राजस्थान

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जल अमृत ही नहीं, औषधि भी (Water not only nectar but also medicine)
Posted on 05 Aug, 2017 11:08 AM
रेगिस्तान में प्राचीन परंपरात जल संग्रहण पद्धतियों की बेशुमार थाती उपलब्ध है। इन्हीं थातियों से जलते रेगिस्तान में ठंडक बरसती थी आज भी ये कारगर हैं। कभी कुएँ, बावड़ी, तालाब और जोहड़ आदि बनवाना पुण्य का कार्य माना जाता था। राजस्थान में सेठ-साहूकार चाहे मातृभूमि में रहें या ना रहें, कुएँ, तालाब और बावड़ियाँ बनवाना नहीं भूलते थे।
पर्यावरण का वरण कर रहा एक गाँव
Posted on 05 Jun, 2017 03:53 PM
अलवर से महज 30 किमी दूर पहाड़ियों के बीच बसा रोगड़ा गाँव। यहा
पाथर पानी और पक्का पगारा
Posted on 01 Jun, 2017 01:54 PM
अनुवाद - संजय तिवारी
जयपुर से करीब दो सौ किलोमीटर दूर करौली जिले का निवेरा गाँव। गाँव के ही किसान मूलचंद कंक्रीट के उस ढाँचे की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं “इस पगारा ने मेरा जीवन बदल दिया है, हमेशा के लिये। पंद्रह साल पहले यहाँ एक कच्चा पगारा होता था। लेकिन तब हम उतनी फसल नहीं ले पाते थे जितनी अब ले लेते हैं। अब हम पहले के मुकाबले दो तीन गुना ज्यादा फसल लेते हैं।” मूलचंद मुस्कुराते हुए यह बताना नहीं भूले कि अब तो जब तक अनाज घर में न आ जाए हमें समय नहीं मिलता।

मूलचंद ने फसलोंं की रखवाली के लिये मचान भी बना रखा है ताकि रात में जंगली जानवरों से अपनी फसलोंं की रक्षा कर सकें। मूलचंद का परिवार परम्परागत रूप से खेती नहीं करता था। वो चरवाहे थे और खेतों से उतना ही नाता था जितना पशुओं के चारे के लिये जरूरी होता था या फिर थोड़ी बहुत खेती कर लेते थे। उस समय वहाँ एक कच्चा पगारा होता था।
जलवायु परिवर्तन का असर बेअसर
Posted on 23 May, 2017 12:48 PM
अनुवाद - संजय तिवारी

बिफूर गाँव के नाथूराम के पास 1.8 हेक्टेयर जमीन है। अपनी इस जमीन से वे हर सीजन में करीब सवा लाख रूपये मूल्य की फसल पैदा कर लेते थे। लेकिन पानी की कमी ने धीरे-धीरे उनकी पैदावार कम कर दी और करीब आधी जमीन बेकार हो गयी। हालात इतने बदतर हो गये कि बहुत मेहनत से भी खेती करते तो बीस हजार रुपये से ज्यादा कीमत की फसल पैदा नहीं कर पाते थे। नाथूराम बताते हैं कि “जब खेती से गुजारा करना मुश्किल हो गया तब हमने मजदूरी करने के लिये दूसरे जिलों में जाना शुरू कर दिया।”

बिफूर राजस्थान के टोंक जिले में मालपुरा ब्लॉक में पड़ता है। बिफूर की यह दुर्दशा सब गाँव वाले देख रहे थे लेकिन इस दुर्दशा को कैसे ठीक किया जाए इसकी योजना किसी के पास नहीं थी। फिर एक संस्था की पहल ने गाँव की दशा बदल दी। वह हरियाली जो सूख गयी थी वह वापस लौट आयी। अब बिफूर के किसान मजदूरी करने के लिये दूसरे जिलों में नहीं जाते और न ही कर्ज लेकर खाद बीज खरीदते हैं। पानी के प्रबंधन ने उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया है और उनकी जिन्दगी में अच्छे दिन फिर से लौट आये हैं।

महानदी के तट पर बनी झील, किसानों के लिये वरदान
Posted on 20 May, 2017 12:01 PM
बिरकोनी के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, एसएस गौतम के अनुसार
नये कोटरा की नयी कोटरी
Posted on 02 May, 2017 10:33 AM
अनुवाद - संजय तिवारी
पहली जून की वह तपती दोपहरी थी। राजस्थान के सबसे गर्म जिलों में शामिल बाड़मेर में पारा 40 डिग्री के पार था। तिस पर रोजाना छह से आठ घंटे की बिजली कटौती। नये कोटरा में सब तपती गर्मी की मार झेल रहे थे लेकिन कुछ लोग ऐसे थे जिन्हें बाड़मेर में भी यह गर्मी परेशान नहीं कर रही थी। बाड़मेर के इस इलाके में मंगनियरों के घर दूसरे घरों के मुकाबले ज्यादा ठंडे थे। ऐसा नहीं था कि इन घरों में कूलर या पंखा लगा था। घरों की ठंडक के पीछे का राज घरों की डिजाइन में ही छिपा था। एक जैसे दिखने वाले इन 65 घरों को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया था कि वो गर्मी में ठंडे और सर्दी में अंदर से गर्म रहते हैं।
पानी सहेजने की कहानी
Posted on 18 Apr, 2017 12:37 PM

मनुष्य ने अपनी कठिनाइयों में संघर्ष के दम पर जो विकास किया, उसे हम परम्परा या पारम्परिक क

यज्ञ नहीं, यत्न से मिलेगा पानी
Posted on 18 Apr, 2017 12:32 PM

राजस्थान के जयपुर जिले के लापोड़िया गाँव ने भी 6 साल लगातार अकाल से लड़ते रहने के सिलसिले

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