विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकता पूर्ति हेतु खाद्य सामग्री के संग्रहण एवं परिवहन के दौरान उसकी गुणवत्ता एवं सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में पैकेजिंग की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संश्लेषित बहुलक (प्लास्टिक) का आविष्कार पैकेजिंग के क्षेत्र में क्रान्तिकारी सिद्ध हुआ। साँचे में ढाले जाने की क्षमता, पारदर्शी गुण, नमी व सोखना, वायु का प्रवेश अवरुद्ध करना, आदि महत्त्वपूर्ण गुणों के कारण पैकेजिंग हेतु प्लास्टिक की लोकप्रियता अद्वितीय है। अत्यंत हल्की एवं पतली प्लास्टिक फिल्म की यांत्रिक सामर्थ्य (भार वहन क्षमता) काफी अधिक होने के कारण परम्परागत पैकेजिंग पदार्थों जैसे- कागज, गत्ता, काँच एवं टिन का स्थान प्लास्टिक ने ले लिया है। प्लास्टिक पदार्थों की विविधता एवं विभिन्न संगठनों के कारण पदार्थ विशिष्ट के अनुरूप पैकेजिंग डिजाइन की जा सकती है।
विश्व में वर्ष 2015 में प्लास्टिक का वार्षिक उत्पादन 3000 लाख टन से भी अधिक अनुमानित है, जिसका वैश्विक अर्थव्यवस्था में खरबों डॉलर का योगदान होगा। इस उत्पादन का उल्लेखनीय भाग पैकेजिंग में प्रयुक्त होता है (चित्र क्रं - 1 क)।
पैकेजिंग में प्लास्टिक का उपयोग लगभग सभी प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं में किया जाता है। पैकेजिंग में उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा का लगभग आधा भाग फिल्मों, चादरों, बोतलों, कपों, डिब्बों एवं ट्रे के रूप में खाद्य सामग्री रखने में प्रयुक्त होता है। एक ओर जहाँ प्लास्टिक का अजैव अपघटनीय गुण लंबे समय तक खाद्य सामग्री संग्रहण हेतु उपयोगी है, वहीं दूसरी ओर यही गुण पर्यावरण के लिये अत्यन्त हानिकारक है। उपयोग के उपरान्त फेंक दिये जाने वाले मानव द्वारा संश्लेषित प्लास्टिक पदार्थों के निपटान के लिये प्रकृति में कोई क्रियाविधि नहीं है।
विचारणीय तथ्य यह है, कि क्या पैकेजिंग, खानपान (Catering), शल्य चिकित्सा (Surgery), स्वच्छता (Hygiene) जैसे अल्पकालीन उपयोगों के लिये प्लास्टिक पदार्थों का उपयोग युक्तिसंगत है? सोचनीय है, कि क्या अल्पकालिक सुविधा हेतु चिरजीवी पदार्थों को उपयोग कर कचरे के रूप में पर्यावरण में झोंक दिया जाये। प्रतिदिन के कचरे में भोज्य पदार्थों की पैकेजिंग एवं चिकित्सकीय अपशिष्ट का बहुत बड़ा हिस्सा होता है, जिसमें विविध प्रकार के प्लास्टिक उपस्थित होते हैं। (चित्र-1 ख) निपटान के समुचित उपायों एवं संसाधनों के अभाव में यह पर्यावरण को सैकड़ों-हजारों वर्षों तक प्रदूषित करता रहेगा। (चित्र -1 ग)
तात्कालिक सुविधा के लोभ एवं दूरगामी परिणामों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति के कारण प्लास्टिक पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। घर से थैला लेकर बाजार जाने की आदत लुप्तप्राय हो चली है। आकर्षक पैकिंग के द्वारा ग्राहकों को लुभाने की व्यापारिक वृत्ति के कारण प्लास्टिक का पैकेजिंग में अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है, परिणामस्वरूप कचरे में प्लास्टिक की मात्रा बढ़ती जा रही है। (चित्र -1 ख)
प्लास्टिक को कचरे में पड़ी खाद्य सामग्री के साथ गाय आदि पशु निगल लेते हैं, जो उनके लिये पीड़ादायी सिद्ध होता है। नालियों के माध्यम से प्लास्टिक पदार्थ नदी, तालाब, समुद्र में पहुँचने पर यह जलीय जीवों द्वारा निगल लिया जाता है, जो उनके लिये हानिकारक होता है। मछलियों पर भोजन के लिये निर्भर पक्षियों को भी दुष्प्रभावित करता है। (चित्र -2)
संश्लेषित प्लास्टिकों का विकल्प खोजने की आवश्यकता
अजैव अपघटनीय प्रकृति के साथ ही दूसरी समस्या यह भी है, कि प्लास्टिक उत्पादन में पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग किया जाता है, जिनके सीमित भण्डार निरन्तर घटते जा रहे हैं, फलत: मूल्य बढ़ रहे हैं। अर्थशास्त्रियों एवं पर्यावरणविदों के लिये यह चिन्तनीय विषय है। धारणीय विकास हेतु प्लास्टिक के विकल्प की खोज में वैज्ञानिक तत्परता से संलग्न हैं। प्लास्टिक के समुपयुक्त विस्थापन के लिये निरन्तर नवीकरणीय जैव पदार्थों (renewable bio resources) से नवीन पदार्थों का विकास करना वैज्ञानिकों की प्राथमिकता में शामिल है।प्रकृति से प्रेरणा लेकर वैज्ञानिक जैव अपघट्य पदार्थों एवं सरल प्रविधियों के अनुसंधान में संलग्न हैं। प्रकृति में सरलतम पदार्थों से जटिल एवं विविध संरचनाएं बनाने की अद्भुत क्षमता है। कार्बन डाइआक्साइड एवं जल से सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोज बनता है, इसी ग्लूकोज के अनेक (हजारों) अणु जुड़कर सेल्युलोज एवं स्टार्च बनाते हैं। ग्लूकोज अणुओं के परस्पर जुड़ने के तरीके की भिन्नता से इन दोनों प्राकृतिक पदार्थों के गुण-धर्म चमत्कारिक रूप से भिन्न होते हैं।
सेल्युलोज
सेल्युलोज पृथ्वी पर सर्वाधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला कार्बनिक पदार्थ है। जैविक क्रियाओं के द्वारा प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर इसका उत्पादन लगभग 1010 से 1011 टन आंका जाता है। इसमें से इसका लगभग 6×109 टन विभिन्न उद्योगों जैसे - कागज, कपड़ा फर्नीचर, इमारती उपयोग, रासायनिक एवं अन्य पदार्थों के प्रसंस्करण के लिये प्रयुक्त होता है।
सेल्युलोज से अभिनव पदार्थ बनाने का इतिहास बहुत पुराना है। सन 1870 में हयात मैन्यूफेक्चरिंग कम्पनी ने सेल्युलोज पर नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से सेल्युलोज नाइट्राइट बनाया जो सेल्यूलाइड के रूप में फिल्म उद्योग में व्यापक रूप से प्रयोग में लाया गया। यह मानव निर्मित सबसे पहला थर्मोप्लास्टिक था। इस प्रयास से प्रेरित होकर औद्योगिक स्तर पर विविध प्रकार के पदार्थ बनाये गये, जो काष्ठ द्वारा प्राप्त सेल्युलोज के रासायनिक परिवर्तन से बनाये गये।
विस्कोस रेयान या कृत्रिम रेशम पुनरुद्भवित सेल्युलोज (regenerated cellulose) से वृहद स्तर पर बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त सेल्युलोज ईथरों एवं एस्टरों का व्यावसायिक उपयोग सतह-लेपन (Coating), फिल्म, झिल्लियों, इमारती पदार्थों, दवाइयों, भोज्य पदार्थों में किया जाता है।
इट बनाया जो सेल्यूलाइड के रूप में फिल्म उद्योग में व्यापक रूप से प्रयोग में लाया गया। यह मानव निर्मित सबसे पहला थर्मोप्लास्टिक था। इस प्रयास से प्रेरित होकर औद्योगिक स्तर पर विविध प्रकार के पदार्थ बनाये गये, जो काष्ठ द्वारा प्राप्त सेल्युलोज के रासायनिक परिवर्तन से बनाये गये। विस्कोस रेयान या कृत्रिम रेशम पुनरुद्भवित सेल्युलोज (regenerated cellulose) से वृहद स्तर पर बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त सेल्युलोज ईथरों एवं एस्टरों का व्यावसायिक उपयोग सतहलेपन (Coating), फिल्म, झिल्लियों, इमारती पदार्थों, दवाइयों, भोज्य पदार्थों में किया जाता है।
सेल्युलोज के स्रोत
प्राकृतिक रेशों के रूप में सेल्युलोज के अनेक उपयोग हैं। इनके प्रमुख स्रोत एवं वार्षिक उत्पादन सारणी 1 में प्रदर्शित हैं।
सारणी 1. सेल्युलोज के व्यावसायिक स्रोत | |
रेशे का स्रोत | विश्व में उत्पादन (हजार टन में) |
जूट | 2300 |
फ्लेक्स | 830 |
हेम्प | 214 |
रेमी (चीनी घास) | 100 |
गन्ने के खोई | 75000 |
बांस | 30000 |
केनाफ | 970 |
सिसल | 378 |
नारियल की जटा | 100 |
एबेका (केले की प्रजाति का पौधा) | 70 |
घास | 700 |
जैव अपघटनीय पदार्थों का पैकेजिंग में प्रयोग
पत्तों से बने हुए पत्तलें, दोने इत्यादि व्यापक रूप से प्रयोग में लाये जाते रहे हैं। सीमित समयावधि वाले अनुप्रयोगों यथा-डिस्पोजेबल कटलरी, डिस्पोजेबल प्लेट, कप एवं बर्तनों, डायपर, कचरे के थैले, पेय पदार्थों के पात्र, फास्ट फूड के पात्र, कृषि पलवार (Mulching), फिल्म, चिकित्सकीय उपकरणों (सिरिंज, ट्यूब, दस्ताने आदि) के लिये पुनर्नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त जैव-अपघट्य जैव-बहुलक (Biopolymer) अधिक उपयोगी होंगे।आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप पैकेजिंग में प्लास्टिक के विस्थापन के लिये कृषि अपशिष्टों से प्राप्त जैव बहुलकों के परिमार्जन के उपरान्त उनका बृहद एवं व्यावसायिक प्रयोग संभव है। जैव आधारित पदार्थों से विकसित पदार्थों के लिये बायोप्लास्टिक शब्द प्रयोग में लाया जाता है। बायोप्लास्टिक की स्वीकार्यता के लिये यह निर्धारित करना आवश्यक है, कि उनका अपघटन किन परिस्थितियों में हो। उनकी यांत्रिक सामर्थ्य एवं खाद्य सामग्री के लिये हानिकारक सूक्ष्म जीवों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कैसी हो। उनमें विविध प्रकार के पदार्थ, जैसे- एन्टीऑक्सीडेन्ट, एन्टीफंगल (फफॅूदरोधी) तथा एन्टीमाइक्रोबियल एजेन्ट, रंजक एवं अन्य पोषक पदार्थ भी अधिशोषित किये जा सकें, जो भोज्य पदार्थों की जीवनावधि बढ़ाने में सहायक हों। सामान्यत: जैव बहुलकों की सबसे बड़ी कमी उनकी आद्रता शोषी गुण है। यांत्रिक सामर्थ्य (मजबूती) एवं ढाले जा सकने की क्षमता भी कम होती है। इन सब कमियों को दूर करने के प्रयास में वैज्ञानिक बायोनैनोकम्पोजिटों के विकास में पूरे जोश से संलग्न हैं।
बायोनैनोकम्पोजिट
बायोनैनोकम्पोजिट ऐसे मिश्रित पदार्थ हैं, जिनमें बायोपॉलीमर मैट्रिक्स को नैनोपार्टिकल्स या नैनोकणों से प्रबलित (reinforce) किया जाता है। नैनोपार्टिकल्स ऐसे कण होते हैं, जिनका कम से कम एक आयाम में आकार नैनोमीटर (1-100nm) परास में हो। एक नैनोमीटर मिलीमीटर का 10 लाखवां हिस्सा होता है।
बायोनैनोकम्पोजिट में उपयोग किये जाने वाले बायोपॉलीमर मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बाँटे जा सकते हैं।
(क) प्राकृतिक बायोपॉलीमर
(अ) पौधों द्वारा प्राप्त कार्बोहाइड्रेट - सेल्युलोज, स्टार्च, काइटिन, एल्जिन, अगर, कराजीनन आदि।
(ब) पौधों या प्राणियों से प्राप्त प्रोटीन - सोया प्रोटीन, मक्के से जीन, गेहूँ से ग्लूटेन, जिलेटिन, कोलेजन, छाछ का प्रोटीन, केसीन आदि।
(ख) संश्लेषित जैव अपघट्य पॉलीमर - पॉलीलेक्टिक अम्ल, पॉलीग्लाइकालिक अम्ल, पॉलीकेप्रोलेक्टोन, पॉली ब्यूटिलीन सक्सीनेट, पॉलीविनाइल एल्कोहल आदि।
(ग) सूक्ष्म जीवों से किण्वन द्वारा संश्लेषित पॉलीमर - पॉलीएस्टर, जैसे- पॉलीहाइड्रॉक्सी एल्केनोएट पॉलीसैकेराइड, जैसे- पुलुलन, कर्डलन।
बॉयोपॉलीमर की यांत्रिक सामर्थ्य कम होने के कारण उनमें कुछ अकार्बनिक पूरक मिलाये जाते हैं। मृदा में पाये जाने वाले परतदार सिलिकेट इस कार्य के लिये अत्यंत उपयुक्त होते हैं। बायोपॉलीमर के भार का 5 प्रतिशत मृदा मिलाने पर भी यांत्रिक सामर्थ्य (मजबूती) कई गुना बढ़ जाती है एवं कार्बन डाइआक्साइड, ऑक्सीजन एवं नमी के लिये अवरोधक गुण उत्पन्न हो जाता है।
इस लेख में बायोनैनोकम्पोजिटों में उपयोग किये जाने वाले सभी पदार्थों का विवरण देना संभव नहीं हैं, अत: केवल सेल्युलोज से संबंधित अनुसंधान का संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा है।
नैनोसेल्युलोज या सेल्युलोज नैनोपार्टिकल (CN)
बॉयोपॉलीमर कम्पोजिट उद्योगों के लिये सेल्युलोज नैनोपार्टिकल अत्यन्त आदर्श पदार्थ हैं। प्रकृति से सेल्युलोज के बृहदाणु आपस में हाइड्रोजन आबंधों से जुड़कर बहुत प्रबल संरचना बनाते हैं। पौधों की कोशिकाभित्ति सेल्युलोज की ही बनी होती है। अनेक कोशिकाओं से ऊतक बनते हैं, जो पौधे के विभिन्न हिस्सों जड़, तना, डालियाँ, पत्ती आदि का निर्माण करते हैं। चित्र-3 एवं 4 में इसे दर्शाया गया है। चित्र-5 सेल्युलोज की सूक्ष्म संरचना को प्रदर्शित किया गया है, जिसमें कुछ भाग क्रिस्टलीय एवं कुछ अक्रिस्टलीय होते हैं।
क्रिस्टलीय सेल्युलोज का प्रत्यास्थता गुणांक (खींचे जा सकने की क्षमता) स्टील से भी अधिक तथा केवलार (एक अत्यन्त मजबूत संश्लेषित तंतु, जिसका उपयोग बुलेट प्रूफ जैकेटों में किया जाता है) के समान होती है। यांत्रिक सामर्थ्य अन्य प्रबलीकारक पूरकों-काँच तंतु (glass fibre), धातु तंतु (metal fibre) के सामातंर होती है।
बायोनैनोकम्पोजिट के विशिष्ट गुणों का आधार मैट्रिक्स में पूरक पदार्थ के सूक्ष्मतम कणों का समांगी मिश्रण होता है। सेल्युलोज के गुणों की उपयोगिता तभी सिद्ध होगी, जब उसे नैनों कणों के रूप में प्राप्त किया जाये। नैनोसेल्युलोज पर आधारित पदार्थों के विकास में सबसे बड़ी बाधा उसके निर्माण की उच्च लागत है। प्राकृतिक स्रोतों में सेल्युलोज के अणु परस्पर प्रबलता से जुड़े रहते हैं, उन्हें पृथक करना आसान नहीं है, अत: वैज्ञानिक कम लागत वाली एवं सहज प्रविधि खोजने में व्यस्त हैं, जो औद्योगिक स्तर पर प्रयोग में लाई जा सके।
नैनोसेल्यूलोज के उत्पादन की विधियां
नैनोसेल्युलोज या सेल्युलोज नैनोकणों की दो श्रेणियाँ हैं - नैनोक्रिस्टलाइन सेल्युलोज (NCC) या सेल्युलोज व्हिस्कर्स एवं माइक्रोफाइब्रिलेटेड सेल्युलोज (MFC)। लकड़ी या पौधों के काष्ठ भाग को उच्च दबाव पर होमोजेनाइजेशन (पीसने) से प्राप्त होता है, जो जेल के सदृश गुण धर्म प्रदर्शित करता है। सेल्युलोज के अक्रिस्टलीय भाग को अम्लीय जल अपघटन द्वारा अलग कर देने पर नैनो सेल्युलोज (NCC) प्राप्त होता है। इसके बनाने की विधि रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित की गई है। इनके अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार का नैनोसेल्युलोज सिरके के बैक्टीरिया ग्लूकोनोएसीटो बैक्टर के उपयोग से निम्न अणुभार वाले यौगिकों, जैसे-शक्कर से बनाया जा सकता है। (चित्र-6)
कृषि/वानिकी अवशेषों पर एन्जाइमों की क्रिया से नैनोसेल्युलोज बनाने में भी अनेक वैज्ञानिक सक्रिय हैं। अभी तक बनाये गये नैनोसेल्युलोज कम्पोजिट पारदर्शक होने के साथ ही साथ ढलवाँ लोहे से अधिक तनन शक्ति एवं निम्न तापीय प्रसारयुक्त पाये गये हैं, अर्थात तापक्रम बढ़ने या घटने पर आकार में अंतर नहीं आता। इनके कुछ अनुप्रयोग अवरोधक फिल्म, लचीले प्रदर्शन पटल (जैसे लपेटकर रखे जा सकने वाले टी.वी., मोबाइल फोन आदि में) प्लास्टिक में प्रबलीकारक पूरकों (reinforcing fillers) जैव चिकित्सकीय प्रत्यारोपण (biomedical implants) जैसे एंजियोप्लास्टी हेतु बैलून), ड्रग डिलेवरी, इलेक्ट्रॉनिक घटकों के टेम्पलेट, छन्नक झिल्लियाँ, बैटरी, सुपर कैपेसिटर, विद्युत सक्रिय पॉलीमर इत्यादि में संभावित हैं।
हिन्दी में कहावत है, “घूरे के भी दिन फिरते हैं”। यदि नैनोसेल्युलोज पर आधारित बायोप्लास्टिक बनाने की मितव्ययी एवं सहज विधि विकसित कर ली जाये, तो यह कहावत चरितार्थ हो सकेगी। कृषि उद्योगों के घूरे की कीमत बढ़ जायेगी, क्योंकि उससे उपयोगी सामग्री बन सकेंगी। उपयोग के उपरान्त इस सामग्री के घूरे में जाने पर प्रदूषण की समस्या नहीं रहेगी, जो अभी घूरे में अजैव अपघट्य प्लास्टिक के अंबार से हो रही है।
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