उत्तर प्रदेश

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फसल ऋतुजैविकी की भविष्यवाणी एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
Posted on 01 Nov, 2016 04:29 PM
जलवायु परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है जिसका हिमालयी क्षेत्र पर भी अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। जलवायु परिवर्तन का पर्वतीय खेती पर भी भविष्य में प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा अत: इससे बचने के लिये हमें अग्रिम रूप से तैयार होना होगा और इसके अनुकूलन तथा शमन के लिये पूर्व चेतावनी प्रणालियों एवं अन्य तरीके विकसित करने होंगे। इस लेख में ऋतुजैविकी, इसके अध्ययन के कारणों तथा हाल के समय में अनुकरण प्रतिमानों का ऋतुज
फल एवं सब्जियों के उपोत्पादों का करें सदुपयोग
Posted on 01 Nov, 2016 02:26 PM
विकासशील देशों में तुड़ाई उपरांत कुप्रबंधन से फल एवं सब्जियों के उत्पादन का काफी हिस्सा यों ही क्षतिग्रस्त हो जाता है। विभिन्न संस्थानों, संस्थाओं एवं वैज्ञानिकों द्वारा तैयार आ
प्रोटियोमिक्स : मेजबान पौधों व कवकों के संबंध को समझने का एक माध्यम
Posted on 01 Nov, 2016 01:11 PM
ब्रह्माण्ड में उपस्थित हर जीव को अपने को जीवित रहने के लिये भोजन की आवश्यकता होती है। पोषण सभी जीवधारियों के लिये एक अतिआवश्यक जरूरत है। अत: सभी जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, जीवाणु, विषाणु, कवक आदि विभिन्न विधियों द्वारा अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इन सभी को जीवित रहने के लिये एक संतुलित पारिस्थितिकी तन्त्र की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर किसी एक स्थान पर बहुत अधिक मात्रा में वनस्प
पैकेजिंग में प्लास्टिक का विकल्प : जैविक कचरा
Posted on 01 Nov, 2016 12:51 PM
विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकता पूर्ति हेतु खाद्य सामग्री के संग्रहण एवं परिवहन के दौरान उसकी गुणवत्ता एवं सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में पैकेजिंग की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संश्लेषित बहुलक (प्लास्टिक) का आविष्कार पैकेजिंग के क्षेत्र में क्रान्तिकारी सिद्ध हुआ। साँचे में ढाले जाने की क्षमता, पारदर्शी गुण, नमी व सोखना, वायु का प्रवेश अवरुद्ध करना, आदि महत्त्वपूर्ण गुणों के कारण पैक
परिवेशी वायु गुणवत्ता के लिये प्रेक्षित कलर कोडेड सूचकांक
Posted on 31 Oct, 2016 04:54 PM
भूमि और जल के अलावा, स्वच्छ हवा जीवन के निर्वाह के लिये मुख्य संसाधन है। तेजी से होते शहरीकरण और औद्योगिकरण के कारण हवा में विभिन्न तत्वों/यौगिकों के शामिल होने से शुद्ध वायु निरंतर प्रदूषित हो रही है। `वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981, (1981 का 14)' के अनुसार वायु प्रदूषण को अधिनियमित किया गया तथा वायु प्रदूषण को `वायु में किसी भी प्रदूषक की उपस्थिति' के रूप में परिभाषित किया गया है
निर्बाध जल प्रबंधन और भारत
Posted on 29 Oct, 2016 10:50 AM
जल भूमि, सागर तथा आकाश में अनवरत घूमता रहता है और पृथ्वी के 70 प्रतिशत भाग पर छाया हुआ है। एक बार ऐसा लगता है कि यह अनन्त और अक्षय संसाधन है और आज के समय में यह मानवीय समाज और आर्थिक विकास को परिभाषित करता है। जल संसाधन का प्रबंधन किसी भी राष्ट्र की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है क्योंकि यह विकास तथा आर्थिक विकास से सीधा जुड़ा रहा है और विश्व द्वारा सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती का सामना करा रहा है। ये वि
दुर्लभ जल पक्षियों और जैव विविधताओं के संरक्षक हैं नम भूमि
Posted on 29 Oct, 2016 10:36 AM
भारत अपनी असाधारण जैव विविधताओं के लिये सारी दुनिया में एक विशेष स्थान रखता है। जैव विविधताओं के क्षेत्र में यह एशिया का दूसरा और विश्व का सातवें क्रम का देश है। यहाँ जलीय प्राकृतिक आवासों के संसाधन अत्यन्त समृद्ध और विस्तृत हैं। आज के तमाम विकसित संचार साधनों के बावजूद इसके बारे में देश के बहुत थोड़े लोगों को ही जानकारी है।
डिजिटल इंडिया बदलेगा देश की तस्वीर (Digital India)
Posted on 28 Oct, 2016 12:50 PM
भारत वर्ष के क्षेत्रफल, जनसंख्या, भाषाओं और अन्य विविधताओं के चलते समस्त सुविधाओं और कार्यक्रमों की जानकारी प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाना एक दुरूह कार्य था। मिजोरम में बैठे मरीज के लिये बिना बड़े शहर जाए यह जान पाना एक असम्भव कार्य था कि कहीं उसे कैंसर तो नहीं है, और अगर है, तो किस स्तर का है?
जैविक खेती में उपयोगी है वर्मीवाश
Posted on 28 Oct, 2016 12:40 PM
भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी दो तिहाई आबादी गाँवों में बसती है एवं अपना जीविकोपार्जन करती है। हमारे देश में हरित क्रान्ति सन 1966-67 में शुरू हुई जिसके फलस्वरूप उन्नत किस्मों के बीज एवं रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुँध प्रयोग कृषि में उत्पादन बढ़ाने के लिये हुआ। इन रसायनों के लगातार उपयोग से भूमि की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों का ह्रास हुआ है। रसायनों के अधिक उपयोग से अन्न की गुणवत्ता मे
खट्टा मीठा : अमरख
Posted on 28 Oct, 2016 12:28 PM
खट्टे-मीठे स्वाद से युक्त पाँच धारियों वाला ‘अमरख’ का फल भारतीय जनमानस में गहराई से जुड़ा हुआ है। भारतीय मूल के इस फल की चर्चा रामायण जैसे ग्रन्थ में भी मिलती है। यह आनुष्ठानिक कार्यों में भी प्रयुक्त होता है। आधुनिक युग में समुद्री आहारों को सजावटी रूप देने में भी इसे प्रयोग किया जाता है। इसके कच्चे फल को काट कर मूली, सेलेरी और सिरका के साथ मसाला मिलाकर बने स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में भी खाय
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