Posted on 08 Oct, 2017 09:59 AM स्वतंत्रता के लगभग 53 वर्ष बाद गत 28 जुलाई 2002 को केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नीतीश कुमार ने नई राष्ट्रीय कृषि नीति संसद के पटल पर रखी, इसकी मुख्य विशेषता यह है कि सरकार ने अगले दो दसकों के लिये कृषि क्षेत्र में प्रतिवर्ष 4 प्रतिशत की विकास दर निर्धारित की है। 17 पृष्ठों की कृषि नीति में भूमि सुधार के माध्यम से गरीब किसानों को भूमि प्रदान करना, कृषि जोतों का समेकन, कृषि क्षेत्र में निवेश को ब
Posted on 07 Oct, 2017 11:18 AM स्वस्थ्य जीवन के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्ति को ऐसा भोजन मिले जिसमें सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में उपस्थित हों, ऐसा तभी संभव है जब उसको संतुलित भोजन प्राप्त हो परंतु हर व्यक्ति का संतुलित भोजन सामान्य नहीं हो सकता है। व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य संपादित करता है। अत: कार्य की विभिन्नता के आधार पर उसे भोजन की भी आवश्यकता होती है। समझदार व्यक्ति को अपना भोजन इस आयु, जलवायु, ऋतु तथा लिं
Posted on 05 Oct, 2017 03:51 PM भोजन मनुष्य की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आधारभूत आवश्यकता है जिसके बिना कोई भी प्राणी जीवन की कल्पना नहीं कर सकता है। जीवन के प्रारंभ से जीवन के अंत तक शांत करने तथा शारीरिक विकास के लिये मनुष्य को भोजन की आवश्यकता होती है। डॉ.
Posted on 03 Oct, 2017 11:35 AM किसी प्रदेश अथवा क्षेत्र के फसलों के प्रतिरूप में परिवर्तन की संभावना के विषय में दो मत हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि फसलों के प्रतिरूप में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है जबकि कुछ विद्वान मानते हैं कि सुविचारित नीति के सहारे इसे बदला जा सकता है। वसु केडी ने यह मत व्यक्त किया है ‘‘परंपराबद्ध तथा ज्ञान के अत्यंत निम्न स्तर वाले देश के कृषक प्रयोग करने की उद्यत नहीं होते हैं, वे प्रत्येक बात
Posted on 02 Oct, 2017 11:54 AM प्राकृतिक संसाधन किसी देश की अमूल्य निधि होते हैं, परंतु उन्हें गतिशील बनाने, जीवन देने और उपयोगी बनाने का दायित्व देश की मानव शक्ति पर ही होता है, इस दृष्टि से देश की जनसंख्या उसके आर्थिक विकास एवं समृद्धि का आधार स्तंभ होती है। जनसंख्या को मानवीय पूँजी कहना कदाचित अनुचित न होगा। विकसित देशों की वर्तमान प्रगति, समृद्धि व संपन्नता की पृष्ठभूमि में वहाँ की मानव शक्ति ही है जिसने प्राकृतिक संस
Posted on 01 Oct, 2017 11:03 AM किसी भी क्षेत्र की कृषि जटिलताओं को समझने के लिये उस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्त फसलों का एक साथ अध्ययन आवश्यक होता है। इस अध्ययन से कृषि क्षेत्रीय विशेषतायें स्पष्ट होती हैं। सस्य संयोजन अध्ययन के अध्यापन के अभाव में कृषि की क्षेत्रीय विशेषताओं का उपयुक्त ज्ञान नहीं होता है। फसल संयोजन स्वरूप वास्तव में अकस्मात नहीं होता है अपितु वहाँ के भौतिक (जलवायु, धरातल, अपवाह तथा मिट्टी) तथा स
Posted on 27 Sep, 2017 04:16 PM प्रकृति ने अपनी उदारता से मनुष्य को विविध आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये विभिन्न साधनों का नि:शुल्क उपहार दिया है। प्राकृतिक परिवेश से मनुष्य को विभिन्न उपयोगों के लिये प्राप्त इन प्राकृतिक नि:शुल्क उपहारों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। इन प्राकृतिक संसाधनों को जितनी कुशलता से प्रयोग योग्य वस्तुओं एवं सेवाओं में परिवर्तित कर लिया जाये, उतने ही श्रेयष्कर रूप में व्यक्ति की भोजन, आवास, वस्त्र
Posted on 25 Sep, 2017 04:15 PM देश का कुल क्षेत्रफल उस सीमा को निर्धारित करता है जहाँ तक विकास प्रक्रिया के दौरान उत्पत्ति के साधन के रूप में भूमि का समतल विस्तार संभव होता है। जैसे-जैसे विकास प्रक्रिया आगे बढ़ती है और नये मोड़ लेती है, समतल भूमि की माँग बढ़ती है, नये कार्यों और उद्योगों के लिये भूमि की आवश्यकता होती है व परम्परागत उपयोगों में अधिक मात्रा में भूमि की माँग की जाती है। सामान्यतया इन नये उपयोगों अथवा परम्परागत
Posted on 21 Sep, 2017 03:28 PM आर्थिक विकास का ऐतिहासिक अनुभव और आर्थिक विकास की सैद्धांतिक व्याख्या यह स्पष्ट करते हैं कि आर्थिक विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्रत्येक अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विकास अनुभव की पुष्टि करते हैं। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के राष्ट्रीय उत्पाद, रोजगार और निर्यात की संरचना में कृषि क्षेत्र का योगदान उद्योग और सेवा क्षेत्र की तुलना