यहाँ गाँवों का भी मास्टर प्लान बन रहा है


पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में नगरीय विकास मंत्री रहे प्रताप सिंह सिंघवी गाँवों के मास्टर प्लान को सैद्धांतिक रूप से तो सही मानते हैं लेकिन इसके अमल पर उन्हें संदेह है। वे कहते हैं कि ‘सिर्फ मास्टर प्लान का दस्तावेज तैयार करने से कुछ नहीं होता, जमीनी स्तर पर इसका क्रियान्वयन करना जरूरी है। गाँवों का मास्टर प्लान के अनुसार विकास करना आसान काम नहीं है। वहाँ अतिक्रमण हटाने व जमीन का अधिग्रहण करने में कई व्यावहारिक दिक्कतें आती हैं। पर्याप्त बजट नहीं मिलना भी एक समस्या है। यदि इन समस्याओं को सुलझा लिया जाए तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।’

भारत जैसे देश में जहाँ शहरों का विकास भी नियोजित तरीके से नहीं हो पाता, वहाँ यदि गाँवों का मास्टर प्लान तैयार कर लिया जाए तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह कारनामा हुआ है राजस्थान में। राज्य सरकार ने गाँवों का मास्टर प्लान तैयार कर पूरे देश के सामने एक मिसाल पेश की है। राज्य का नगरीय विकास विभाग 10 हजार तक की आबादी वाले सभी 100 गाँवों का मास्टर प्लान तैयार कर चुका है। विभाग अब 5 हजार तक की आबादी वाले गाँवों का मास्टर प्लान बनाने की तैयारी कर रहा है। राज्य में ऐसे गाँवों की संख्या 300 है। सभी गाँवों के मास्टर प्लान तैयार होने के बाद इनका सुनियोजित विकास संभव हो सकेगा।

इस अनूठे काम को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाने वाले नगरीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव जी. एस. संधू बताते हैं कि ‘मास्टर प्लान बनाने से गाँवों का भी सुनियोजित विकास हो सकेगा और अतिक्रमणों पर रोक भी लगेगी।

हमने 10 हजार तक की आबादी के सभी गाँवों का मास्टर प्लान तैयार कर लिया है। 5 हजार तक की आबादी वाले गाँवों के मास्टर प्लान बनाने के लिये ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है। इस काम में शहरी निकायों के टाउन प्लानर और कंसलटेंट सहयोग करेंगे। यह काम जल्दी ही शुरू कर दिया जाएगा। ‘केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय भी राजस्थान सरकार के इस काम से खासा उत्साहित हैं। मंत्री गिरिजा व्यास कहती हैं कि ‘ऐसे समय में जब कई राज्यों में तो शहरों का भी मास्टर प्लान नहीं है, राजस्थान में गाँवों का मास्टर प्लान तैयार होना सुखद आश्चर्य है। हम कोशिश करेंगे कि सभी राज्य ऐसा करें।’

राज्य के नगरीय विकास विभाग द्वारा तैयार ये मास्टर प्लान ठीक वैसे ही हैं जैसे शहरों के होते हैं हालाँकि इन्हें तैयार करने में विशेषज्ञों की सलाह से ज्यादा ग्रामीणों का योगदान रहा है। पहले ग्राम पंचायत के सभी वार्डों में इस पर चर्चा की गई और फिर ग्रामसभा में। इन बैठकों में गाँव की वर्तमान स्थिति व भविष्य की योजना तैयार करने के लिये वांछित सुविधाओं पर बातचीत की गई। जिन गाँवों में आबादी विस्तार के लिये भूमि उपलब्ध नहीं थी, वहाँ गाँव के समीप उपलब्ध सिवायचक, चरागाह भूमि का किस्म परिवर्तन किया गया। जहाँ यह संभव नहीं था, वहाँ प्रस्तावित भूमि की योजना तैयार की गई। इस मसौदे पर ग्रामसभा की बैठक में विस्तार से चर्चा करके इसे ग्रामसभा द्वारा अनुमोदित किया गया। अनुमोदित मसौदे का एक प्रारूप ग्राम पंचायत में और एक गाँव के प्रमुख स्थान पर प्रदर्शित किया गया। लोगों को आपत्ति दर्ज करवाने के लिये एक महीने का समय दिया गया। आपत्ति आने की स्थिति में ग्रामसभा में इनका निबटारा करके मास्टर प्लान को अंतिम रूप दिया गया।

तैयार किए गए मास्टर प्लान में गाँव में अगले 20 वर्ष के संभावित विकास के लिये आवश्यक सुविधाओं व विस्तार के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक प्रावधान कर जनसंख्या के अनुपात में कौन सी सुविधाएँ कब-कब करानी अपेक्षित होंगी, इसका पूरा विवरण है। नगरीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव बताते हैं कि ‘मास्टर प्लान में गाँव में उपलब्ध कृषि, खनिज, वन संसाधनों के गाँव के विकास पर पड़ने वाले प्रभाव को भी ध्यान में रखा गया है। गाँव में स्थित तालाब, बावड़ी, पहाड़ आदि को सुरक्षित रखने व विकसित करने पर भी ध्यान रखा गया है। इसी प्रकार जो गाँव मुख्य राष्ट्रीय मार्ग, राज्य मार्ग, जिला स्तरीय एवं अन्य महत्त्वपूर्ण सड़कों के समीप है, वहाँ कोई विकास कार्य प्रस्तावित किए जाएँ तो नियमानुसार सड़कों के केंद्र बिंदु से दोनों ओर आवश्यक चौड़ाई की जगह छोड़ना जरूरी होगा।’

राज्य के ग्रामीण पंचायतीराज मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय गाँवों के मास्टर प्लान बनने से खासे उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि इससे गाँवों की तस्वीर बदल जाएगी। वे बताते हैं कि ‘जनसंख्या बढ़ने से गाँवों का तेजी से विस्तार हो रहा है लेकिन अनियोजित है। गाँव में न तो रास्ता ठीक है और न ही सार्वजनिक सुविधाओं के लिये जगह। गाँवों के मास्टर प्लान में इन सब चीजों का ध्यान रखा गया है। इसकी मदद से गाँवों में स्कूल, अस्पताल, खेल का मैदान, आंगनवाड़ी केंद्र, श्मशान, कब्रिस्तान, सामुदायिक केंद्र, बस स्टैंड, पानी की टंकी व बिजली घर आदि का निर्माण संभव होगा। मास्टर प्लान में पर्यावरण को सुरक्षित रखने का भी ध्यान रखा जाएगा। जिन गाँवों में वर्तमान में कोई पानी का तालाब, पोखर आदि नहीं है, वहाँ वर्षा के पानी को एकत्र करने के लिये एनिकट, तालाब, पोखर आदि का प्रावधान किया गया है।’

मास्टर प्लान केवल गाँवों के विकास के काम नहीं आएँगे, पंचायत समिति स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन में भी इनकी अहम भूमिका होगी। इसी उद्देश्य से ग्रामसभा से अनुमोदित नक्शे को पंचायत समिति स्तर पर परीक्षण कराकर प्लान तैयार कराया जाएगा। इसे पंचायत समिति स्तरीय साधारण सभा से अनुमोदित करवाया जाएगा। श्री संधू बताते हैं कि ‘मास्टर प्लान का उपयोग कई जगह हो सकता है। हमारा मुख्य उद्देश्य राज्य में सड़कों, जल निकायों और स्कूलों सहित सार्वजनिक उद्देश्य के लिये भूमि को आरक्षित करना है ताकि विभिन्न जनोपयोगी योजनाओं को ग्राम पंचायतों द्वारा आसानी के साथ क्रियान्वित किया जा सके।’

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में नगरीय विकास मंत्री रहे प्रताप सिंह सिंघवी गाँवों के मास्टर प्लान को सैद्धांतिक रूप से तो सही मानते हैं लेकिन इसके अमल पर उन्हें संदेह है। वे कहते हैं कि ‘सिर्फ मास्टर प्लान का दस्तावेज तैयार करने से कुछ नहीं होता, जमीनी स्तर पर इसका क्रियान्वयन करना जरूरी है। गाँवों का मास्टर प्लान के अनुसार विकास करना आसान काम नहीं है। वहाँ अतिक्रमण हटाने व जमीन का अधिग्रहण करने में कई व्यावहारिक दिक्कतें आती हैं। पर्याप्त बजट नहीं मिलना भी एक समस्या है। यदि इन समस्याओं को सुलझा लिया जाए तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।’

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