Posted on 26 Mar, 2010 10:48 AM ऊँचे चढ़िके बोला मँडुवा। सब नाजों का मैं हूँ भँडुवा।। आठ दिना मुझको जो खाय। भले मर्द से उठा न जाय।।
भावार्थ- मँडुआ नामक अन्न ऊँचे खड़े होकर कहता है कि मैं सब अन्नों में भँडुआ (निर्लज्ज) हूँ। यदि मुझे आठ दिन खा ले तो वह कितना भी शक्तिशाली मर्द हो निर्बल हो जायेगा और उठकर चल नहीं पायेगा।
Posted on 26 Mar, 2010 10:25 AM अँतरे खोंतरे डंडै करै। ताल नहाय ओस माँ परै।।
दैव न मारै अपुवइ मरै।
भावार्थ- जो व्यक्ति कभी-कभी (दूसरे-चौथे) व्यायाम करता है अर्थात् नियमित नहीं करता, तालाब में स्नान करता है और ओस में सोता है, उसे भगवान या भाग्य नहीं मारता स्वयं अपनी मूर्खता से मरता है।
Posted on 26 Mar, 2010 10:18 AM स्वान धुनै जो अंग, अथवा लौटैं भूमि पर। तौ निज कारज भंग, अतिही भंग, अतिही कुसगुन जानिये।।
भावार्थ- यदि यात्रा के समय कुत्ता अपना शरीर फड़फड़ाये या भूमि पर लोटता नजर आये तो बड़ा अशुभ होता है। व्यक्ति जिस कार्य से जा रहा है वह पूरा नहीं होगा। यह एक अपशकुन है।
Posted on 26 Mar, 2010 10:00 AM लोमा फिरि दरस दिखावे। बायें ते दहिने मृग आवै।। भड्डर जोसी सगुन बतावैं। सगरे काज सिद्ध होइ जावै।।
शब्दार्थ- लोमा- लोमड़ी।
भावार्थ- यात्रा पर जाते समय यदि लोमड़ी बार-बार दिखाई पड़े। हिरण बायें से दाहिने की ओर निकल जाये तो व्यक्ति जिन कार्यों के लिए जा रहा होगा वे सभी सिद्ध हो जायेंगे, ऐसा ज्योतिषी भड्डरी कहते हैं।