ब्रह्माण्ड में उपस्थित हर जीव को अपने को जीवित रहने के लिये भोजन की आवश्यकता होती है। पोषण सभी जीवधारियों के लिये एक अतिआवश्यक जरूरत है। अत: सभी जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, जीवाणु, विषाणु, कवक आदि विभिन्न विधियों द्वारा अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इन सभी को जीवित रहने के लिये एक संतुलित पारिस्थितिकी तन्त्र की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर किसी एक स्थान पर बहुत अधिक मात्रा में वनस्पति होने के कारण प्राथमिक उपभोक्ता जीवित रहते हैं, जबकि प्राथमिक उपभोक्ता पौधों (वनस्पतियों) को खाकर उनकी संख्या कम कर देते हैं। प्राथमिक उपभोक्ता को गौण उपभोक्ता (दूसरी व तीसरी श्रेणी के उपभोक्ता) खाते हैं। इन गौण उपभोक्ताओं का सम्बन्ध प्राथमिक उपभोक्ताओं व उत्पादकों से है (चित्र- 1)।
![Fig-1](https://c5.staticflickr.com/6/5443/30567697092_ba3f7927d2.jpg)
वैज्ञानिक नवीन-तकनीकी माध्यमों से पौधों तथा उन्हें नष्ट करने वाले कारकों के भौतिक, रासायनिक व आणविक क्रियाओं पर लगातार शोध करते आ रहे हैं। ये सत्य है कि कोशा जीवधारियों के संरचना एवं जैविक क्रियाओं की एक इकाई है और इनमें प्राय: स्वत: जनन करने की क्षमता होती है। कोशा विभिन्न पदार्थों का छोटा संगठित रूप होता है, जिसमें कि जीवन की सभी क्रियाएँ निहित होती हैं, जिन्हें हम सामूहिक रूप से जीवन कहते हैं। प्रत्येक जीवधारी अपना जीवन एक कोशा से आरम्भ करता है, इसके अस्तित्व को पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाने का कार्य एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अणु डीएनए (DNA) करता है, बहुत सारे जीवधारियों में डीएनए के कार्य का विस्तृत अध्ययन पूर्ण जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से किया जा चुका है तथा लगातार और अन्य का अध्ययन हो रहा है।
डीएनए कोड की नकल m-RNA के निर्माण द्वारा प्रदान की जाती है। m-RNA कोशाद्रव्य में एक सूत्र/टेम्प्लेट या संरचना बनाता है तथा t-RNA से मिलकर प्रोटीन संश्लेषण करता है। जिसमें कि अमीनों एसिड्स एक-दूसरे से मिलकर पेप्टाइड्स बनाते हैं और इस प्रकार अमीनों एसिड्स की शृंखला बन जाती है तथा अलग होकर प्रोटीन्स को संश्लेषण/निर्माण करती है (चित्र-2)।
![Fig-2](https://c1.staticflickr.com/6/5547/30648018296_5fe3c91b6b.jpg)
कवक दुनिया में अति आकस्मिक पौध रोग के अनौपचारिक कर्मक हैं। ये मेजबान पौधों की अक्षुण्ण सतहों के भंग करने में सक्षम होने के नाते सूक्ष्मजीव (माइक्रोबियल) रोगजनकों में अद्वितीय हैं। बहुत सारे पौध रोगजनक कवकों जैसे कि बोटेट्रिस सेनेरिया, स्क्लेरोटिना-एस्क्लेरोशियम, फ्येजेरियम ग्रैमिनैरियम, फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरियम, मैग्नापोथी ओराइजी, स्टेग्नोस्पोरा नोजेरम आदि का पूर्ण जीनोम अनुक्रमण होने के साथ-साथ उनके प्रोटियोम में वैश्विक परिवर्तन की निगरानी प्रोटियोमिक्स के अंतर्गत की जा रही है। यह कवक विकास, कवकयुक्त पौध व्यवहार और पौध रोग जनन एक आण्विक आधार है, जिसके लिये प्रोटियोमिक्स अध्ययन का एक सटीक तरीका है।
वर्तमान समय में पादप तथा उन पर रोग पैदा करने वाले कारक के बीच के संबंध तथा उनमें भाग लेने वाली प्रोटीन्स का अध्ययन एक नवीन तकनीकी -2- Dimentional Gel Electrophoresis (2-DE) द्वारा संभव हुआ है। इस तकनीकी द्वारा अलग की गई प्रोटीन्स का विच्छेदन मास-स्पेक्ट्रोफोटोमेट्रिक (Mass-Spectrophotometric) तकनीकी (MALDI-TOF/TOF) की सहायता से किया जाता है। इस तकनीकी द्वारा प्रोटीन्स को सबसे पहले उनके आवेशानुसार (According to Charge) विच्छेदित किया जाता है, जिसे आइसोइलेक्ट्रिक फोकसिंग कहते हैं। तत्पश्चात प्रोटीन्स को उनके भार के आधार पर दूसरी दिशा में PAGE (Sodium dodacyl sulfate palyacryl amide get electrophoresis) द्वारा विच्छेदित करते हैं (चित्र-3)।
![Fig-3](https://c5.staticflickr.com/6/5492/30567696612_24584ddb2d.jpg)
उदाहरणार्थ, अभी तक के सर्वेक्षण के अनुसार धान में अंगमारी नामक रोग पैदा करने वाले कारक मैग्नापोर्थी ओराइजी के आपसी अन्तर्क्रिया (Interection) के दौरान धान की सम्बन्धित कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार की प्रोटीन्स (प्रतिरक्षा, एलिसिटर सम्बन्धित) की पहचान 2-डाइमेन्सनल जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस तकनीकी द्वारा सम्भव हो सकी। इसी क्रम गेहूँ में रोग पैदा करने वाले कारक फ्यूजेरियम ग्रेमिनेरियम के आपसी अन्तर्क्रिया (Interection) के दौरान विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स 2-डाइमेन्सनल जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस तकनीकी द्वारा सम्भव हो सका। कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण फसलों जैसे कि- मक्का, टमाटर, मटर आदि में रोग पैदा करने वाले कारकों के आपसी सम्बन्ध के दौरान बनने वाले प्रोटीन्स की पहचान की जा सकी है। इस तकनीकी का सर्वप्रथम प्रयोग खमीर प्रोटियोम के आकलन के लिये किया गया। पादप-कवक सम्बन्धी प्रोटीन्स के विन्यास व विश्लेषण का संक्षिप्त सार इस चित्र द्वारा समझाया जा सकता है (चित्र-4)।
![Fig-4](https://c7.staticflickr.com/6/5344/30384453950_f24d4728de.jpg)
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1. बेसल (Basel) और
2. प्रतिरोधक जीन मध्यस्थ (R-gene Mediated Immunity)
बेसल प्रतिरक्षा (Basel Immunity) संग्रहित सूक्ष्म अणुओं की पहचान पर होती है, जैसे कि पैथोजन असोसिएटेड मालीकुलर पैटर्न (PAMPs) या माइक्रोवियल-एसोसिएटेड मालीकुलर पैटर्न (PAMPs)। जबकि प्रतिरोधक जीन मध्यस्थ- जीन फॉर जीन (R-gene Mediated Immunity, Gene for Gene) परिकल्पना पर आधारित होती है। इस प्रकार R-gene की पौधों में उपस्थिति या अनुपस्थिति उनके प्रतिरोधकता या अप्रतिरोधकता को दर्शाता है (चित्र-6)।
![Fig-6](https://c3.staticflickr.com/6/5481/30384453570_baf2084040.jpg)
आण्विक संयंत्र को पादप-कवक सम्बन्ध (Interaction) की सुव्यवस्थित ढंग से समझने के लिये प्रोटियोमिक्स एक बहुत ही सुदृढ़ तकनीकी है। प्रोटियोमिक्स की सहायता से पौधों में प्रतिरक्षा सम्बन्धी संकेतकों या पाथवें का पता उनके जैव रासायनिक अणुओं के उत्पाद का विश्लेषण किया जा सकता है। प्रोटियोमिक्स की सहायता से कवक पादप सम्बन्ध के समय प्रतिरक्षात्मक अणुओं का पता लगाने के लिये किया जा सकता है।
परिणामी जैव रासायनिक परिवर्तन बहुत ही रुचिकर है, क्योंकि ये रोगाणु सुधार प्रतिरोधक या प्रतिरक्षा के समय मेजबान/वाहक पौधों की रक्षा सम्बन्धी पथ की विशिष्ट स्विच बिन्दु में जानकारी दे सकता है।
इस प्रकार से इस तकनीकी द्वारा बायोट्रॉफिक, नैक्रोट्रफिक और हेमीबायोट्रॉफिक पौध रोगजनक कवकों के प्रतिरोध में होने वाली जटिल से जटिलतम क्रिया तंत्र को समझने में सहायक है, यह प्रोटियोमिक्स कवक तथा मेजबान पौधों में होने वाले सम्बन्ध के समय आण्विक प्रतिक्रियाओं को समझने के लिये सहायक हो सकता है।
पौध रोग जनक कवक के लिये उत्तरदायी मेजबान प्रोटीन्स(Host Proteins Responsive to Fungal Phytopathogens)
प्रोटियोम में लगातार हो रहे अनुसंधान के परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों ने मेजबान पौधों तथा उनमें रोग पैदा करने वाले कारकों यानी पौध रोगजनकों के बीच होने वाले सम्बन्धों के दौरान पौधों में बदलाव होने वाले जटिल प्रोटीन्स तथा चयापचयी उत्पादों की क्रमबद्ध जानकारी पाने/लेने में सफलता हासिल की है। धान एक महत्त्वपूर्ण फसल होने के कारण इसमें नुकसान पहुँचाने वाले पौध रोगजनक कवक मैग्नापोर्थी ओराइजी (M. oryzae) का मेजबान पौध (धान) के बीच होने वाले सम्बन्ध के दौरान आण्विक-आनुवंशिकी का विस्तारपूर्वक अध्ययन हुआ है।
मेजबान पौध (Host plant) में कवक की प्रारम्भिक अवस्था में पहचान के दौरान प्रतिरोधी तंत्र सक्रिय हो जाते हैं, जैसेकि- रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसीज (ROS) का निकलना, सेल्युलोज का जमाव, कवक विष का एकत्रित होना आदि।
धान के अंगमारी रोग (Rice blast) कारक (कवक) का रोग फैलाने के दौरान प्रोटीन्स जैसे PR-2 (B. 1-3 ग्लूकानेज), PR-5 (थायूमेटिन जैसी प्रोटीन TLP), PR-9 (परॉक्सीडेज-POX 22.3) और PR-10 (प्रोबेन्जोल व्युत्पन्न ‘Inducible’ प्रोटीन), अभिग्राहक (Receptor) जैसे कि- प्रोटीन काइनेज, आइसोफ्लैवोन रिडक्टैज जैसे प्रोटीन्स और नमक (Salt) प्रेरित प्रोटीन्स इत्यादि। आइसोफ्लेवोन रिडक्टेज, दलहनी फसलों में आइसोफ्लेवोन फाइटोएलेग्जिन का उत्पादन कवकों के आक्रमण तथा पर्यावरणीय या विपरीत परिस्थितियों के दौरान एकत्रित हो जाते हैं। आर्द्रता बाहुल्य प्रक्षेत्र में उगाई जाने वाली गेहूँ तथा जौ में एक बहुत ही खतरनाक रोग फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट के नाम से जाना जाता है, जोकि फ्यूजेरियम-जर्मेनेरियम नामक कवक से होता है।
प्रोटियोमिक्स के बहुत ही प्रारम्भिक तरकीब; 2-DE/LC-MS/MS का प्रयोग करते हुए फ्यूजेरियम संक्रमित गेहूँ के टूड़े की बहुतायात प्रोटीन्स एन्टीऑक्सीडेन्ट कार्य जैसे कि सुपर ऑक्साइड डिसम्यूटेज (SOD) डीहाइड्रोएस्कार्बेट रिडक्टेज तथा ग्लूटाथियान-एसट्रान्सफरेज से सम्बन्धित थी जोकि ऊतक के अन्दर H2O2 के ऑक्सीडेटिव विस्फोट से सम्बन्धित थी। एक-दूसरे अध्ययन में फ्यूजेरियम जर्मेनेरियम संक्रमित गेहूँ के टूड़े की 41 प्रोटीन में से 33 प्रोटीन्स उसके सुरक्षात्मक तंत्र से सम्बन्धित थी।
बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाले अनुक्रमण प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ ही कवक जीनोम अनुक्रमण की संख्या बहुत ही तेजी से बढ़ रही है। पूर्ण जीनोम आंकड़ों की उपलब्धता और उच्च गुणवत्ता वाली प्रोटीन पहचानने की तरकीब जैसे 2-DE MALDI –TOF Deewj ESI-MS/MS का आगाज पौध-कवक अभिक्रिया (Plant Pathogen Interaction) के दौरान प्रोटियोम में परिवर्तन के अध्ययन के लिये आग में घी का कार्य कर रहे हैं। इन तकनीकों के उपयोग से वैज्ञानिक जैव रासायनिक तंत्र, अन्तर्निहित पौध रक्षा प्रतिक्रिया, बीमारी की शुरुआत में कवक प्रभावोत्पादक की भूमिका, बीजाणु अंकुरण, हिस्टोरियल गठन में शामिल संरचनात्मक व क्रियात्मक/विनियामक घटकों को समझने व पौध रोग की रोकथाम के लिये कवकनाशी दवा बनाने में सक्षम हो सकेंगे। हालाँकि शोधकर्ताओं या वैज्ञानिकों के सामने बहुत सारी चुनौतियाँ हैं, जैसा कि- एकल प्रोटीन का पृथक्करण व उनका पूर्ण विश्लेषण। इन सब कमियों को दूर करने के लिये लगातार प्रयास हो रहे हैं।
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