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नदियां
नमामि गंगे का दिखने लगा है रंग
Posted on 13 Jun, 2017 04:56 PMपुण्य सलिला गंगा की सफाई को लेकर केंद्र सरकार न केवल गंभीर है बल्कि कई ऐसे कदम उठाए गए हैं कि लगने लगा है कि नमामि गंगे परियोजना सही दिशा में आगे बढ़ रही है। कई बड़े प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी जा चुकी है। गंगा में कई जगह ऊपरी सतह से गंदगी निकालने का काम चल रहा है। ऐसा ही गंगा की सहायक नदियों और यमुना के लिये किया जा रहा है। गंगा को प्रदूषित करने वाली यूनिट्स को बंद करने या हटाने की प्रक्
एक इंजीनियर, जो नदियों का होकर रह गया : दिनेश कुमार मिश्रा
Posted on 11 Jun, 2017 10:56 AM
5 सितम्बर 1984 को सहरसा जिले के नवहट्टा प्रखंड में हेमपुर गाँव के पास कोसी नदी का तटबंध टूटा था और कोसी ने 196 गाँवों को अपनी आगोश में ले लिया था। करीब 5 लाख लोग तटबंध के बचे हुए हिस्से पर शरण लिये हुए थे। दूर तक पानी और सिर्फ पानी ही दिख रहा था। पूरे क्षेत्र में त्राहिमाम मचा हुआ था।
उसी वक्त एक 38 वर्षीय इंजीनियर के पास संदेश आता है कि सहरसा में कुछ समस्याएँ हैं और उसे वहाँ जाकर काम करना है। संदेश देनेवाले शख्स थे एक दूसरे इंजीनियर विकास भाई जो वाराणसी में रहा करते थे और 1966 में सर्वोदय कार्यकर्ता हो गये थे।
तीन साल : गंगा बदहाल
Posted on 01 Jun, 2017 11:28 AM
चार जून - गंगा दशहरा पर विशेष
चार जून को गंगा दशहरा है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी अर्थात गंगा अवतरण की तिथि। कहते हैं कि राजा भगीरथ को तारने गंगा, इसी दिन धरा पर आई थी। जब आई, तो एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बावजूद, राजा भगीरथ स्वयं गंगा का पायलट बनकर रास्ते से सारे अवरोध हटाते आगे-आगे चले। गंगा को एक सम्राट से भी ऊँचा सम्मान दिया। धरती पुत्र-पुत्रियों ने गंगा की चरण-वन्दना की; उत्सव मनाया। परम्परा का सिरा पकड़कर हम हर साल गंगा उत्सव मनाते जरूर हैं, किंतु राजा भगीरथ ने जैसा सम्मान गंगा को दिया, वह देना हम भूल गये। उल्टे हमने गंगा के मार्ग में अवरोध ही अवरोध खड़े किए। वर्ष 1839 में गंगा से कमाने की पहला योजना बनने से लेकर आज तक हमने गंगा को संघर्ष के सिवा दिया क्या है? हमने गंगा से सिर्फ लिया ही लिया है। दिया है तो सिर्फ प्रदूषण, किया है तो सिर्फ शोषण और अतिक्रमण।
बिहार की गाद और बाढ़ के लिये फरक्का जिम्मेवार नहीं-इंजीनियर एसोसिएशन
Posted on 30 May, 2017 04:53 PM
बिहार की बाढ़ और गंगा की गाद के लिये फरक्का बराज को जिम्मेवार ठहराने के बिहार सरकार के अभियान का इंजीनियर बिरादरी ने विरोध किया है। इंडियन इंजीनियर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित ‘‘भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी क्षेत्र में बाढ़ और जल संसाधन प्रबंधन’’ विषयक सेमीनार में मुख्य अतिथि गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के अध्यक्ष अरूण कुमार सिन्हा ने कहा कि फरक्का बराज की वजह से गंगा के उलटे प्रवाह का प्रभाव अधिक से अधिक 46 किलोमीटर ऊपरी प्रवाह में हो सकता है, पटना तक उसका असर नहीं आ सकता। इस संदर्भ में उन्होंने केन्द्रीय जल आयोग द्वारा उत्तराखंड के भीमगौड़ा से फरक्का तक गंगा के जल-विज्ञानी अध्ययन का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बिहार में बाढ़ और गाद की समस्या तब भी थी जब फरक्का बराज नहीं बना था। दरअसल नदियों के बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण बाढ़ के विनाशक होने और गाद के नदी तल में एकत्र होने का एक बड़ा कारण है। 28 मई को पटना के अभियंता भवन में हुए सेमीनार में नेपाल और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सेदारी की।
समस्त जीवों के अस्तित्व के लिये प्रकृति का स्वस्थ होना आवश्यक
Posted on 23 May, 2017 05:06 PMमनुष्य तो प्रकृति के सम्मुख स्वयं ही क्षुद्र है, वह प्रकृति को क्या न्याय देगा! पर प्रतीक रूप में ऐसा करके यह प्रयास उत्तराखंड उच्च न्यायालय और मध्यप्रदेश सरकार ने अवश्य किया है। संदेश यह है कि यदि प्रकृति और नदियों के अधिकारों का उल्लंघन किया आया तब उल्लंघन करने वालों के साथ न्याय-प्रणाली निपटेगी।उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गत 20 और 30 मार्च को दो ऐतिहासिक निर्णय सुनाए। ये दोनों निर्णय भारत के विधि इतिहास में मील के पत्थर हैं। ऐसे विधिक निर्णय विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में पहले से हैं पर भारत में ऐसे निर्णय पहली बार किसी न्यायालय ने दिए हैं। ये निर्णय हैं – गंगा-यमुना और उनकी सहायक नदियों तथा पारिस्थितिक तंत्र को विधिक अधिकार प्रदान किया जाना और साथ ही वे समस्त न्यायालयी अधिकार जो मनुष्य को प्राप्त हैं। न्यायालय के इन निर्णयों के अनुसार अब यदि इन नदियों अथवा पारिस्थितिक तंत्र को किसी ने हानि पहुँचाई तो उसके विरुद्ध नदियों, पारिस्थितिकतंत्र अर्थात प्रकृति की ओर से न्यायालय में केस किया जा सकेगा। दूसरे शब्दों में, इन निर्णयों में प्रकृति को अस्तित्ववान माना गया है जिसे मनुष्य की भाँति पूरे वैधानिक अधिकार दिए गए हैं।
तीन मई को मध्य प्रदेश सरकार ने भी वही अधिकार नर्मदा नदी को दिए जो मार्च माह में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना इत्यादि नदियों तथा पारिस्थितिक तंत्र को लेकर दिए थे। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस आशय का सुझाव मध्य प्रदेश सरकार को देकर आये थे। संभव है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्णयों के पश्चात उनके मन में यह विचार आया हो!
सड़कें अभी भी रोक रहीं जल प्रवाह, सिर्फ तीन हुईं जलमग्न
Posted on 20 May, 2017 11:25 AMपूर्व मंत्री कमल पटेल ने एनजाटी में की लिखित शिकाय़त
गंगा के पेट में गाद की ढेर
Posted on 19 May, 2017 01:02 PM
गंगा की पेट में गाद की ढेर जमा है। इसमें विभिन्न तरह की गाद है। इसे हिमालय से बहकर आए पानी के साथ आने वाली महीन मिट्टी भर समझना भूल होगी। शहरों के मैला जल और औद्योगिक कचरा के साथ आने वाली गंदगी भी इकट्ठा है। इस गंदगी का असर गंगा में पलने वाले जलीय जीवों पर पड़ा है। गाद में इस गंदगी के मिले होने का असर गंगा के तटवर्ती इलाके में खेती पर हुआ है। लेकिन यह मसला अभी चर्चा में नहीं हैं। गंगा में जमा गाद के खिलाफ बिहार सरकार का ताजा अभियान मूलतः फरक्का बराज की वजह से गाद का प्रवाहित होकर समुद्र में नहीं जाने और बराज के ऊपर के प्रवाह क्षेत्र में एकत्र होने पर केंन्द्रीत है।
हिमालय से निकली नदियों में पानी के साथ गाद आने की समस्या नई नहीं है। बिहार, बंगाल और आसाम सदियों से इसे झेलते रहे हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई से समस्या बढ़ी है। समस्या केवल पहाड़ों पर वनों की कटाई से नहीं, मैदानी क्षेत्र में वृक्षों के विनाश का असर पड़ा है।