अरुण तिवारी
सटीक समय पर बुन्देलखण्ड कार्यशाला
Posted on 19 Feb, 2016 10:14 AMतिथि : 25-26 फरवरी, 2016
समय : प्रातः 9.30 बजे से सायं 5 बजे तक।
स्थान : इण्डियन ग्रासलैंड एंड फॉडर रिसर्च इंस्टीट्यूट, झाँसी
आयोजक : जन जल जोड़ो अभियान
बुन्देलखण्ड में नई लूट का जो नया दौर आया है, उससे पर्यावरण और विकास की कुछ नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। गौर कीजिए कि आत्महत्या के सबसे ज्यादा आँकड़े उन्हीं जिलों के हैं, जहाँ सबसे ज्यादा खनन है और वन व चारे का संकट भी सबसे ज्यादा है। इन चुनौतियों पर चिन्तन इसलिये भी जरूरी है; चूँकि एक समय आई पी एस अधिकारी नरेन्द्र ने इन्हीं चुनौतियों को चुनौती देने की कोशिश की थी; बदले में उन्हें मौत दे दी गई। जन जल जोड़ो अभियान के संयोजक संजय सिंह द्वारा प्रेषित आमंत्रण पत्र में बुन्देलखण्ड संकट के जिक्र के साथ यह चिन्ता व्यक्त की गई है कि पहले से संकटग्रस्त इलाकों में पानी की कमी, वनों का विध्वंस और कृषि की अनिश्चितता का दौर जारी है। तीन साला अकाल, गैर मौसमी बारिश और ओलावृष्टि के कारण फसलें नष्ट हुईं हैं। ग्रामीण आबादी की आजीविका संकट में पड़ गई है; लिहाजा, आत्महत्या और पलायन के मामले बढ़े हैं। खेत बिना बोए रह गए हैं। पानी का संकट इतना गहरा है कि पेयजल की उपलब्धता भी अब संकट के दायरे में आ गई है।
जो कुछ किया गया, वह अपर्याप्त है। निस्सन्देह, समस्या का ऐसा समाधान हासिल करने की जरूरत है, जिससे बुन्देलखण्ड की पारिस्थितिकी के साथ-साथ स्थानीय आबादी की आजीविका व सम्मान का दीर्घकालिक हासिल सम्भव हो सके। स्पष्ट किया गया है कि जन जल जोड़ो अभियान द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का मुख्य मन्तव्य तत्काल राहत के कदमों की समीक्षा के साथ-साथ, बुन्देलखण्ड की खोई पारिस्थितिकी और ग्रामीण आर्थिकी को वापस हासिल करने के कदम तय करना है।
स्पष्ट हुई आदेश और अपील की मिलीभगत - स्वामी सानंद
Posted on 14 Feb, 2016 04:19 PM
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - पाँचवाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
दिसम्बर, 2008 तक मैंने तय कर लिया था कि फिर अनशन करुँगा। मेरे सामने प्रश्न था कि कहाँ करुँ? दिल्ली में पहला अनशन तो मैंने महाराणा प्रताप भवन में किया था।
27-28 जून तक वे भी कहने लगे थे कि कब खाली करोगे। मैंने सोचा कि दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित मालवीय स्मृति भवन में करुँ। सोच थी कि इसे बीएचयू एलुमनी एसोसिएशन ने बनवाया है; मैं भी बीएचयू एलुमनी ही हूँ और मालवीय जी का गंगाजी के लिये बहुत कन्ट्रीब्युशन था; अच्छा रहेगा। बी एम जायसवाल, मालवीय भवन के प्रबन्धक थे। उनसे मिला। वह खुश थे। उन्होंने कहा कि बोर्ड बदल गया है। अब महेश शर्मा जी इसके अध्यक्ष हैं। गिरधर मालवीय जी भी बोर्ड में हैं। बाद में पता चला कि ये तीनों समर्थन में थे, लेकिन सांसद राजा कर्णसिंह जी ने मना कर दिया।
हरित पंचाट पहुँची यमुना
Posted on 13 Feb, 2016 04:14 PM
उम्मीद थी कि लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने वाला ‘आर्ट ऑफ लिविंग’, यमुना के जीवन जीने की कला में खलल डालने से बचेगा; साथ ही वह यह भी नहीं चाहेगा कि उनके आयोजन में आकर कोई यमुना प्रेमी खलल डाले। किन्तु इस लेख के लिखे जाने तक जो क्रिया और प्रतिक्रिया हुई, उससे इस उम्मीद को झटका लगा है।
गौरतलब है कि इस आयोजन को मंजूरी दिये जाने के विरोध में ‘यमुना जिये अभियान’ संयोजक श्री मनोज मिश्र ने राष्ट्रीय हरित पंचाट में अपनी याचिका दायर कर दी है। याचिका में कहा गया है कि प्रतिबन्ध के बावजूद यमुना खादर की करीब 25 हेक्टेयर पर मलबा डम्प किया जा रहा है। उन्होंने इसे यमुना के पर्यावास के लिये घातक बताया है।
खाली जमीन : अनुचित नजरिया
Posted on 08 Feb, 2016 03:23 PMएक वक्त था, जब यमुना नेे आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर जी
यह मेरे लिये दूसरा झटका था : स्वामी सानंद
Posted on 07 Feb, 2016 03:43 PMस्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद का चौथा कथन, आपके समक्ष पठन-पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
18 जून को ऊर्जा सचिव, मेरे लिये उत्तराखण्ड सरकार का पत्र लेकर आये। मैंने उन्हें धन्यवाद किया; लिखा कि यदि उत्तराखण्ड ने यह बलिदान किया है, तो इसकी एवज में उत्तराखण्ड को कम्पनसेट करना चाहिए। मैं भी उसमें कन्ट्रीब्यूट करने को तैयार हूँ। इसी क्रम में 20 जून की दोपहर डैम समर्थकों का एक समूह आया। ठेकेदार लोग थे। उन्होंने मारपीट करने की कोशिश की। मेरा सारा परिवार वहाँ था; सो मारपीट तो नहीं कर पाये, लेकिन गाली-गलौच तो उन्होंने की ही।
दिल्ली शिफ्ट करने का निर्णय और साथी
जैसा कि मैंने पहले तय किया था, पत्र मिलने के बाद मैंने आगे का अनशन दिल्ली में जारी रखने की निश्चय दोहराया। यह निर्णय मेरा था, लेकिन मेरे इस निर्णय पर आदरणीय शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी, राजेन्द्र सिंह जी इससे खुश नहीं थे।
उन्हें मुझसे सहानुभूति है, लेकिन गंगाजी से नहीं - स्वामी सानंद
Posted on 01 Feb, 2016 10:45 AM
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद का तीसरा कथन आपके समक्ष पठन-पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
30 सितम्बर, 2013 : हित तीन तरह के होते हैं : एक-भौतिक पक्ष, दूसरा-दैविक पक्ष, जो मन, इच्छा...थिंकिंग से जुड़ा और तीसरा आध्यात्मिक पक्ष; यह सुप्रीम होता है। जैसे जब मैं जेल के हॉस्पिटल वार्ड में था, तो कुछ कैदी, स्वयं को रोगी बताकर भर्ती हो जाते थे। डॉक्टर जानते थे कि दर्द नापने का कोई थर्मामीटर नहीं है। यह दर्द, एक मानसिक पक्ष है।
आध्यात्मिक पक्ष..जैसे आत्मा के बारे में क्लियरिटी.. भारतीय दर्शन में जैसा है, वह आध्यात्मिक पक्ष है। गंगाजी का भौतिक पक्ष - इसमें जो गंगा जी का रोगनाशक पक्ष है, इसे कौन कोई समझता है; आजीविका को समझते हैं। इसीलिये गंगाजी का दोहन करना चाहते हैं।
भारतीय पथ : अतिभोग नहीं, सदुपयोग से बचेगा जीवन
Posted on 24 Jan, 2016 03:04 PMआज जलवायु परिवर्तन का भारतीय तकाजा यह है कि सरकार और समाज मिलकर एक ओर शिक्षा, कौशल, जैविक
क्या मैं भागीरथी का सच्चा बेटा हूँ
Posted on 24 Jan, 2016 12:04 PMदूसरा कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है...
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद- दूसरा कथन
तारीख : 30 सितम्बर, 2013। अस्पताल के बाहर खाने-पीने की दुकानों की क्या कमी, किन्तु उस दिन सोमवार था; मेेरे साप्ताहिक व्रत का दिन। एक कोने में जूस की दुकान दिखाई दी। जूस पी लिया; अब क्या करूँ?
स्वामी जी को आराम का पूरा वक्त देना चाहिए। इस विचार से थोड़ी देर देहरादून की सड़क नापी; थोड़ी देर अखबार पढ़ा और फिर उसी अखबार को अस्पताल के गलियारे में बिछाकर अपनी लम्बाई नापी। किसी तरह समय बीता। दरवाज़े में झाँककर देखा, तो स्वामी के हाथ में फिर एक किताब थी।
समय था -दोपहर दो बजकर, 10 मिनट। किताब बन्द की। स्वामी जी ने पूछा कि क्या खाया और फिर बातचीत, वापस शुरू।
‘गंगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं’ : स्वामी सानंद
Posted on 17 Jan, 2016 03:58 PMस्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद- प्रथम कथन
सन्यासी बाना धारण कर प्रो जीडी अग्रवाल जी से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का नामकरण हासिल गंगापुत्र का संकल्प किसी परिचय के मोहताज नहीं। जानने वाले, गंगापुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को ज्ञान, विज्ञान और संकल्प के एक संगम की तरह जानते हैं। माँ गंगा के सम्बन्ध में अपनी माँगों को लेकर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद द्वारा किये कठिन अनशन को करीब सवा दो वर्ष हो चुके हैं और ‘नमामि गंगे’ की घोषणा हुए करीब डेढ़ बरस, किन्तु माँगों को अभी भी पूर्ति का इन्तजार है। इसी इन्तजार में हम पानी, प्रकृति, ग्रामीण विकास एवं लोकतांत्रिक मसलों पर अत्यन्त संवेदनशील लेखक व पत्रकार श्री अरुण तिवारी जी द्वारा स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी से की लम्बी बातचीत को सार्वजनिक करने से हिचकते रहे, किन्तु अब स्वयं बातचीत का धैर्य जवाब दे गया है। अब समय आ गया है कि इस बातचीत को सार्वजनिक करें। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी), प्रत्येक रविवार आपको इस शृंखला का अगला कथन उपलब्ध कराता रहेगा; यह पोर्टल टीम का निश्चय है।
इस बातचीत की शृंखला में पूर्व प्रकाशित संवाद परिचय को पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें...
पहला कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
तारीख 01 अक्टूबर, 2013: देहरादून का सरकारी अस्पताल। समय सुबह के 10.36 बजे हैं। न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री अरविंद पांडे आकर जा चुके हैं। लोक विज्ञान संस्थान से रोज कोई-न-कोई आता है। श्री रवि चोपड़ा भी आये थे। मैं पहुँचा, कमरे में दो ही थे, नर्स और स्वामी सानंद जी। 110 दिन के उपवास के पश्चात भी चेहरे पर वही तेज, वही दृढ़ता!
जलवायु परिवर्तन : सूचना व जनसंचार तंत्र की भूमिका
Posted on 16 Jan, 2016 10:10 AM
विदित हो कि गत दो माह के दौरान जलवायु परिवर्तन के भिन्न पहलुओं पर मैंने कुछ अध्ययन, मनन और लेखन किया है, किन्तु मौसम विभाग के महानिदेशक डाॅ. लक्ष्मण सिंह राठौर एवं भारतीय कृषि अनुसन्धान केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ. एस. नरेश कुमार से हुई आकाशवाणी चर्चा के बाद मन बहुत उद्वेलित भी है और उत्साहित भी। इन्हीं भावों में विचरते रात भर नींद नहीं आई।