते हैं।
जमीनी हकीकत और आगे सुधार की सम्भावनाएँ क्या है? यह समझने के लिए जानना जरूरी है कि क्या पर्यावरण का कोई नुकसान किए बगैर अथवा ऐसे न्यूनतम नुकसान के साथ ताप बिजली निर्माण के काम को अंजाम दिया जा सकता है, जिसकी क्षति पूर्ति सम्भव हो? यदि यह सम्भव है तो क्या भारत के ताप विद्युत संयन्त्र ऐसा कर रहे हैं? यदि हाँ, तो वे कौन से संयन्त्र हैं? इनमें कितने सरकारी हैं और कितने निजी? ताप विद्युत संयन्त्र निकलने वाले ठोस, गैसीय व तरल कचरे का सर्वश्रेष्ठ निष्पादन कैसे सम्भव है? इसके आर्थिक पहलू क्या हैं? क्या ताप विद्युत संयन्त्रों के कचरे का पुर्नोपयोग सम्भव है? यदि हाँ, तो कैसे? उनसे बनने वाले उत्पाद क्या हैं? उनके उपयोग क्या हैं?
ये ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर ताप विद्युत संयन्त्रों के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को लेकर उठते रहे सवालों के सही और तथ्यात्मक उत्तर देने में मददगार हो सकते हैं। विज्ञान पर्यावरण केन्द्र, नई दिल्ली द्वारा किया गया एक द्विवर्षीय अध्ययन सम्भवतः उक्त प्रश्नों के तथ्यात्मक उत्तर दे।
गौरतलब है कि विज्ञान पर्यावरण केन्द्र, स्व. श्री अनिल अग्रवाल जैसे जुझारु, स्पष्टवादी और पर्यावरण के लिए समर्पित अध्ययनकर्ता द्वारा स्थापित अध्ययन केन्द्र है। आजकल, नामी पर्यावरण अध्ययनकर्ता बहन सुनीता नारायण इसकी मुखिया हैं। यह अध्ययन केन्द्र सीमेंट, लोहा, शीतलपेय, मसाले तथा अन्य खाद्य पदार्थों को लेकर अपनी अध्ययन रिपोर्ट्स के जरिए पहले भी कई अध्ययन कर चुका है।
आमन्त्रण आया है कि विज्ञान पर्यावरण केन्द्र द्वारा कोयले और लिग्नाइट पर आधारित ताप विद्युत संयन्त्रों की कार्य प्रणाली व दुष्प्रभावों को लेकर किया गया अध्ययन आगामी 21 फरवरी को सार्वजनिक किया जाएगा। इस अध्ययन में कार्य, कार्य प्रणाली और परिणाम की हरित गुणवत्ता के आधार पर तापविद्युत संयन्त्रों की ग्रीन रेटिंग करने का भी प्रस्ताव है; कौन सा ताप विद्युत संयन्त्र सबसे अच्छा है और कौन सबसे बेकार? उनका मानना है कि ग्रीन रेटिंग अध्ययनों के जरिए से उद्योगों को पर्यावरण की दृष्टि से अपनी कार्य प्रणाली बेहतर करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
मेरा मानना है कि ग्रीन रेटिंग का नफा-नुकसान सबसे पहले और सबसे ज्यादा तो खुद ताप विद्युत संयन्त्रों को होगा। मेरे जैसे पानी-पर्यावरण पर लिखने-पढ़ने वाले की रुचि तो यह समझने में होगी कि ताप विद्युत संयन्त्रों को लेकर उठाए जाते प्रश्नों में कितना सच है और कितना मिथक?
इस उम्मीद के साथ मैंने विज्ञान पर्यावरण केन्द्र द्वारा आयोजित इस रिपोर्ट से रुबरु होने का निश्चय किया है। आप उपयोगी समझें, तो आप भी आएँ।
कार्यक्रम निम्नानुसार है :
सी एस ई ग्रीन रेटिंग परियोजना (ताप विद्युतसंयन्त्र) रिपोर्ट जारी करने का मौका
तारीख : 21 फरवरी, 2015
दिन : शनिवार
समय : सायं 4.30 बजे से 6.30 बजे तक।
स्थान : जेकेरेन्डा हाॅल, प्रथम तल, इण्डिया हैबिटेट सेंटर,
लोदी रोड, नई दिल्ली-110003
अधिक जानकारी अथवा अपनी उपस्थिति की सूचना देने के लिए हमें मेल कर सकते हैं।
ईमेल : vikas@cseindia.org
आम धारणा
ताप विद्युत संयन्त्रों को लेकर आम धारणा यह है कि ये पर्यावरण का नुकसान करते हैं। इनसे निकलने वाली राख तथा गर्म पानी स्थानीय आबादी, मिट्टी, उसकी नमी, वनस्पति तथा जल जीवों के लिए नुकसानदेह होती है। पर्यावरण कार्यकर्ता, ताप विद्युत संयन्त्रों को लेकर इसी आधार पर अक्सर आपत्तियाँ दर्ज कराते रहते हैं।
जमीनी प्रश्न
जमीनी हकीकत और आगे सुधार की सम्भावनाएँ क्या है? यह समझने के लिए जानना जरूरी है कि क्या पर्यावरण का कोई नुकसान किए बगैर अथवा ऐसे न्यूनतम नुकसान के साथ ताप बिजली निर्माण के काम को अंजाम दिया जा सकता है, जिसकी क्षति पूर्ति सम्भव हो? यदि यह सम्भव है तो क्या भारत के ताप विद्युत संयन्त्र ऐसा कर रहे हैं? यदि हाँ, तो वे कौन से संयन्त्र हैं? इनमें कितने सरकारी हैं और कितने निजी? ताप विद्युत संयन्त्र निकलने वाले ठोस, गैसीय व तरल कचरे का सर्वश्रेष्ठ निष्पादन कैसे सम्भव है? इसके आर्थिक पहलू क्या हैं? क्या ताप विद्युत संयन्त्रों के कचरे का पुर्नोपयोग सम्भव है? यदि हाँ, तो कैसे? उनसे बनने वाले उत्पाद क्या हैं? उनके उपयोग क्या हैं?
ये ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर ताप विद्युत संयन्त्रों के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को लेकर उठते रहे सवालों के सही और तथ्यात्मक उत्तर देने में मददगार हो सकते हैं। विज्ञान पर्यावरण केन्द्र, नई दिल्ली द्वारा किया गया एक द्विवर्षीय अध्ययन सम्भवतः उक्त प्रश्नों के तथ्यात्मक उत्तर दे।
गौरतलब है कि विज्ञान पर्यावरण केन्द्र, स्व. श्री अनिल अग्रवाल जैसे जुझारु, स्पष्टवादी और पर्यावरण के लिए समर्पित अध्ययनकर्ता द्वारा स्थापित अध्ययन केन्द्र है। आजकल, नामी पर्यावरण अध्ययनकर्ता बहन सुनीता नारायण इसकी मुखिया हैं। यह अध्ययन केन्द्र सीमेंट, लोहा, शीतलपेय, मसाले तथा अन्य खाद्य पदार्थों को लेकर अपनी अध्ययन रिपोर्ट्स के जरिए पहले भी कई अध्ययन कर चुका है।
क्या उत्तर देगी रिपोर्ट?
आमन्त्रण आया है कि विज्ञान पर्यावरण केन्द्र द्वारा कोयले और लिग्नाइट पर आधारित ताप विद्युत संयन्त्रों की कार्य प्रणाली व दुष्प्रभावों को लेकर किया गया अध्ययन आगामी 21 फरवरी को सार्वजनिक किया जाएगा। इस अध्ययन में कार्य, कार्य प्रणाली और परिणाम की हरित गुणवत्ता के आधार पर तापविद्युत संयन्त्रों की ग्रीन रेटिंग करने का भी प्रस्ताव है; कौन सा ताप विद्युत संयन्त्र सबसे अच्छा है और कौन सबसे बेकार? उनका मानना है कि ग्रीन रेटिंग अध्ययनों के जरिए से उद्योगों को पर्यावरण की दृष्टि से अपनी कार्य प्रणाली बेहतर करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
मेरा मानना है कि ग्रीन रेटिंग का नफा-नुकसान सबसे पहले और सबसे ज्यादा तो खुद ताप विद्युत संयन्त्रों को होगा। मेरे जैसे पानी-पर्यावरण पर लिखने-पढ़ने वाले की रुचि तो यह समझने में होगी कि ताप विद्युत संयन्त्रों को लेकर उठाए जाते प्रश्नों में कितना सच है और कितना मिथक?
इस उम्मीद के साथ मैंने विज्ञान पर्यावरण केन्द्र द्वारा आयोजित इस रिपोर्ट से रुबरु होने का निश्चय किया है। आप उपयोगी समझें, तो आप भी आएँ।
कार्यक्रम निम्नानुसार है :
सी एस ई ग्रीन रेटिंग परियोजना (ताप विद्युतसंयन्त्र) रिपोर्ट जारी करने का मौका
तारीख : 21 फरवरी, 2015
दिन : शनिवार
समय : सायं 4.30 बजे से 6.30 बजे तक।
स्थान : जेकेरेन्डा हाॅल, प्रथम तल, इण्डिया हैबिटेट सेंटर,
लोदी रोड, नई दिल्ली-110003
अधिक जानकारी अथवा अपनी उपस्थिति की सूचना देने के लिए हमें मेल कर सकते हैं।
ईमेल : vikas@cseindia.org
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Post By: RuralWater