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पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा
सिंधु की सिसकियां
Posted on 23 Dec, 2016 12:52 PMसिंधु घाटी सभ्यता की बात करना कोई इस्लाम अथवा मुस्लिम विरोधी बात नहीं है। सिंधु घाटी की स
फौजी गाँव की बूँदें
Posted on 20 Dec, 2016 04:21 PMपच्चीस साल पहले भी जनसहयोग से इस तालाब के ऊपर एक तालाब बनाया गया था। बाद में यह जीर्ण-शीर्ण हो गया। इसके बाद से ही यह जमीन बंजर पड़ी थी। समाज ने मिलकर तय किया कि तालाब यहीं बनाया जाना चाहिए। लोग जुट गए और चन्द ही दिनों में यह बंजर जमीन पानी के भण्डार में तब्दील हो गई। यह 700 मीटर लम्बा और 500 मीटर चौड़ा बना है। बीच में बरसात बाद रबी के मौसम में भी दस फीट तक पानी भरा है। थोड़ी ऊँचाई पर समीप ही ब
खिरनियों की मीठी बूँदें
Posted on 18 Dec, 2016 03:43 PMसिकन्दरखेड़ा के मगरे को माताजी की पहाड़ी के नाम से भी जाना ज
बूँदों के छिपे खजाने
Posted on 18 Dec, 2016 03:36 PMतलाई की खुदाई के दौरान एक 10 फीट गहरी कुण्डी मिली। ...और इसमे
एक अनूठी अन्तिम इच्छा
Posted on 18 Dec, 2016 11:48 AMलव तालाब में डेढ़ हेक्टेयर के क्षेत्र में पानी भरा है। इस रमणीक संरचना के आस-पास के किसान
মাটি জল ও তাপের তপস্যা
Posted on 12 Dec, 2016 02:32 PMতাই মরুভূমিতে জ্যৈষ্ঠকে কেউ গালমন্দ করে না l পুরো শরীর ঢেকে রাখা হয়, শুধু মুখটুকু খোলা থা
अनुमान मौसम का : घाघ और भड्डरी की कहावतें
Posted on 05 Dec, 2016 04:16 PMविक्रम की 18वीं शताब्दी के प्राय: अंतिम भाग में कन्नौज के निकट निवासी घाघ कवि एक अनुभवी किसान हो गये, इनको खगोल का अच्छा ज्ञान था। उनकी प्रत्येक कविता उनके गुरुज्ञान और अपूर्व अनुभव की उदाहरण हैं। परंतु खेद का विषय है कि आज के विकास युग में हमें ऐसे अनुभवी पुरुष की न तो पूरी जीवनी मिलती है और न ही उनके सिद्धांतों पर वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है। घाघ की कहावतें उत्तर प्रदेश व बिहार में प्रचलित हैं
एक नदी की व्यथा-कथा
Posted on 10 Oct, 2016 02:56 PMदिल्ली और यमुना का नाता बहुत पुराना है। पौराणिक नदी यमुना ने जिस दिल्ली को जन्म दिया, उसके ही बाशिंदों ने यमुना को बदहाली की कगार पर पहुँचा दिया है। पूजा मेहरोत्रा की यह पुस्तक यमुना के दर्द को शिद्दत से बयाँ करती है…
उत्तर जैसी दक्षिण की एक ग्रामीण नदी
Posted on 22 Sep, 2016 12:56 PMसाहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित सिर्पी बालसुब्रम्हण्यम की तमिल कविता संग्रह ‘ओरू गिराभत्तु नदी’ की चर्चा इसलिये क्योंकि नदी को इस संग्रह में एक नदी की तरह नहीं बल्कि इसे कविता संग्रह की कविताएँ उत्सवधर्मिता, गीत, नृत्य, संगीत, आस्था और विश्वास से भी जोड़ती है। यह कविता संग्रह एक नदी में जीवन के कई रंगों की उपस्थिति को दर्शाता है, जिसमें दुख भी है, त्रासदी भी है और यातना का स्वर भी।
नमामि गंगे
Posted on 04 Sep, 2016 04:52 PMशिव अलकों की पावन शोभा
अमृत धारा गंगे
मोक्षदायिनी पतितपाविनी
त्रिपथगामिनि गंगे
शैलसुता तुम त्रिविध ताप से
करती थीं उद्धार
सदा निर्मला बहती थी
अब हो विरल धार गंगे
जीवनदायिनी तुमसे बनता था
स्वर्णिम प्रभात
भारत भू की अटल आस्था
अब बदरंग हुई गंगे
मनुज की अमिट लालसा ने
लूटा गंगे तुमको
परेशान सी रहती है अब