राजस्थान

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गोपालपुरा - न बंधुआ बसे, न पेड़ बचे
Posted on 15 Jan, 2017 12:29 PM
अभी तालाब बने ही थे कि संस्था के नाम सिंचाई विभाग का एक नोटिस
saaf mathe ka samaj
पुस्तक परिचय - जल और समाज
Posted on 10 Jan, 2017 01:01 PM
यह पुस्तक उस तालाब व्यवस्था को प्रस्तुत करती है जिसने बीकानेर के इतिहास को सींचा और उसके भविष्य की आशा भी बँधाती है।
यहाँ गाँवों का भी मास्टर प्लान बन रहा है
Posted on 13 Dec, 2016 04:55 PM

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में नगरीय विकास मंत्री रहे प्रताप सिंह सिंघवी गाँवों के मास्टर प्ल

सतलुज-यमुना का चुनावी लिंक
Posted on 10 Dec, 2016 11:39 AM

पंजाब और राजस्थान हमेशा से इसे बनने नहीं देना चाहते थे और यदि पंजाब चुनाव में सत्तारूढ़ द

Ganga
मानसून मेहरबान, आपदा प्रबंधन की तैयारी नहीं
Posted on 23 Jul, 2016 04:31 PM

सिंचाई विभाग के अधिकारी बाढ़ से निपटने की बात तो कहते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि विभाग के

सूखे जलाशयों में 15 दिनों में पानी ले आया रिटायर इंजीनियर
Posted on 18 Jul, 2016 10:11 AM

कुएँ, बावड़ी, पहाड़ी जलाशय, तालाब आदि पर हमारी निर्भरता थी। इनका ध्यान नहीं रखने से इनमें

इन्दिरा गाँधी नहर और राजस्थान
Posted on 05 Jul, 2016 04:37 PM
विश्व की सबसे बड़ी 649 किलोमीटर लम्बी नहर ने राजस्थान के मरु प्रदेश में जिस हरित क्रांति को जन्म दिया, जिस औद्योगिक क्रांति से विकास किया और जिस समाजिक क्रांति से जन-चेतना को जाग्रत किया, उसका श्रेय इन्दिरा गाँधी नहर को है। यह वही विशाल नहर है जो मरु गंगा के नाम से विख्यात है और जिसके कारण पर्यावरण में ऐसा सुधार हुआ है कि बालू के टीलों वाले प्रदेश के उस क्षेत्र का भूगोल ही बदल गया है। भूगोल
नदी की धारा सा अविरल समाज (River connects society)
Posted on 14 Jun, 2016 04:59 PM
सूख चुकी नान्दूवाली नदी का फिर से बहना अकाल ग्रस्त भारत के लिये एक सुखद सन्देश है।

यह कल्पना करना मुश्किल है कि यह नदी और जंगल कभी सूख चले थे। पेड़ों के साथ-साथ समाज और परम्पराओं का भी कटाव होने लगा था। कुओं में कटीली झाड़ियाँ उग आईं और बरसात से जो थोड़ी सी फसल होती उसमें गुजारा करना मुश्किल था। गाय-भैंस बेचकर कई परिवार बकरियाँ रखने लगे क्योंकि चारे को खरीदने और गाँव तक लाने में ही काफी पैसे खर्च हो जाते। जवान लोगों का रोजी-रोटी के लिये पलायन जरूरी हो गया। निम्न जाति के परिवारों की हालत बदतर थी।

ढाक के पेड़ों पर नई लाल पत्तियाँ आ रही हैं पर कदम, ढोंक और खेजड़ी की शाखाएँ लदी हुई हैं। एक दूसरे में मिलकर यह हमें कठोर धूप से बचा रहे हैं। जिस कच्चे रास्ते पर हम बढ़ रहे हैं वह धीरे-धीरे सख्त पत्थरों को पीछे छोड़ मुलायम हो चला है और कुछ ही दूरी पर नान्दूवाली नदी में विलीन हो जाता है।

राजस्थान में अलवर जिले के राजगढ़ इलाके की यह मुख्य धारा कई गाँव के कुओं और खलिहानों को जीवन देती चलती है। इनमें न सिर्फ कई मन अनाज, बल्कि सब्जियों की बाड़ी और दुग्ध उत्पादन भी शामिल है।

यह कल्पना करना मुश्किल है कि यह नदी और जंगल कभी सूख चले थे। पेड़ों के साथ-साथ समाज और परम्पराओं का भी कटाव होने लगा था। कुओं में कटीली झाड़ियाँ उग आईं और बरसात से जो थोड़ी सी फसल होती उसमें गुजारा करना मुश्किल था।
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