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बूँदा है, बरखा है,
पर तालाब रीते हैं।
माटी के होंठ तक
कई जगह सूखे हैं।
भूजल की सीढ़ी के
नित नए डण्डे टूटे हैं।
गहरे-गहरे बोर ने
कई कोष लूटे हैं।
शौचालय का शोर भी
कई स्वच्छ जलकोष लूटेगा।
स्वच्छ नदियों का गौरव
बचा नहीं शेष अब,
हिमनद के आब तक
पहुँच गई आग आज,
मौसम की चुनौती