अरुण तिवारी

अरुण तिवारी
मकर संक्रान्ति, फिर बने राष्ट्र विमर्श का नदी पर्व
Posted on 13 Jan, 2016 11:07 AM

मकर सक्रान्ति पर विशेष

 


मकर सक्रान्ति ही वह दिन है, जब सूर्य उत्तरायण होना शुरू करता है और एक महीने, मकर राशि में रहता है; तत्पश्चात सूर्य, अगले पाँच माह कुम्भ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशि में रहता है। एक दिन का हेरफेर हो जाये, तो अलग बात है, अन्यथा मकर सक्रान्ति का यह शुभ दिन, हर वर्ष अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से 14 जनवरी को आता है।

पंचांग के मुताबिक, इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी की आधी रात के बाद प्रातः एक बजकर, 26 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगा।

अब चूँकि मकर राशि में प्रवेश के बाद का कुछ समय संक्रमण काल माना जाता है; अतः सूर्योदय के सात घंटे, 21 मिनट के बाद यानी दिन में एक बजकर, 45 मिनट से संक्रान्ति का पुण्यदायी समय शुरू होगा। इस नाते इस वर्ष मकर सक्रान्ति स्नान 15 जनवरी को होगा।

घोषणाओं से आगे कब बढ़ेगी नमामि गंगे
Posted on 09 Jan, 2016 02:00 PM

यह सच है कि गंगा की निर्मलता-अविरलता बरस-दो-बरस का काम नहीं है। यह सतत् साधना और संकल्प का दीर्घकालिक काम है, किन्तु यहाँ तो गंगा प्रदूषण मुक्ति अकेले की कामना करते 30 बरस बीत गए; गंगा कार्ययोजना से लेकर नमामि गंगे तक।

नमामि गंगे ने भी नित नए बयान, नई घोषणा, नए सन्देश और नई तारीखें तय करने में डेढ़ बरस गुजार दिया। इस डेढ़ बरस में जल मंत्रालय का नाम बदला गया। लोकसभा चुनाव से पूर्व गंगा किनारे घूम-घूमकर गंगा सन्देश देने में लगी साध्वी सुश्री उमा भारती जी का मंत्रालय का प्रभार दिया गया।

वर्ष 2020 तक गंगा संरक्षण के लिये 20 हजार करोड़ की मंजूरी से ‘नमामि गंगे’ का श्री गणेश किया गया। कार्यक्रम को अंजाम देने के लिये प्रधानमंत्री के अलावा दो श्री नितिन गडकरी और श्री प्रकाश जावड़ेकर को भी इसमें महती भूमिका दी गई।
51 गंगा प्रश्न, उत्तर सिर्फ एक
Posted on 09 Jan, 2016 10:15 AM


गंगा को लेकर मन में उठे 51 प्रश्न और उत्तर में सिर्फ एक वाक्य को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है कि हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल के पाठक इससे सहमत होंगे।

 

शुभकामना फलीभूत करने के 21 जलवायु संकल्प
Posted on 25 Dec, 2015 03:30 PM

हिन्दी वाटर पोर्टल के आदरणीय पाठकों को ईद, क्रिसमस के साथ-साथ नूतन वर्ष 2016 की शुभकामना।

.शुभकामना है कि आप स्वस्थ जीएँ; मरें, तो सन्तानों को साँसों और प्राणजयी संसाधनों का स्वस्थ-समृद्ध संसार देकर जाएँ। संकल्प करें; नीचे लिखे 21 नुस्खे अपनाएँ; आबोहवा बेहतर बनाएँ; मेरी शुभकामाना को 100 फीसदी सच कर जाएँ।

1. स्वच्छता बढ़ाएँ।
कचरा चाहे, डीजल में हो अथवा हमारे दिमाग में; ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ाने में उसकी भूमिका सर्वविदित है, किन्तु स्वच्छता का मतलब, शौचालय नहीं होता। शौचालय यानी शौच का घर यानी शौच को एक जगह जमा करते जाना। गन्दगी को जमा करने से कहीं स्वच्छता आती है?

सूखा राहत राज बनाम स्वराज
Posted on 25 Dec, 2015 11:58 AM
यह बात कई बार दोहराई जा चुकी है कि बाढ़ और सुखाड़ अब असामान्य नहीं, सामान्य क्रम है। बादल, कभी भी-कहीं भी बरसने से इनकार कर सकते हैं। बादल, कम समय में ढेर सारा बरसकर कभी किसी इलाके को डुबो भी सकते हैं। वे चाहें, तो रिमझिम फुहारों से आपको बाहर-भीतर सब तरफ तर भी कर सकते हैं; उनकी मर्जी।

जब इंसान अपनी मर्जी का मालिक हो चला है, तो बादल तो हमेशा से ही आज़ाद और आवारा कहे जाते हैं। वे तो इसके लिये स्वतंत्र हैं ही। भारत सरकार के वर्तमान केन्द्रीय कृषि मंत्री ने जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय खेती पर आसन्न, इस नई तरह के खतरे को लेकर हाल ही में चिन्ता व्यक्त की है।

लब्बोलुआब यह है कि मौसमी अनिश्चितता आगे भी बनी रहेगी; फिलहाल यह सुनिश्चित है। यह भी सुनिश्चित है कि फसल चाहे रबी की हो या खरीफ की; बिन बरसे बदरा की वजह से सूखे का सामना किसी को भी करना पड़ सकता है। यदि यह सब कुछ सुनिश्चित है, तो फिर सूखा राहत की हमारी योजना और तैयारी असल व्यवहार में सुनिश्चित क्यों नहीं?
बयानों के आइने में कोप 21
Posted on 22 Dec, 2015 04:17 PM

‘कोप 21’ यानी कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज। एक समझौते के साथ जलवायु के मसले पर सबसे अधिक संख्या में राष्ट्र प्रमुखों के जुटाव का यह आयोजन हाल ही में पेरिस में सम्पन्न हुआ। समझौता कितना मजबूत है, कितना कमजोर? कितना राजनयिक था, कितना प्रकृति हितैषी? पेश है बयानों के आइने में एक जाँच:

पेरिस जलवायु समझौते के किन्तु-परन्तु
Posted on 21 Dec, 2015 12:34 PM
तैयारी के तीन माह, सम्मेलन के 12 दिन-12 रातें, 50 हजार प्रतिभागी और समझौता मसौदा के 31 पन्ने: जलवायु दुरुस्त करने के मसले पर वैश्विक सहमति के लिये जैसे यह सब कुछ नाकाफी था; जैसे सबने तय कर लिया था कि इस बार नाकामयाब नहीं लौटेंगे। पेरिस जलवायु सम्मेलन की तारीखों में एक रात व एक दिन और जोड़े गए; वार- शनिवार, तारीख - 12 दिसम्बर, 2015।

सुबह 27 पेजी नया मसौदा आया और शाम को नया क्षण। समय- रात के सात बजकर, 16 मिनट; सजी हुई नाम पट्टिकाएँ, उनके पीछे बैठे 196 देशों के प्रतिनिधि, फ्रांसीसी विदेश मंत्री लारेंट फेबियस की मंच पर वापसी, साथ में संयुक्त राष्ट्र उच्चाधिकारी और माइक पर एक उद्घोषणा - “पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर हो चुके हैं।’’
पर्यावरण पर एक दिवसीय कुरान कांफ्रेंस
Posted on 12 Dec, 2015 03:29 PM
तिथि : 13 दिसम्बर, 2015
दिन : रविवार
स्थान: केदारनाथ साहनी सभागार, डा. एस पी मुखर्जी सिविक सेंटर, मिंटो रोड (नजदीक ज़ाकिर हुसैन कॉलेज), दिल्ली


जलवायु परिवर्तन रोकने की मौजूदा वैश्विक जद्दोजहद के बीच यह जान लेना निस्सन्देह, अच्छा ही होगा कि पर्यावरण को लेकर कुरान का मज़हबी फरमान क्या हैं? कार्यक्रम की जानकारी देते हुए कुलपति डॉ. मुहम्मद असलम खान परवेज ने कहा कि मज़हब का नाजायज इस्तेमाल, समाज में मज़हब के बारे में ग़लतफहमी का एक प्रमुख स्रोत बन गया है। वक्त की माँग है कि दुनिया के लोग अपने आचरण में सुधार करें और प्रकृति के नियमों का पालन करें। हम सभी अपने-अपने मज़हब की तालीम को भले ही पूरी तरह न मानते हों, किन्तु हम सभी किसी-न-किसी मजहब का होने का दावा तो करते ही हैं। अतः मज़हबी होने के नाते भी हम सभी को ज़रूर याद कर लेना चाहिए कि दुनिया का कोई मज़हब ऐसा नहीं, जो कुदरत के खिलाफ जाने का फरमान जारी करता हो अथवा इजाज़त देता हो।

असहिष्णुता, अनैतिकता, हिंसा, भ्रष्टाचार और प्रदूषण काफी हद तक कुदरत व कुदरत की नियामतों के खिलाफ उठ रहे कदम हैं। इस बारे में इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान की शिक्षा क्या है, जानने का एक खास मौका है चौथी कुरान कांफ्रेस।

विषय


बढ़ते भ्रष्टाचार, घटते सदाचार, बढ़ती गैर कुदरती सोच और जीवनशैली की रफ्तार और इसके खतरे की चिन्ता आज सभी को है, हिन्दू को भी मुसलमां को भी। सभी जानते हैं कि कुदरत का कहर मजहबी भेदभाव से दूर है।
मानवाधिकार, मायने और पानी
Posted on 10 Dec, 2015 04:20 PM

विश्व मानवाधिकार दिवस, 10 दिसम्बर पर विशेष


क्या गजब की बात है कि जिस-जिस पर खतरा मँडराया, हमने उस-उस के नाम पर दिवस घोषित कर दिये! मछली, गोरैया, पानी, मिट्टी, धरती, माँ, पिता...यहाँ तक कि हाथ धोने और खोया-पाया के नाम पर भी दिवस मनाने का चलन चल पड़ा है। यह नया चलन है; संकट को याद करने का नया तरीका।

यूँ अस्तित्व में आया मानवाधिकार दिवस


संकट का एक ऐसा ही समय तक आया, जब द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। वर्ष 1939 -पूरे विश्व के लिये यह एक अंधेरा समय था। उस वक्त तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रुजावेल्ट ने अपने एक सम्बोधन में चार तरह की आज़ादी का नारा बुलन्द किया: अभिव्यक्ति की आज़ादी, धार्मिक आजादी, अभाव से मुक्ति और भय से मुक्ति।
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