अरुण तिवारी

अरुण तिवारी
उड़ीसा भूमि बिल विरोध में विशाल धरना
Posted on 21 Sep, 2015 09:51 AM
तिथि : 14 अक्तूबर, 2015
स्थान : राज्यपाल कार्यालय, भुवनेश्वर
आयोजक : भूमि अधिकार आन्दोलन, उड़ीसा


खनिजों के मामले में समृद्ध होने के बावजूद, उड़ीसा भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक है। उड़ीसा की काफी आबादी आदिवासी और जनजातीय है। अन्य प्रदेशों की तुलना में अपने जीवनयापन के लिये उड़ीसा आबादी का ज्यादा प्रतिशत खेती, जंगल और मज़दूरी पर आश्रित है। उड़ीसा में भूमि के साथ खिलवाड़ अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ाने वाला तो साबित होगा ही, गरीब की चोटी अमीर के हाथ में सौंप देने वाला भी साबित होगा। गत् एक वर्ष से ज़मीन बचाने की राजनैतिक और सामाजिक जंग चल रही है। इसमें कृषि से लेकर नदी, तालाब, पहाड़, पठार और जंगल की ज़मीन बचाने की जंग भी शामिल है। विरोध से विवश होकर केन्द्र सरकार ने कदम पीछे हटाए भी हैं। अब गेंद, राज्यों के पाले में है। क्या राज्यों ने कोई ठोस वैधानिक आश्वासन प्रस्तुत किया। सम्भवतः नहीं।

उड़ीसा से आई खबर तो उलटी ही है। ‘भूमि अधिकार आन्दोलन’ की ओर जारी विज्ञप्ति में श्री नरेन्द्र मोहंती ने उड़ीसा भूमि बिल - 2015 की असल मंशा भूमि कब्जाना करार दिया है। संगठन के बिल को विपक्ष की अनुपस्थिति में बिना बहस के मंजूर कराने की कवायद को बीजू जनता दल पार्टी की सरकार का अलोकतांत्रिक कदम बताया है।
Arun Tiwari
श्री अय्यर के बिना यह नदी दिवस
Posted on 20 Sep, 2015 12:23 PM

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष


27 सितम्बर को हर वर्ष आना है अन्तरराष्ट्रीय नदी दिवस बनकर। किन्तु अब श्री रामास्वामी आर. अय्यर नहीं आएँगे। मुद्दा नदी का हो या जलनीति का, कार्यक्रम छोटा हो या बड़ा; बाल सुलभ सरलता.. मुस्कान लिये दुबले-पतले-लम्बे-गौरवर्ण श्री अय्यर सहजता से आते थे और सबसे पीछे की खाली कुर्सियों में ऐसे बैठ जाते थे, मानों वह हों ही नहीं। वह अब सचमुच नहीं हैं। 9 सितम्बर, 2015 को वह नहीं रहे। कई आयोजनों, रचनाओं और आन्दोलनों की ‘बैकफोर्स’ चली गई।

श्री अय्यर यदि कोई फिल्म स्टार, खिलाड़ी, नेता, बड़े अपराधी या आतंकवादी होते, तो शायद यह हमारे टी वी चैनलों के लिये ‘प्राइम न्यूज’ और अखबारों के लिये ‘हेडलाइन’ होती।

नई दिल्ली के लोदी रोड स्थित श्मशान गृह में हुए उनके अन्त्येष्टि संस्कार में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर शोक जताने वालों की सूची अच्छी-खासी लम्बी होती; कैमरों की कतार होती; फ्लैश चमके होते, किन्तु यह सब नहीं हुआ; क्योंकि वह, वे सभी नहीं थे।
R. Swami Ayyar
मेरी नदी यात्रा
Posted on 20 Sep, 2015 10:59 AM

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष

Arun Tiwari
सिर्फ अक्षरज्ञान पर नहीं टिकेगा टिकाऊ विकास
Posted on 28 Aug, 2015 03:25 PM

विश्व साक्षरता दिवस 08 सितम्बर 2015 पर विशेष


वर्ष 2011 की जनगणना मुताबिक 74.04 प्रतिशत भारतीयों को अक्षरज्ञानी कहा जा सकता है। वर्गीकरण करें, तो 82.14 प्रतिशत पुरुष और 65.46 महिलाओं को आप इस श्रेणी में रख सकते हैं। आप कह सकते हैं कि आगे बढ़ने और जिन्दगी की रेस में टिकने के लिये अक्षर ज्ञान जरूरी है।
water
इन अँखियन जस जन-गन-मन देखा’ : स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद
Posted on 20 Aug, 2015 04:36 PM

माँ गंगा की निर्मलता-अविरलता के संघर्ष की कहानी एक शताब्दी से अधिक पुरानी हो चुकी है। इतने लम्बे समय में अपने प्राणों को संकट में डालकर भी गंगा की अविरलता-निर्मलता सुनिश्चित करने के संकल्प पर डटे रहने वाले नाम चुनिंदा ही हैं। कह सकते हैं कि उनमे से एक नाम स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का भी है। पूर्व में हम सभी उन्हें प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के नाम से जानते रहे हैं। संयोग से स्वामी जी के जीवन और गंगा संघर्ष के बारे में बहुत कम लिखा और सुना गया है। सुखद है कि हिन्दी वाटर पोर्टल से बतौर लेखक-सलाहकार जुड़े श्री अरुण तिवारी को दो वर्ष पूर्व उनसे लम्बी बात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने बातचीत को शृंखलाबद्ध तरीके से प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। प्रस्तुत है इस बातचीत का एक परिचय :

.खास परिचितों के बीच ‘जी डी’ के सम्बोधन से चर्चित सन्यासी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के गंगापुत्र होने के बारे में शायद ही किसी को सन्देह हो। बकौल श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी, वह भी गंगापुत्र हैं। “मैं आया नहीं हूँ; मुझे माँ गंगा ने बुलाया है।’’ - श्री मोदी का यह बयान तो बाद में आया, गंगा पुत्र स्वामी सानंद की आशा पहले बलवती हो गई थी कि श्री मोदी के नेतृत्व वाला दल केन्द्र में आया, तो गंगा जी को लेकर उनकी माँगों पर विचार अवश्य किया जाएगा। हालांकि उस वक्त तक राजनेताओं और धर्माचार्यों को लेकर स्वामी सानंद के अनुभव व आकलन पूरी तरह आशान्वित करने वाले नहीं थे; बावजूद इसके यदि आशा थी तो शायद इसलिये कि इस आशा के पीछे शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी का वह आश्वासन तथा दृढ़ संकल्प था, जो उन्होंने स्वामी सानंद के कठिन प्राणघातक उपवास का समापन कराते हुए वृन्दावन में क्रमशः दिया व दिखाया था।

GD Agrawal
सन्तुलन बिगाड़ती, असन्तुलित आबादी
Posted on 16 Aug, 2015 04:25 PM
जनसंख्या दबाव के कारण नदियों के बौखलाने अथवा पगलाने के उदाहरणों से
population growth
डिपेंडेंस वाया वर्ल्ड वाटर लीग-इण्डिया 2020
Posted on 13 Aug, 2015 01:25 PM
आओ इण्डि! दिवस-देवस खेलते हैं। देवस समझती हो न?
drinking water
यहं सूखा, वहं बाढ़
Posted on 13 Aug, 2015 11:52 AM
वर्ष-2015, भारत के लिये सूखा वर्ष है या बाढ़ वर्ष?

बाढ़ और सुखाड़ के दुष्प्रभावों के बढ़ाने में इंसानी हाथ को लेकर एक पहलू और है। घोषणा चाहे बाढ़ की हो या सुखाड़ की, तद्नुसार अपनी फसलों और किस्मों में बदलाव की सावधानी अभी ज्यादातर भारतीय किसानों की आदत नहीं बनी है। सुखद है कि पंजाब ने धान की एक तरफा रोपाई की जगह विविध फसल बोने का निर्णय लिया है। किन्तु कम वर्षा की घोषणा बावजूद, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों ने इस वर्ष की धान की रोपाई में कोई कमी नहीं की। इस प्रश्न का कोई एक उत्तर नहीं हो सकता। अब तक हुई बारिश और आई बाढ़ के आधार पर एक भारतीय इसे ‘सूखा वर्ष’ कह रहा है, तो दूसरा ‘बाढ़ वर्ष’? एक जून, 2015 से 10 अगस्त, 2015 तक के आँकड़ों के मुताबिक देश के 355 जिलों में सामान्य से अधिक और 258 में सामान्य से कम बारिश हुई है। इस आधार पर वर्ष 2015 भारत के लिये अधिक वर्षा वर्ष है। एक जून से अगस्त प्रथम सप्ताह तक का राष्ट्रीय औसत देखें, तो वर्षा दीर्घावधि औसत से छह फीसदी कम रही। तय मानकों के मुताबिक, इसे आप सामान्य वर्षा की श्रेणी रख सकते हैं। इस आधार पर यह सामान्य वर्षा वर्ष है।

ग़ौरतलब है कि 1951-2000 का दीर्घावधि औसत 89 सेंटीमीटर है। किसी भी मानसून काल में यदि औसत, दीर्घावधि औसत का 96 से 104 फीसदी हो, तो सामान्य माना जाता है। यदि यह 90 से 96 फीसदी हो, तो सामान्य से कम और 90 फीसदी से कम हो, तो सूखे की स्थिति मानी जाती है और यदि यह 104 से 110 फीसदी हो, तो सामान्य से अधिक वर्षा मानी जाती है। 110 फीसदी से अधिक होने पर इसे अत्यधिक वर्षा की श्रेणी में माना जाता है।
drought
प्यास और विकास
Posted on 02 Jul, 2015 12:40 PM
एक प्यास पानी की होती है और एक विकास की। पानी की प्यास जीवन बचाती है और विकास की प्यास सभ्यताओं का अग्रणी बनाती है। जाहिर है कि पानी और विकास दोनों की प्यास का होना जरूरी है। किन्तु पानी की प्यास बुझाए बगैर, विकास की प्यास की पूर्ति कभी नहीं हो सकती। यह एक वैज्ञानिक सत्य है। ऐसे में बगैर विनाश, विकास की प्यास रखने वालों के समक्ष यदि आज कोई सबसे बड़ी चुनौती है, तो यह कि इन दो प्यासों के बीच सन्तु
water
हिण्डन-यमुना-गंगा पंचायत का निर्णय
Posted on 20 Jun, 2015 03:49 PM

दिनांक 11 जून, 2015

Jal jan jodo abhiyan
×