श्री अय्यर के बिना यह नदी दिवस

R. Swami Ayyar
R. Swami Ayyar

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष


27 सितम्बर को हर वर्ष आना है अन्तरराष्ट्रीय नदी दिवस बनकर। किन्तु अब श्री रामास्वामी आर. अय्यर नहीं आएँगे। मुद्दा नदी का हो या जलनीति का, कार्यक्रम छोटा हो या बड़ा; बाल सुलभ सरलता.. मुस्कान लिये दुबले-पतले-लम्बे-गौरवर्ण श्री अय्यर सहजता से आते थे और सबसे पीछे की खाली कुर्सियों में ऐसे बैठ जाते थे, मानों वह हों ही नहीं। वह अब सचमुच नहीं हैं। 9 सितम्बर, 2015 को वह नहीं रहे। कई आयोजनों, रचनाओं और आन्दोलनों की ‘बैकफोर्स’ चली गई।

श्री अय्यर यदि कोई फिल्म स्टार, खिलाड़ी, नेता, बड़े अपराधी या आतंकवादी होते, तो शायद यह हमारे टी वी चैनलों के लिये ‘प्राइम न्यूज’ और अखबारों के लिये ‘हेडलाइन’ होती।

नई दिल्ली के लोदी रोड स्थित श्मशान गृह में हुए उनके अन्त्येष्टि संस्कार में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर शोक जताने वालों की सूची अच्छी-खासी लम्बी होती; कैमरों की कतार होती; फ्लैश चमके होते, किन्तु यह सब नहीं हुआ; क्योंकि वह, वे सभी नहीं थे। फिर भी यह कुदरती संयोग ही था कि पूर्व घोषणा के अनुसार उत्तराखण्ड राज्य ने इसे ‘हिमालय दिवस’ के तौर पर मनाया। श्री अय्यर को याद रखने के लिये यह संयोग अच्छा है।

प्रथम राष्ट्रीय जल नीति निर्माण के अगुवा


कहने को श्री रामास्वामी आर. अय्यर, अन्य नौकरशाहों की तरह ही एक नौकरशाह थे। सरकारी दृष्टि से उनकी एक उपलब्धि, भारत सरकार के जलसंसाधन सचिव के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान ही 1987 में भारत की पहली राष्ट्रीय जल नीति बनना है; दूसरी उपलब्धि, गुजरात सरकार और मोदी जी के प्रिय, सरदार सरोवर बाँध को 1987 में मंजूरी दिलाने में तत्कालीन पर्यावरण एवं वन सचिव श्री टी एन शेषन के साथ मिलकर श्री रामास्वामी आर. अय्यर द्वारा निभाई मुख्य भूमिका हो सकती है, किन्तु नदी और पानी के असली समाज के लिये तो उनकी उपलब्धियाँ अनेक हैं। उनके लिये, उन्हें कोई कैसे भूल सकता है?

सरकार से ज्यादा, पानी के पक्षधर थे श्री अय्यर


यह सच है कि प्रथम जल नीति और सरदार सरोवर बाँध.. दोनों ही क्रमशः पानी और नदी की समृद्धि के भारतीय ज्ञानतंत्र के अनुकूल नहीं थे, किन्तु यह भी सच है कि श्री रामास्वामी आर. अय्यर ज्यों-ज्यों पानी और नदी को समझते गए, वे पानी और नदी के अनुकूल होते गए; वह सरकार या समाज के पक्ष में होने की बजाय, नदी और पानी के पक्ष में हो गए।

सेवानिवृत्ति के पश्चात नई दिल्ली के ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ में अवैतनिक प्रोफेसर के रूप में भी उन्होंने किसी निजी स्वार्थ की बजाय, पानी और नदी की पैरवी ही की। विश्व बैंक, विश्व बाँध आयोग और इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (कोलंबो) तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (नई दिल्ली) में सलाहकार तथा मृत्यु के समय तक संयुक्त राष्ट्र महासचिव सलाहकार बोर्ड के पानी और विपदा से जुड़े उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह के सदस्य के अलावा श्री अय्यर ने कई अन्य महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सम्भाली।

इन जुड़ावों में उनके कार्य क्या और कैसे रहे; इसका कोई विवरण मेरे पास नहीं है, किन्तु जितना मैं जानता हूँ नदी और पानी को लेकर, उन्होंने स्वयं कई बार सरकारों को भी आइना दिखाने की हिम्मत वाले व्यक्ति थे। गौर करने की बात है कि ज्यों ही उन्होंने जीवन और परिवेश पर सरदार सरोवर बाँध के असर को समझा, उन्होंने उसके खिलाफ भी रिपोर्ट दी।

“एक चिरस्थायी मूर्खता है, सरदार सरोवर बाँध’’: श्री अय्यर

‘नर्मदा बचाओ अभियान’ के रणबांकुरे याद करें। वर्ष 1993 में सरदार सरोवर बाँध के खिलाफ चल रहे उपवास को 14 दिन पूरे हो चुके थे। सरकार सिर्फ आश्वासन ही दे रही थी। उसने पाँच सदस्यीय कमेटी गठित कर इतिश्री कर ली थी। सौभाग्य से श्री अय्यर भी इसके एक सदस्य थे।

जीवन और भूमि पर बाँध के दुष्प्रभाव को देखकर श्री अय्यर ने अपनी गलती स्वीकारी। इसे श्री अय्यर का प्रायश्चित कहें या फिर विचारों को लेकर उनका खुलापन; उन्होंने, सरदार सरोवर बाँध को तकनीकी, आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय स्तर पर महज एक चिरस्थायी मूर्खता करार दिया।,

किसके आलोचक? किसके हिमायती?


1996 में टिहरी बाँध की समीक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर वह बड़े बाँधों के और अधिक आलोचक हो गए। लिहाजा, विश्व बाँध आयोग 1997 में उन्होंने भारत की ओर से नेतृत्वकारी भूमिका अदा की।

नेपाल, बांग्लादेश और भारत के सीमापार के जल विवादों का अध्ययन करने के बाद तो उनका यह विश्वास पूरी तरह पुख्ता हो गया कि बाँध, समाज और पारिस्थितिकी को दुष्प्रभावित करने वाले अभियांत्रिकी कुप्रबन्धन के सिवाय और कुछ नहीं हैं। बड़ी परियोजनाओं पर श्री अय्यर के रवैये को लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली में समाजशास्त्र की प्रोफेसर अमृता भविस्कर ने अपने लेख में इस राय का स्पष्ट उल्लेख किया है कि सार्वजनिक सम्पत्ति को सामाजिक न्याय के आइने में देखने के संवैधानिक सिद्धान्त के प्रति श्री अय्यर अपनी आस्था को लगातार शोधित और दृढ़ करते रहे।

विवादों के अध्ययन, अनुभव और विशेषज्ञता ने श्री अय्यर को प्रेरित किया कि वह एक घाटी से दूसरी नदी घाटी में पानी ले जाने वाली महंगी नदी जोड़ परियोजना को नामंजूर करें तथा प्रतिभागिता तथा नियमन के साथ जल संचयन के काम को आगे बढ़ाने की पैरवी करें। नतीजे में श्री अय्यर की दृष्टि दोहन की बजाय, संसाधनों के सर्वश्रेष्ठ प्रबन्धन पर जाकर टिक गई। कह सकते हैं कि भारत सरकार और स्वयंसेवी संगठन के कामकाज में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ सम्बन्धित शब्दावली के प्रवेश में श्री अय्यर का बहुत योगदान रहा।

कई मुद्दों को चर्चित कर गई उनकी लेखनी


अमृता भविस्कर ने श्री रामास्वामी आर. अय्यर द्वारा लिखित ‘द ग्रामर ऑफ पब्लिक एंटरप्राइज़ेज’ (1991) ‘वाटर: प्रॉसपेक्टिव्स, इशुज, कनसर्न्स (2003), ‘टुआर्ड्स वाटर विज्डम: लिमिट्स, जसटिस, हारमोनी (2007) तथा जल-कानून पर सम्पादित उनकी पुस्तक ‘वाटर एण्ड द लॉज इन इण्डिया’ का जिक्र किया है। ‘हार्नेस्टिंग का इस्टर्न हिमालयन रिवर्स (1993), ‘कनवर्टिंग वाटर इनटू वैल्थ’ (1993) तथा ‘मिड इयर रिव्यु ऑफ द इकोनॉमी’ (1993-94) शीर्षकयुक्त पुस्तकों को भी उन्होने बतौर सम्पादक/सह-सम्पादक नया कलेवर दिया।

प्रथम जल नीति और सरदार सरोवर बाँध.. दोनों ही क्रमशः पानी और नदी की समृद्धि के भारतीय ज्ञानतंत्र के अनुकूल नहीं थे, किन्तु यह भी सच है कि श्री रामास्वामी आर. अय्यर ज्यों-ज्यों पानी और नदी को समझते गए, वे पानी और नदी के अनुकूल होते गए; वह सरकार या समाज के पक्ष में होने की बजाय, नदी और पानी के पक्ष में हो गए। सेवानिवृत्ति के पश्चात नई दिल्ली के ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ में अवैतनिक प्रोफेसर के रूप में भी उन्होंने किसी निजी स्वार्थ की बजाय, पानी और नदी की पैरवी ही की।

अमृता लिखती हैं कि कावेरी विवाद, नदी जोड़, पुनर्वास और व्यापक संस्थागत सन्दर्भों में जल प्रबन्धन पर श्री रामास्वामी आर. अय्यर के विस्तृत अध्ययन और चर्चित लेखन ने इन विषयों को चर्चा का विषय बनाया; नौकरशाहों और इंजीनियरों को विवश किया कि वे अपनी धारणाओं और व्यवहारों को खुद जाँचे और बदलें।

विद्वान ही नहीं, इंसान भी अच्छे


“आंतरिक व बाहरी दबाव के बगैर संस्थागत् बदलाव सम्भव नहीं होते।’’ - इस विचार को अपनी धारणा और व्यवहार में उतारने के कारण श्री अय्यर को सम्मान भी मिला और प्यार भी। इस सम्मान और प्यार ने उनकी पत्नी श्रीमती सुहासिनी, पुत्र श्रीराम और महादेवन को भी एक पहचान दी है। उन्होंने पानी पर ही नहीं, कर्नाटक संगीत पर भी कलम चलाई।

सुहासिनी जी के साथ मिलकर हर वर्ष कुछ सप्ताह के लिये चेन्नई जाना। संगीत अकादमी में रुकना। कार की बजाय, बस, रिक्शा आदि में निकल जाना। सम्भवतः श्री अय्यर ने संगीत प्रेम से ज्यादा, सुहासिनी जी से प्रेम के कारण कर्नाटक संगीत पर लिखा।

विद्वता, गम्भीरता के साथ-साथ, प्रेम व सहजता से जिन्दगी जीने के उनके इसी अन्दाज की जानकारी ने मुझे आज श्री अय्यर पर लिखने को प्रेरित किया है। यूँ तो इस लेख को लिखने में अमृता का लेख ही ज्यादा मददगार हुआ है। फिर भी यह लेख, मेरे लिये पानी के एक लेखक द्वारा दूसरे लेखक से मिलने की कोशिश जैसा है।

प्रथम ‘भारत नदी सप्ताह’ के प्रेरक


गत् वर्ष इन्हीं दिनों नई दिल्ली के इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित प्रथम ‘इण्डिया रिवर वीक’ में उनसे मिलना हुआ था। श्री अय्यर की प्रेरणा से ही डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इण्डिया, इनटेक, सैण्ड्रप, टॉक्सिक लिंक और पीसी इंस्टीट्यूट चैरिटेबल ट्रस्ट ने प्रथम ‘भारत नदी सप्ताह’ का आयोजन किया था। इंटरनेशनल रिवर्स, लोक विज्ञान केन्द्र के अलावा हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल की मातृसंस्था अर्घ्यम ने भी इसमें सहयोग की भूमिका निभाई थी।

मुझे याद है कि नदी सप्ताह आयोजन के मूल सिद्धान्त को सामने रखते हुए श्री रामास्वामी आर. अय्यर ने कहा था - “नदियाँ, पानी से अधिक कुछ हैं। नदियाँ हमारे सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक ताने-बाने का ऐसा हिस्सा हैं, जिन्हें इस ताने-बाने से अलग नहीं किया जा सकता।’’ वह नदियों के प्रवाह को बाधित करने, बाढ़ क्षेत्र पर अनधिकृत निर्माण, सतत् प्रदूषण तथा नदी की आर्थिक घुड़सवारी करने के आधुनिक रवैये से दुखी थे।

उनके बिना नदी दिवस?


वह जीवित होते, तो इन दिनों आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी-कृष्णा को औपचारिक रूप से जोड़ दिये जाने की तारीफ करने वाली खबरों से निश्चित ही चिन्तित होते; केन-बेतवा नदी जोड़ को परवान चढ़ाने के लिये मध्य प्रदेश शासन द्वारा वन्यजीव सलाहकार बोर्ड की 22 सितम्बर की बैठक के निष्कर्षों पर निगाह रखते।

हो सकता कि सिक्किम में तीस्ता (3) जलविद्युत परियोजना की मंजूरी कराने को लेकर विद्युत मंत्री श्री पीयूष गोयल द्वारा अपनी पीठ ठोकने के बयान पर श्री अय्यर उन्हें आइना दिखाने पहुँच जाते। उनके साथ बैठकर नदी समझने-समझाने वालों तथा नदी सप्ताह का आयोजन करने वालों को कैसा लगेगा, इस वर्ष श्री अय्यर जैसी ‘बैकफोर्स’ के बिना इस वर्ष नदी दिवस मनाना?

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