बिहार की गाद और बाढ़ के लिये फरक्का जिम्मेवार नहीं-इंजीनियर एसोसिएशन

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बिहार की बाढ़ और गंगा की गाद के लिये फरक्का बराज को जिम्मेवार ठहराने के बिहार सरकार के अभियान का इंजीनियर बिरादरी ने विरोध किया है। इंडियन इंजीनियर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित ‘‘भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी क्षेत्र में बाढ़ और जल संसाधन प्रबंधन’’ विषयक सेमीनार में मुख्य अतिथि गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के अध्यक्ष अरूण कुमार सिन्हा ने कहा कि फरक्का बराज की वजह से गंगा के उलटे प्रवाह का प्रभाव अधिक से अधिक 46 किलोमीटर ऊपरी प्रवाह में हो सकता है, पटना तक उसका असर नहीं आ सकता। इस संदर्भ में उन्होंने केन्द्रीय जल आयोग द्वारा उत्तराखंड के भीमगौड़ा से फरक्का तक गंगा के जल-विज्ञानी अध्ययन का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बिहार में बाढ़ और गाद की समस्या तब भी थी जब फरक्का बराज नहीं बना था। दरअसल नदियों के बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण बाढ़ के विनाशक होने और गाद के नदी तल में एकत्र होने का एक बड़ा कारण है। 28 मई को पटना के अभियंता भवन में हुए सेमीनार में नेपाल और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सेदारी की।

आधार पत्र प्रस्तुत करते हुए एसोसिएशन के महासचिव प्रभुशंकर महाराज ने कहा कि इस क्षेत्र में बाढ़, जलजमाव, भूस्खलन, कटाव और सूखा आदि जलजनित परिघटनाएँ अक्सर होती है। इन जलजनित परिघटनाओं के आंतरिक विज्ञान की सही समझ नहीं होने और उनसे निपटने में विज्ञान का उपयोग नहीं किए जाने से जनजीवन तबाह होता है। हालाँकि पूरे आधार-पत्र में परंपरागत लोक विज्ञान का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है और यह नहीं बताया गया है कि जब विज्ञान के नाम पर बराज और तटबंध जैसी संरचनाएँ नहीं बनी थी, तब लोग इनसे कैसे बरतते थे? और क्या कारण है कि सर्वाधिक बाढग्रस्त बिहार और बंगाल में चारों ओर से लोग आकर बसते रहे और यहाँ की आबादी का घनत्व इतना अधिक क्यों हो गया था।

हालाँकि नदियों के बाढ़-क्षेत्र का सीमांकन करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के अध्यक्ष श्री सिन्हा ने कहा कि बाढ़ की आवृति पाँच, दस या पंद्रह, बीस साल में होने के आधार पर इलाकों को चिन्हित करना चाहिए और संबंधित इलाके में बसोबास या खेती-बारी करने में इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाढ़ का प्रबंधन नदी-घाटीवार किया जाना चाहिए। हालाँकि पूरे उत्तर बिहार के किसी न किसी नदी के बाढ़ क्षेत्र में होने का उल्लेख करते हुए कुछ वक्ताओं ने बाढ़ क्षेत्र के सीमांकन की सीमा को रेखांकित किया।

हावार्ड, अमेरिका में पढ़े जलविज्ञानी त्रियोगी प्रसाद ने कहा कि बाढ़ का मतलब ढेर सारा पानी, ढेर सारा गाद और ढेर सारी ऊर्जा होती है। अभी तीनों विनाशकारी अवस्था में है। अगर इन्हें अलग-अलग करके वरदान में बदला जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि कोसी नदी पर सप्तकोसी बड़ा बाँध बनने से बिहार की बाढ़ और गाद की समस्या का समाधान हो जाएगा और उससे बनी बिजली बिहार, नेपाल समेत पूरे इलाके के विकास में उपयोगी हो सकेगी। श्री प्रसाद का कहना था कि बड़ा बाँध से सुनिश्चित सिंचाई की सुविधा मिलेगी जिससे बिहार की धरती की उपज दसगुना से अधिक बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा जब तक नीति निर्धारक विज्ञान का सही और कारगर उपयोग करने का फैसला नहीं करते इस समस्या के हल होने की संभावना नहीं बनती।

बिहार की बाढ़ में फरक्का बराज की भूमिका पर सेमीनार में किसी वक्ता ने विस्तार से चर्चा नहीं की। बल्कि बांग्लादेश के प्रतिनिधियों ने भी फरक्का का जिक्र नहीं किया। यह ज़रूर कहा कि बांग्लादेश में नदियों के सूखने की रफ्तार ऐसी है कि तीस्ता और गंगा जैसी बड़ी नदियों के तल में भी नलकूप लगाकर पानी निकाला जा रहा है। वक्ता फरक्का का बचाव करने के बजाए उसकी चर्चा से बचते दिखे। लेकिन नेपाल में कोसी और उसकी सहायक नदियों पर बाँध बनाने की जरूर चर्चा हुई। हालाँकि नेपाल से आए देवनारायण यादव ने कोसी पर बड़ा बाँध बनाने के प्रस्ताव का यह कहते हुए विरोध किया कि डूब क्षेत्र में आने वाले लोग इसे बनने नहीं देंगे। वैसे कोसी पर मौजूदा बराज और तटबंधों के नफा-नुकसान की समीक्षा किए बगैर बड़ा बाँध बनाने की चर्चा भी नहीं की जानी चाहिए।

बांग्लादेश से आए शमशेर अली ने कहा कि नेपाल से निकली नदियों का पानी अंततः बांग्लादेश में जाता है। बाढ़ उतरने के बाद रेत की मोटी परत जमी होती है। हालत यह है कि आधी से अधिक नदियों में गर्मी में रेत उड़ती रहती है। नेपाल में पहाड़ों पर अधिक वर्षा होती है, लेकिन वह पानी नेपाल में रुकती नहीं, बिहार होते हुए बंगाल व बांग्लादेश आती है, तो उसमें रेत और बालू की अत्यधिक मात्रा होती है। इसलिये इस क्षेत्र की बाढ़ जनित समस्याओं का प्रबंधन भारत नेपाल और बांग्लादेश को साथ मिलकर करना होगा। केवल भारत के करने से समाधान नहीं हो सकता।
 

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