गुंजन कुमार

गुंजन कुमार
गंगा सफाई का छेड़ा अभियान
Posted on 10 Dec, 2015 01:26 PM

हरिद्वार के युवाओं की इस टोली ने गंगा सफाई के लिये जो अभियान चलाया है, उसका प्रभाव गहरा होगा। ऐसी कोशिश देश के अन्य भागों में भी हो रही हैं। यदि गंगा सफाई का अभियान बड़े जन-अभियान का स्वरूप धारण कर ले तो निर्मल गंगा कोई असंभव कार्य नहीं रह जाएगा।
चलो, चले-गाँव की ओर
Posted on 20 Sep, 2015 02:56 PM

‘मेरे गाँव, मेरे तीर्थ’ कार्यक्रम में संघ के लोग उत्तराखण्ड के गाँव से पलायन कर चुके प्रवासियों को साल में एक बार अपने गाँव आने का आग्रह कर रहे हैं। संघ यह कार्यक्रम अपने सामाजिक संगठन ‘उत्तरांचल उत्थान परिषद’ के बैनर तले चला रहा है। जिसमें संघ के कार्यकर्ता प्रवासियों को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वे साल में कम-से-कम एक बार अपने पैतृक गाँव जरूर आएँ। उत्तराखण्ड में गाँव-के-गाँव खाली होने से ज

गाँव
आपदा के बाद उत्तराखंड
Posted on 01 Sep, 2013 01:49 PM उत्तराखंड की आपदा ऐसे छोड़ गई है जिसकी टीस मिटने में लंबा वक्त लगेगा। दो महीने बाद भी कहीं राहत सामग्री और मुआवजे की बंदरबांट चल रही है तो कहीं मलबों में दबे शव डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रहे हैं। प्रशासन की उदासनता और हीलाहवाली लोगों की तकलीफ़ को और बढ़ा रही है। इस उथल-पुथल की दास्तान बयान कर रहे हैं गुंजन कुमार साथ में शंभूनाथ शुक्ल का यात्रा अनुभव।

आपदा के शुरुआती दिनों में आपदाग्रस्त गाँवों में हेलिकॉप्टर से बिस्कुट, पानी वगैरह गिराया गया था। उसके बाद लोग रोज़ाना दर्जनों बार हेलिकॉटर को अपने गांव के ऊपर से उड़ान भरते देखते हैं। जैसे ही किसी हेलिकॉप्टर की आवाज़ इनके कानों में पड़ती है तो सभी अपने आंगन में आकर आसमान को निहारने लगते हैं। ऐसा करते हुए इन्हें दो महीने हो गए हैं। लेकिन एक भी पैकेट अन्न इस क्षेत्र में नहीं गिरा। राहत सामग्री नहीं मिलने के कारण घाटी के लोगों पर भुखमरी का संकट गहराने लगा है। आपदा के दो महीने बाद भी उत्तराखंड में केदारनाथ इलाके की हकीक़त अब भी भयावह है। वहां मलबों में अब भी दबी लाशें डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रही हैं। भूख से तड़पते लोग हैं, मगर राहत सामग्री उन तक नहीं पहुंच पाई है। कालीमठ और मदमहेश्वर घाटी की सूरत-ए-हाल जानने के लिए जान जोखिम में डालकर उन दुर्गंध घाटियों में गया, जहां अभी तक कोई मीडियाकर्मी नहीं पहुंचा पाया था और न सरकारी कारिंदा। मुआवज़े का मरहम ज़ख्म तक पहुंचने से पहले ही प्रहसन में तब्दील हो रहा है। पीड़ा की घाटियों को जानने-समझने के क्रम में हमारा पहला पड़ाव ऊखीमठ था। इसी तहसील में केदारनाथ है, जो रुद्रप्रयाग जनपद में है। अगले दिन सबसे पहले ऊखीमठ का पैंज गांव जाना हुआ। बताया गया कि इस गांव के आठ लोग केदारनाथ के काल के गाल में समा गए, जिनमें पांच बच्चे थे।
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