पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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पुस्तक परिचय - जब स्वर्ग में बरसता है जहर
Posted on 17 Sep, 2017 11:45 AM (swarga : when the skies rain poison and our world turns into a wasteland)
कृषि पैदावार बढ़ाने के नाम पर अन्धाधुन्ध इस्तेमाल किये जा रहे कीटनाशकों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है अंबिकासूतन मांगड का उपन्यास
पुस्तक
जल संसाधन संरक्षण और विकास | Water Resources Conservation in Hindi
जल संसाधन संरक्षण और विकास के बारे में जानें | Learn about water resources conservation and development in hindi. Posted on 17 Sep, 2017 09:54 AM

जल संसाधन संरक्षण और विकास
जल के अन्य उपयोग
Posted on 16 Sep, 2017 10:12 AM
जल संसाधन का उपयोग कृषि में सिंचाई के अलावा मनुष्यों, पशुओं और अन्य जीवों के पीने के लिये, शक्ति के उत्पादन गंदे पानी को बहाने, सफाई, घोंघा, मछलीपालन, मनोरंजन, औद्योगिक कार्य एवं सौर परिवहन आदि हेतु किया जाता है। ऊपरी महानदी बेसिन में वर्तमान में जल का उपयोग घरेलू, औद्योगिक कार्य, मत्स्यपालन, शक्ति के उत्पादन एवं मनोरंजन हेतु किया जा रहा है।
मत्स्य उत्पादन
Posted on 15 Sep, 2017 04:37 PM

मत्स्य पालन :


ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मानव आहार में मछली का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीनकाल से ही मछली पालना एवं मछली पकड़ना एक महत्त्वपूर्ण उद्योग रहा है। मछली मनुष्य के भोजन का न केवल महत्त्वपूर्ण पदार्थ है अपितु यह सबसे सस्ता एवं सुगम खाद्य है। विभिन्न भागों में मछली की खपत मुख्यत: स्थानीय परम्परा रीति-रिवाज, धर्म एवं मछली पकड़ने की सुविधा पर निर्भर करती है।
जल का घरेलू, औद्योगिक तथा अन्य उपयोग
Posted on 15 Sep, 2017 01:55 PM

ग्रामीण तथा नगरीय पेयजल प्रदाय योजना का विकास :

भौमजल
Posted on 14 Sep, 2017 04:10 PM
भौमजल के अन्तर्गत पृथ्वी की सतह के नीचे की जल की उपस्थिति, वितरण एवं संचालन का अध्ययन किया जाता है। भौमजल का अर्थ उस जल से होता है, जो किसी भू-स्तर की समस्त रिक्तियों में रहता है। मिट्टी का वह भाग जिसके बीच में से भूमिगत जल का प्रवाह चल रहा हो, संतृप्त कटिबंध कहलाता है और इस कटिबंध के पृष्ठ भाग को भूमिगत जल तल कहते हैं।
आओ, बनाएँ पानीदार समाज
Posted on 12 Sep, 2017 04:15 PM

गांधी जी ने पश्चिम की औद्योगिक सभ्यता को राक्षसी सभ्यता कहा है। असंयमी उपभोक्तावाद और लालची बाजारवाद ने सृष्टि विनाश की नींव रखी। भारत का परम्परागत संयमी जीवन-दर्शन ही त्रासद भविष्य से बचाव का मार्ग सुझाता है। समाज में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार जरूरी है। इसके सघन प्रयास जरूरी हैं। परम्परागत ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय जरूरी है, सम्यक सन्तुलन जरूरी है। इसके लिये हमें लोक संस्कृति, लोक संस्कार और लोक परम्पराओं के पास लौटना होगा।

भारतीय ज्ञान परम्परा में श्रुति और स्मृति का प्रचलन रहा है। प्रकृति के सान्निध्य में सृष्टि के समस्त जैव आयामों के साथ सामंजस्य और सह-अस्तित्व के बोध को जाग्रत करते हुए जीवन की पाठशाला अरण्य के गुरुकुल में आरम्भ होती थी। इसी परिवेश और पर्यावरण में 5000 वर्ष पहले विश्व के आदिग्रंथ वेद की रचना हुई। वेद हों या अन्यान्य वाङ्मय सनातन ज्ञान के आदि स्रोत ऐसी ऋचाओं, श्लोकों, आख्यानों से भरे पड़े हैं जिनमें प्रकृति की महिमा और महत्ता का गुणगान है। ये भारतीय संस्कृति की कालजयी धरोहर हैं। इनका सम्बन्ध मानव जीवन की सार्थकता से है। जीवन को उत्कृष्ट बनाने की दिशा में उत्तरोत्तर आगे बढ़ने से है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे समाज के व्यवहार में आया यह ज्ञान लोक-विज्ञान है। कालान्तर में लोक संस्कृतियों ने लोक-विज्ञान को अपने इन्द्रधनुषी रंगों में रंगा। उसकी छटा दैनन्दिन रीति-रिवाज, संस्कार, मान्यताओं, परम्पराओं में लोक संस्कृति के माध्यम से विस्तार पाने लगी।
samaj, prakriti aur vigyan book cover
धरातलीय जल (Surface Water)
Posted on 12 Sep, 2017 03:56 PM

धरातलीय जल, सतही जल अर्थ और परिभाषा (Surface Water Meaning and definition in Hindi)

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