सगुन सुभासुभ निकट हो, अथवा होवै दूर।
दूरि से दूरि निकट निकट, समझौ फल भरपूर।।
भावार्थ- यदि शुभ और अशुभ शकुन दूर हो तो फल को भी दूर समझना चाहिए और यदि निकट हो तो फल को भी निकट समझना चाहिए।
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