साक्षात्कार

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गांगेय डॉल्फिन गंगा के स्वास्थ्य का दर्पण है
Posted on 22 Feb, 2011 05:18 PM


पटना विश्वविद्यालय में जन्तु शास्त्र के प्राध्यापक डा. रवीन्द्र कुमार सिन्हा गांगेय डॉल्फिन (गंगा में पायी जानेवाली डॉल्फिन जिसे स्थानीय भाषा में सोंस कहा जाता है) पर अपने शोध के लिए देश एवं विदेशों में खासे चर्चित रहे हैं। यह डा. सिन्हा ही थे जिनके जोरदार प्रयासों के कारण गांगेय डॉल्फिन को राष्ट्रीय जीव घोषित किया गया और इसे मारने पर प्रतिबन्ध लगाया गया। इनके कार्यों से प्रभावित होकर एक फ्रांसिसी पत्रकार क्रिश्चियन गैलिसियन ने डा. सिन्हा पर एक वृतचित्र का निर्माण भी किया है। ‘मि. डॉल्फिन सिन्हा थिंक ग्लोबली, एक्ट लोकली’। डॉल्फिन सिन्हा के नाम से प्रसिद्ध डा. सिन्हा से उनकी प्रयोगशाला में बिहार खोज खबर टीम की बेबाक बातचीत के कुछ प्रमुख अंशः-

अमृत-जल बांटता एक चिकित्सक
Posted on 09 Feb, 2011 03:24 PM

 

इस वक्त हम है उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में। ये इलाका जिसे पंडित नेहरु ने भारत का स्विट्जरलेंड कहा था, विकास कि अंधी दौड़ में विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित और अभावग्रस्त क्षेत्रों में शामिल हो गया है। आदिवासी बहुल इस जनपद में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुन्ध दोहन से जिस चीज पर सर्वाधिक असर पड़ा वो था जल। जल के अभाव ने यहां के आदिवासी गिरिजनों को अकाल मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया। इस बीच लगभग दो दशक पहले उम्मीद की एक किरण नजर आई वो उम्मीद थी डाक्टर रमेश कुमार गुप्ता के रूप में। एक प्रख्यात चिकित्सक और एक पर्यावरणविद् जिसने जलदान की अभिनव परम्परा शुरू कर जल संकट से त्राहि - त्राहि कर आदिवासी-गिरिजनों के जीवन को बदल कर रख दिया। डाक्टर गुप्ता द्वारा बनायी गयी बंधियां आज यहां के आदिवासियों के लिए अमृत कलश है। डॉ आर के गुप्ता से बात की आवेश तिवारी ने।

आवेश तिवारी -डाक्टर साहब ये बतायें सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में बंधियां बनाने की योजना आपके मन में कैसे आई ?
डॉ गुप्ता -हम शुरू में एक आश्रम में जाते थे ये मिर्चाधुरी स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर गुलालीडीह गांव

water efforts
नदिया बिक गई पानी के मोल (दो)
Posted on 05 Feb, 2011 10:20 AM

पानी पर सत्ता के खेल

किसानों को कर्महीन बनाया जा रहा है
Posted on 05 Feb, 2011 09:41 AM कहते हैं हर शाम के बाद सुबह होती है हर दुःख के बाद सुख आता है, विदर्भ के भी कुछ इलाकों में ऐसा ही हुआ, बेहाल और बदहाल विदर्भ को जिस व्यक्ति से रोशनी मिली उसके पास भी एक सपना था वो सपना था विदर्भ को देश में उन्नत कृषि की सबसे बड़ी प्रयोगशाला बनाने का ,स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलते हुए आदिवासी –किसानों की सेवा को ही धर्म मानने वाले शुकदास जी महाराज विदर्भ के कवि घाघ हैं, आप यकीन न करें मगर आज स
डेवी यानोमामी
Posted on 03 Feb, 2011 03:16 PM
वेनेजुएला की सीमा पर उत्तरी ब्राजील के इलाकों में रहने वाले 16000 यानोमामी मूलवासियों के समुदाय के शामन डेवी कोपेनावा यानोमामी ने जून 2009 में यूरोप का दौरा कर नेताओं और प्रेस से बात की। वह यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि दिसम्बर 2009 में होने वाले कोपेनहेगन सम्मेलन की तैयारियों में मूलवासियों की आवाजें भी शामिल हों। उनके साक्षात्कार से कुछ अंश हम नीचे दे रहे हैं:
नाराज हैं कंपनियां : मॉड बार्लो
Posted on 31 Aug, 2010 09:54 AM
पानी के हक के लिए चले अभियान में सर्वाधिक चर्चित नाम है। आंदोलनकारी और लेखिका मॉड बार्लो का। कनाडा के सब से बड़े नागरिक संगठन काउंसिल ऑफ कैनेडियंस की अध्यक्ष हैं वे। यह संगठन अहिंसा और सिविल नाफरमानी में विश्वास करता है। दस विश्वविद्यालयों ने उन्हें सामाजिक सक्रियता के लिए मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया है। मुक्त व्यापार विरोधी होने के कारण कैथोलिक बिशप्स कांफ्रेंस से निकाले गए टोनी क्लार्क
नर्मदा क्रिकेट ग्राउण्ड बनती जा रही है
Posted on 24 Jul, 2010 03:21 PM
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विगत, दो दशकों में विकास को नये सिरे से परिभाषित करने का एक मार्ग प्रशस्त किया है। उसने इस बात को प्रतिपादित किया कि विकास केवल विकास शब्द के साथ ही नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि विकास को विनाश के साथ भी जोड़कर देखना होगा। वतर्मान विकास को लेकर कुछेक सवालों को लेकर नर्मदा आंदोलन की तेज-तर्रार नेत्री सुश्री मेधा पाटकर से बातचीत की।
धरती का अमृत है पानी
Posted on 29 May, 2010 08:26 AM
नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक स्व.सी.वी. रमन से किसी ने एक बार भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक पहलुओं पर चर्चा के दौरान पूछा- “क्या सचमुच ही अमृत जैसी कोई पेय वस्तु रही है, जिसके लिए देव-दानव संग्राम की स्थिति बन गई थी।”
स्वस्थ जीवन के लिये स्वच्छ पानी का “अर्घ्य”
Posted on 23 Mar, 2010 04:17 PM

वर्तमान समय की सबसे बड़ी समस्या है “जल प्रदूषण”, जो करोड़ों लोगों को अपनी चपेट में ले रही है, आज की सबसे बड़ी जरूरत है कि हम पानी के अपने स्थानीय स्रोतों को पुनर्जीवित करें और उन्हें संरक्षित करें ताकि एक तरफ़ तो सूखे से बचाव हो सके, वहीं दूसरी तरफ़ साफ़ पानी की उपलब्धता हो सके। साफ पानी को हमें अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक मानकर भारत में पर्यावरण स्वच्छता के तरीके भी हासिल किये जा सकें। - रोहिणी निलेकणी

 

 


रोहिणी निलेकणी, “अर्घ्यम” की अध्यक्षा और संस्थापक हैं, “अर्घ्यम” की स्थापना उन्होंने सन् 2005 में की थी।

रोहिणी नीलेकणी
लौटें मिट्टी की ओर
Posted on 04 Oct, 2009 07:30 PM

' हमने जो भी किया, कहा या गाया है वह सब हमें अपनी मिट्टी से मिला है।'
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