पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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युगों-युगों से लोक मंगलकारिणी है नर्मदा
Posted on 30 Aug, 2015 12:41 PM भूमि भृगु, जमदग्नि ऋषिनर परशुधारी राम की
धर्म, श्रृद्ध भाव की संवर्धिनी है नर्मदा

धार के कंकर कि शंकर नर्मदेश्वर हैं सभी
भक्ति-रस में लोक की अवगाहिनी है नर्मदा

मंडला, मांडव महीष्मति की नगरियाँ तट बसी
उस विगत ऐश्वर्य की संदर्शिनी है नर्मदा

आदिशंकर और मंडन मिश्र के शास्त्रार्थ की
साक्षिणी है, धर्म की प्रोत्साहिनी है नर्मदा
नदी
Posted on 30 Aug, 2015 12:35 PM आह भरती है नदी
टेर उठती है नदी
और मौसम है कि उसके
दर्द को सुनता नहीं।

रेत बालू से अदावत
मान बैठे हैं किनारे
जिन्दगी कब तक बिताए
शंख सीपी के सहारे
दर्द को सहती नदी
चीखकर कहती नदी
क्या समंदर में नया
तूफान अब उठता नहीं।

मन मरूस्थल में दफन है
देह पर जंगल उगे हैं
तन बदन पर कश्तियों के
खून के धब्बे लगे हैं
मनरेगा
Posted on 27 Aug, 2015 04:29 PM पाठ-10
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम का उद्देश्य

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम एक ऐसा कानून है, जिसमें ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्यों को, जो अकुशल कार्य करने के इच्छुक हों, वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित किया गया है।
जलागम विकास में लाभों का बँटवारा, एवं गरीब वर्ग का सशक्तिकरण
Posted on 25 Aug, 2015 11:41 AM पाठ-8

भूमिका


भारत में तेजी से घट रही प्राकृतिक सम्पदाओं का कारण है देश की बढ़ती जनसंख्या तथा उनकी बढ़ती हुई जमीन पर निर्भरता। 1952 से 1981 तक के बीच भारत में खेती योग्य भूमि 0.48 हेक्टेयर/व्यक्ति से घट कर 0.20 हेक्टेयर/व्यक्ति हो गई है।
उपभोक्ता समूह
Posted on 25 Aug, 2015 11:06 AM पाठ-7
जलागम की परियोजना के अन्तर्गत होने वाले प्रत्येक कार्य के लाभार्थियों के अलग-अलग समूह बनाये जायेंगे जिनको उपभोक्ता समूूह के नाम से जाना जायेगा। ये समूह अपने प्रत्येक कार्य के क्रियान्वयन, संचालन एवं देख-रेख के प्रति जिम्मेदार होंगे। सदस्य एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठित होंगे। एक आदर्श उपभोक्ता समूह में सदस्यों की संख्या 5 से 20 तक हो सकती है।
मैं पेड़ ही बनूँगा
Posted on 24 Aug, 2015 04:10 PM यदि बन सका सहारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।
शिवमय स्वरूप प्यारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

हिन्दू, इसाई, मुस्लिम, जिन बौद्ध,पारसी, सिख,।
हर धर्म का दुलारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

भूखे-तृषित पथिक का, बेघर उदास यति का,
लेकर आशीष सारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।

पशु, भूत, प्रेत, बिच्छू, कृमि, बर्र, साँप, शिव के-
सिंगार का पिटारा, मैं पेड़ ही बनूँगा।।
माँ नर्मदा
Posted on 24 Aug, 2015 04:02 PM अमरकंटक की सुता तुम, शाँत कभी विकराल।
विध्वंशक पावस ऋतु, ग्रीष्म करे हड़ताल।।

सलिलापुण्य प्रदायनी, घाट-घाट नव नीर,
बिदा ले रही तटों से , है बिछुडन की पीर।

गर्मी में जलधार का, मध्यम हुआ प्रवाह,
घाट-घाट देता रहा, अपने जल की थाह।

आड़ी-तिरछी चाल भी, खोती नहीं विवेक,
बालूकण करते रहे, माता का अभिषेक।
कहा नदी ने मेघ से
Posted on 24 Aug, 2015 03:57 PM नहीं आचमन योग्य जल, नदियाँ हुई अस्वस्थ
जीव- जन्तु हैं त्रस्त अब, मृत्यु सोच निकटस्थ

कहा नदी ने मेघ से, बरसो प्रियतम झूम
प्यास मिटा दो अमृता, मैं लूंगी मुंह चूम

गाते मेघ मल्हार हैं, मेरे दोनों कूल
अब आओ भुजबन्ध में, प्रकृति हुई अनुकूल

चरण पखारूंगी विमल, बरसो हे! घनश्याम
शुष्क दृगों को तृप्ति दो, रसमय रूप ललाम
पानी
Posted on 24 Aug, 2015 03:52 PM पानी तेरा दास जग, तू ही जग की आस।
सब में तेरा वास है, सबमें तेरी प्यास।।

जड़-चेतन, जीवन-जगत्, सृजन और विध्वंस।
सब पानी के अंश हैं, सब पानी के वंश।।

पानी है तो प्राण हैं, पानी है तो देह।
पानी है तो आँख में, जिन्दा जग का स्नेह।।

पड़े न वृक्षों पर कभी, बुरी किसी की दृष्टि।
वृक्षों से जल, और है, जल से सारी सृष्टि।।
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