सिकन्दरखेड़ा के मगरे को माताजी की पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस पहाड़ी के ऊपर चामुण्डा माताजी का एक बहुत पुराना मन्दिर है। यह वही मगरा है, जो गुलाबखेड़ी में हमने देखा था। राष्ट्रीय मानव बसाहट एवं पर्यावरण केन्द्र के मनोज मकवाना, पानी समिति के अध्यक्ष मेहरबान सिंह पंवार, रामसिंह पंवार व स्थानीय समाज के साथ हम पहाड़ी की तलहटी में 7 डबरियों की एक विशाल जल संरचना की पाल पर खड़े हैं।...आप कभी मांडव गए हैं?
मध्य प्रदेश के धार जिले के इस कस्बे में खण्डहरों के अलावा मीठी-मीठी खिरनियाँ भी प्रसिद्ध हैं। इन खिरनियों के लिये मांडव के बाद दूसरा क्रम उज्जैन जिले के बड़नगर के सिकन्दरखेड़ा का आता है। इसकी पहाड़ी पर नजरें दौड़ाएँगे तो आपको चारों ओर घने वृक्ष नजर आएँगे।
इन खिरनियों के झाड़ों को छूती हुई नन्हीं-नन्हीं बूँदें बरसों से सिकन्दरखेड़ा के पहाड़ को पार करती निकल जाती थीं। गाँव में इन्हें कोई रोकने वाला नहीं था। पानी का संकट यहाँ की दूसरी पहचान बन गया था। लोग अपनी बेटियों की शादी इस गाँव के युवकों से करने से हिचकते थे। लेकिन, पानी आन्दोलन के फैलाव में यहाँ के समाज ने महती भूमिका अदा की।
अब इस कस्बे को एक और पहचान मिली। जल संचय आन्दोलन की वजह से यहाँ बड़े पैमाने पर भीषण सूखे के दौरान भी रबी की फसल ली जा रही है। गाँव में डबरियाँ बनाकर बूँदों को रोका जा रहा है।
सिकन्दरखेड़ा के मगरे को माताजी की पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस पहाड़ी के ऊपर चामुण्डा माताजी का एक बहुत पुराना मन्दिर है। यह वही मगरा है, जो गुलाबखेड़ी में हमने देखा था। राष्ट्रीय मानव बसाहट एवं पर्यावरण केन्द्र के मनोज मकवाना, पानी समिति के अध्यक्ष मेहरबान सिंह पंवार, रामसिंह पंवार व स्थानीय समाज के साथ हम पहाड़ी की तलहटी में 7 डबरियों की एक विशाल जल संरचना की पाल पर खड़े हैं।
कभी यहाँ एक पुरानी तलाई हुआ करती थी। इसे हाड़िया तलाई कहते थे। कालान्तर में यह जीर्ण-शीर्ण होती गई।
पानी आन्दोलन के दौरान गाँव समाज ने इसी स्थान पर एक नई जल संरचना तैयार की। यहाँ रुका पानी नीचे की ओर स्थित कुओं को जिन्दा कर गया। इसी डबरी में रोके पानी की वजह से रायसिंह, भारतसिंह, अमर, हरिराम आदि किसान अपनी जमीन पर सूखे में भी रबी की फसल ले रहे हैं।
पानी समिति अध्यक्ष मेहरबान सिंह कहते हैं- “सिकन्दरखेड़ा में रोके गए पानी से करंजपुरा व रूपाड़िया क्षेत्र में भी फायदा हो रहा है। हमारे गाँव के अधिकांश ट्यूबवेल कामयब हो रहे हैं। यहाँ ट्यूबवेलों में अब 80-150 फीट के बीच पानी मिल रहा है। गाँव में 50 से ज्यादा ट्यूबवेल हैं। इस डबरी में सिकन्दरखेड़ा के अलावा जहाँगीरपुरा, गुलाबखेड़ी, सिकन्दरखेड़ा, करंजपुरा के पशु पानी पीने आते हैं।”
सिकन्दरखेड़ा में एक बहुत पुराना तालाब भी मौजूद है। कुछ साल पहले इसकी पाल टूट गई थी। सारा पानी गाँव के भीतर से होकर जाता था। गाँव में तीन फीट गहरी नाली जैसी संरचना भी अपने आप तैयार हो गई थी। लोगों का पैदल चलना भी मुश्किल हो गया था। गाँव-समाज ने पानी आन्दोलन के दौरान इस तालाब की मरम्मत का कार्य किया। इसी दरमियान गाँव में जनसहयोग से एक खरंजा भी तैयार कर लिया गया।
गाँव-समाज ने 10 डबरियों की एक विशाल जल संरचना तैयार की। तालाब के वेस्टविअर का पानी इन डबरियों में आता है। तीन स्तर पर पानी की एक शृंखला तैयार की है। तकनीकी विशेषज्ञ एम.एल. वर्मा का चिन्तन है कि इस डबरी के वेस्टविअर को नीचे की ओर एक बार फिर रोककर पानी की मनुहार की जा सकती है। बकौल मेहरबान सिंह- “नीचे खेतों में दिख रही सूखे में भी हरियाली इसी जल संचय का नतीजा है, जबकि पानी आन्दोलन के पहले औसत बरसात में भी ये खेत सूने पड़े रहते थे।”
...ये हैं श्री रामसिंह पंवारजी।
आपने सिकन्दरखेड़ा में पानी आन्दोलन की नींव रखने में महती भूमिका अदा की है। डबरियाँ तैयार होने के बाद आपके ट्यूबवेल भी जिन्दा हो गए और रामसिंहजी के खेत भीषण सूखे की स्थिति में भी आपको प्रसन्नचित्त नजर आएँगे। आपकी 15 बीघा जमीन में गेहूँ व चने की फसल लहलहा रही है। आपके जैसे 15-20 किसान गाँव में और हैं जो पर्याप्त पानी की वजह से रबी की फसल ले रहे हैं।
...इस गाँव में तालाब जीर्णोंद्धार के साथ-साथ 30 डबरियाँ, 7 गेबियन संरचना और 65 चेकडैम बनाए गए हैं। कंटूर ट्रेंच भी तैयार किये हैं।
इन्हीं रोकी गई बूँदों से गाँव का सामाजिक व आर्थिक परिदृश्य बदल गया है।
...हम आपसे एक बात जानना चाहते हैं? यहाँ रोकी गई बूँदें क्या मीठी-मीठी लगती हैं? खिरनियों के साथ रहेंगी तो मीठी तो होंगी ही!
स्वाद में शायद यह महसूस न हो, लेकिन सिकन्दरखेड़ा में इनकी उपस्थिति से आपको एक मीठेपन का अहसास तो होगा ही।
...अरे भाई, यही अहसास तो इन बूँदों का स्वाद है!
...थोड़ा, इन्हें रोकिए, आपको भी माहौल में एक मिठास नजर आएगी।
...खिरनियों की तरह!!
बूँदों के तीर्थ (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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