साक्षात्कार

Term Path Alias

/sub-categories/interviews

नदियों के प्रवाह की अनदेखी पड़ेगी भारी
Posted on 07 Oct, 2018 05:59 PM

धरती पर हमारे स्वस्थ बचे रहने के लिये नदियाँ बेहद आवश्यक हैं। यदि हमारी पीढ़ी ने नदियों के घटते प्रवाह की अनदेखी की तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें नदियों के विनाश और पर्यावरण को गम्भीर नुकसान पहुँचाने वाले बेहद गैर-जिम्मेदार पूर्वजों के तौर पर याद करेंगी। इसलिये नदियों की बर्बादी को रोका जाना चाहिए। उनके प्रवाह की बहाली के लिये सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए।

कृष्ण गोपाल ‘व्यास’
नया विकास मॉडल हिमालय के लिये चिन्ता का विषय है - श्री भट्ट
Posted on 09 Jun, 2018 01:55 PM


गाँधीवादी, चंडी प्रसाद भट्ट पर्यावरणीय मुद्दों से सरोकार रखने वाले देश की नामचीन हस्ती हैं। इन्होंने गोपेश्वर में ‘दशोली ग्राम स्वराज्य संघ’ (1964) की स्थापना की और 1973 में चिपको आन्दोलन से जुड़े। समाज और पर्यावरण से जुड़े कार्यों के लिये इन्हें मैग्सेसे पुरस्कार, गाँधी शान्ति पुरस्कार और पद्मश्री, पद्मविभूषण जैसे सम्मान से नवाजा जा चुका है।

चण्डी प्रसाद भट्ट
अन्नदाता को सबल बनाने की पुरजोर कोशिश
Posted on 19 Sep, 2015 10:25 AM

सर्वेश प्रताप सिंह से अनिल सिंदूर द्वारा की गई बातचीत पर आधारित लेख।

Sarvesh pratap singh
नहीं करने देंगे जल-जंगल-जमीन पर कब्जा
Posted on 07 Mar, 2015 06:53 AM पीवी राजगोपाल एक ऐसा नाम है जिन्हें भूमिहीनों को उनकी जमीन के हक के लिए जाना जाता है। वह कई सालों से गरीबों की लड़ाई लड़ रहे हैं। राजगोपाल के नेतृत्व में यूपीए सरकार के समय भूमिहीनों के हित के लिए आन्दोलन शुरू हुआ था। तब सरकार ने उनकी माँगों को पूरा करने का आश्वासन दिया था। लेकिन वायदा पूरा नहीं किया। उन्हीं माँगों को लेकर एक बार फिर से अब आन्दोलन कर रहे हैं। इस मुद्दे पर उनसे रमेश ठाकुर ने बातची
ग्रामीण भारत की बदलती तस्वीर
Posted on 13 Dec, 2014 11:56 AM इसमें कोई संदेह नहीं है कि ग्रामीण भारत की तस्वीर एवं तकदीर तेजी से बदल रही है। इसमें बुनियादी सुविधाओं के विकास का बहुत बड़ा योगदान है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का विस्तार भी इसमें अहम भूमिका अदा कर रहा है। देश के गाँवों में रहने वाले लोग विकास को किस नजरिए से देखते हैं, लेखक ने यह जानने के लिए उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की ग्राम सभा नदियापारा के प्रगतिशील किसान शिव प्रसाद यादव से बातचीत की।
बाढ़ प्रकृति और जीवन का हिस्सा है : अनुपम मिश्र
Posted on 26 Sep, 2014 04:05 PM पर्यावरणविद् व लेखक अनुपम मिश्र से स्वतंत्र मिश्र की बातचीत पर आधारित साक्षात्कार

. बाढ़-सुखाड़ तो अब उद्योग के रूप में पहचाना जा रहा है। क्या कारण है कि इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सका है?
यह एक कारण हो सकता है। कुछ लोगों को बाढ़ का इंतजार रहता है। यह बुरी बात है कि जिस कारण से हजारों लोगों की जान जाती है, उसी का इंतजार कुछ नेताओं में से और कुछ अधिकारियों में से लोगों को होता है। इसमें से कुछ समाजसेवी भी हो सकते हैं। उनको अपने एक-दो मकान बनाने के लिए लाखों के घर उजड़ जाने का इंतजार रहता है। यह बहुत शर्म की बात है।

आप जिलाधिकारियों एवं राज्य के अधिकारियों को बाढ़ की पूर्व तैयारी के बाबत कुछ सलाह देना चाहते हैं? वे सलाह क्या हैं?
यह बहुत ही अनौपचारिक है। मेरे मन में यह है कि इन लोगों से कोई संस्था बात कर पाती। अप्रैल, मई, जून में ऐसी योजना बना पाते ताकि खाद्य सामग्री को सस्ते वाहनों से पहुंचाया जा सकता। उनके लिए हेलिकॉप्टर जैसे मंहगे वाहन इस्तेमाल नहीं किए जाते। पिछले साल बिहार में दो करोड़ की पूरी और आलू 52 करोड़ रुपए खर्च करके हेलिकॉप्टर से लोगों तक पहुंचाए गए थे। इस तरह की बेवकूफी का क्या मतलब है? क्या आप हजार नाविक इस काम के लिए तैयार नहीं कर सकते हैं?
Anupam Mishra
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां
Posted on 08 Sep, 2014 09:08 AM कृषि की उत्पादकता पूरी तरह से मौसम, जलवायु और पानी की उपलब्धता पर निर्भर होती है, इनमें से किसी भी कारक के बदलने अथवा स्वरूप में परिवर्तन से कृषि उत्पादन प्रभावित होता है। कृषि का प्रकृति से सीधा सम्बन्ध है, जल-जंगल-जमीन ही प्रकृति का आधार हैं और यही कृषि का भी। 5 जून, 2012 अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस पर जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव पर उत्तर प्रदेश राज्य कृषि सलाहकार परिषद के सदस्य
×