सारांश:
पत्थर, प्राचीन काल से ही भवन निर्माण की मुख्य सामग्री रहा है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्टोन उद्योगों से विशाल मात्रा में स्टोन अपशिष्ट का उत्पादन बढ़ गया है जिसका सीधा प्रभाव हम पर्यावरण पर देख सकते है। इसका ही परिणाम है कि आज राजस्थान में स्टोन उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट से भूमि हानि के साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति में ह्रास, स्वच्छ जलीय स्रोतों का ह्रास तथा जलीय जीवों के अस्तित्व के लिये भी खतरा उत्पन्न होता जा रहा है। इसलिये इस अध्ययन में बालू को कोटा स्टोन अपशिष्ट के साथ प्रतिस्थापन करके भरावन सामग्री के रूप में प्रयोग किया गया तथा कोटा स्टोन के रसायानिक तथा भौतिक परीक्षणों का अध्ययन किया गया है। इसके लिये 43 ग्रेड के सीमेंट का प्रयोग किया गया तथा प्राप्त निष्कर्षों से प्रकट हुआ कि स्टोन अपशिष्ट सीमेंट जैसे गुणों के कारण इसका प्रयोग टाइलों के निर्माण में किया जा सकता है इसके लिये विभिन्न प्रकार के 0%, 25%, 50%, 75% तथा 100% प्रतिस्थापन वाले मिश्रणों को तैयार किया गया। परिणामों से ज्ञात हुआ कि प्राकृतिक बालू का कोटा स्टोन अपशिष्ट द्वारा 25% तथा प्रतिस्थापन टाइल बनाने के लिये सर्वोत्तम पाया गया।
Abstract
Stone is the main construction material from the ancient times. In recent years, large amount of slurry stone waste have been generated in stone production plants with significant environmental impacts. This waste causes serious environmental problems. This disposal of waste in agricultural land causes a reduction of water infiltration, soil fertility, plant growth etc. Therefore, the main objective of this study was to investigate the possibility of replacing stone waste in making flooring tiles as a filler material. For this purpose the stone powder was characterized by chemical and physical analysis. The result showed that this type of industrial by-product can be used in making tiles due to its similarity to cement properties. Mixtures were prepared by 0%, 25%, 50%, 75% and 100% replacement of fine aggregate substituted by Kota stone powder waste. Various mechanical properties such as compressive strength, flexural strength were evaluated. The obtained test results were indicated that the replacement of natural sand by Kota stone waste up to 25% of any formulation is favorable for making the tiles.
प्रस्तावना
पिछले कुछ वर्षों में, निर्माण कार्य क्षेत्र से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के कृषि योग्य भूमि में जमाव से विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से पर्यावरणीय संरक्षण के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है। जिसमें स्टोन अपशिष्ट भी एक है। अतः स्टोन अपशिष्ट को निर्माण कार्य क्षेत्र में प्रयोग किये जाने से इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है। जिस कारण यह विषय आज विश्व के वैज्ञानिकों के लिये एक उपयुक्त पर्यावरणीय संरक्षण के रूप में सामने आया है। पिछले कुछ दशकों से प्राकृतिक स्रोतों जैसे कच्चा माल तथा ऊर्जा स्रोतों का ह्रास हुआ है। अतः बिना पुनर्चक्रण, दीर्घकालिक भवन सामग्री का संचारण, आज सिविल अभिंयताओं के लिये पुनः उपयोगी भवन निर्माण सामग्री के रूप में प्रयोग में लाना एक चुनौती बन गया है।
मार्बल, ग्रेनाइट तथा कोटा पत्थर प्राचीन काल से ही भवनों की शोभा बढाने हेतु प्रयोग किये जाते रहे हैं। जिसके लिये इन पत्थरों को एक विशेष आकार देने के लिये इनको विभिन्न प्रक्रमों जैसे कटिंग शेपिंग तथा पॉलिशिंग आदि से गुजारा जाता है। इससे साथ-साथ अनेक अपशिष्ट पदार्थों। का निस्तारण भी होता हैं जिन्हें स्लरी व स्लज आदि नामों से जाना जाता है, जिससे संचालन का खर्च तथा लाभ में हानि हुई है। स्टोन उद्योगों से उत्पन्न होने वाले इस कटाई अपशिष्ट को अब अक्रिय अपशिष्ट के रूप में स्वीकार्य मान लिया गया है। अतः अनेक पर्यावरणीय तथा आर्थिक मानदण्डों को देखते हुए कोटा स्टोन पाउडर का पुनर्चक्रण निर्माणकारी उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण खोजों का आधार प्रदान करता है।
राजस्थान के कोटा जिले में कोटा स्टोन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें फर्शी टाइलों के निर्माण के लिये आवश्यक भू-यांत्रिक गुण पाये जाते हैं। निरंतर 50 सालों से कोटा पत्थर के उद्योगों से पत्थरों की खनन प्रक्रिया के दौरान अनेक अपशिष्टों का निष्कासन होता रहा है। जिसके कारण अनेक पर्यावरणीय समस्यायें जैसे पीने योग्य पानी का अभाव, दूषित जल से जीव-जंतुओं की संख्या में कमी तथा वायु प्रदूषण मुख्य है। यह देखा गया है कि कोटा स्टोन टाइलों का निर्माण, कोटा स्टोन पाउडर के पुनर्चक्रण के लिये प्रस्तावित विधि है। जिसके आधार पर कोटा स्टोन पाउडर को पर्यावरणीय समस्या से अलग करके मूल्यवर्धक पदार्थों के निर्माण में प्रयोग किया जा सकता है।
इन समस्याओं को मानस पटल पर रखते हुए सीएसआईआर-सी बी.आर.आई., रुड़की ने कोटा स्टोन अपशिष्ट के प्रयोग द्वारा टाइलों का निर्माण करने का बीड़ा उठाया। रासायनिक रूप से कोटा स्टोन सिलिका युक्त कैल्शियम कार्बोनेट शैल है जिसमें चूना, एलुमिना, रेत तथा कुछ मात्रा में आयरन के ऑक्साइड पाये जाते हैं।
सामग्री एवं विधि
कोटा स्टोन अपशिष्ट राजस्थान के कोटा जिले से इकट्ठा किया गया तथा उसका रासायनिक संगठन XRF विधि से ज्ञात किया गया (सारणी 1)।
अनिर्मित सामग्री: कोटा स्टोन टाइलों के निर्माण में स्टोन अपशिष्ट के प्रयोग का प्रभाव देखने के लिये, कोटा स्टोन अपशिष्ट की विशेषताओं का अध्ययन किया गया जिसके अंतर्गत छननी परीक्षण, सिलिका फैरस ऑक्साइड, एल्यूमीनियम त्रिऑक्साइड, टाइटेनियम ऑक्साइड, कैल्शियम ऑक्साइड, पोटेशियम ऑक्साइड तथा मैग्नीशियम ऑक्साइड आदि की जाँच की गई जिसके लिये XRF विधि का प्रयोग किया गया।
सारणी 1- कोटा स्टोन अपशिष्ट का XRF द्वारा रासायनिक संगठन | ||
क्रंम सं. | रासायनिक अवयव | प्रतिशत मात्रा |
1. | कैल्शियम ऑक्साइड | 66.32 |
2. | मैग्नीशियम ऑक्साइड | 0.87 |
3. | सोडियम ऑक्साइड | 1-2 |
4. | पोटेशियम ऑक्साइड | 0.20-0.35 |
5. | एल्युमिनियम ऑक्साइड | 3.26 |
6. | फैरस ऑक्साइड | 2.72 |
7. | टाइटेनियम ऑक्साइड | 2.09 |
8. | सिलिका | 22.69 |
इसके साथ बालू तथा 43 ग्रेड सीमेंट का प्रयोग कर विभिन्न मिश्रण तैयार किये गये।
बालूः बालू प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला पदार्थ है। जिसमें अनेक लवणीय पदार्थ उपस्थित होते हैं। जिसका मुख्य अवयव सिलिका क्वार्टज के रूप में पाया जाता है। 150 - 4.75 mm के कणों को सूक्ष्म समूह कहा जाता है। नदी से प्राप्त बालू को इसके अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है।
सीमेंटः इसके लिये IS-1237 के अनुसार 43 ग्रेड के पोर्टलैंड सीमेंट का प्रयोग किया गया है।
फर्शी टाइलों की तैयारी: कोटा स्टोन पाउडर का छन्नी परीक्षण करने पर पाया गया कि सभी कण 600 माइक्रॉन आकार के हैं। जिन्हें महीन वर्गीकरण के अंतर्गत रखा गया तथा कोटा स्टोन टाइलों के लिये उपयुक्त पाया गया।
कोटा स्टोन पाउडर को विभिन्न अनुपातों में आदर्श मिश्रण बनाने के लिये प्रयोग किया गया। प्रतिदर्शों को CS, CS25, CS50, CS75, CS100% के रूप में नामांकित किया गया जोकि मिश्रण में कोटा स्टोन पाउडर के अनुपात (100%, 75%, 50%, 25%, 0%) को दर्शाते हैं। सभी मिश्रण भारतीय मानक के अनुसार तैयार किये गये सबसे पहले सभी अवयवों को शुष्क अवस्था में एक समान अवयव प्राप्त करने के लिये मिश्रित किया गया, तत्पश्चात उचित मात्रा में जल मिलाकर एक समान अवस्था प्राप्त करने के लिये टाइलों को स्टील के सांचे में जिसका परिमाप लम्बाई में 300 mm, चौड़ाई में 300 mm तथा गहराई में 30 mm था, का निर्माण किया गया तदुपंरात इन मिश्रणों को सांचे में लेकर सर्वोत्कृष्ट घनत्व तथा संपीडक सामर्थ्य प्राप्त करने के लिये 120 kg/cm2 का संपीडक बल प्रयुक्त किया गया। उसके पश्चात टाइलों को सांचे से निकालकर 48 घटों के लिये नम अवस्था में रखा गया तथा फिर 28 दिनों के लिये नम अवस्था में संग्रहित कर दिया गया। उसके 28 दिनों के बाद प्रतिदर्शों। का भारतीय मानक के अनुसार विश्लेषण किया गया तथा प्रतिदर्शों। की IS-1237-1980 के अनुसार जल अवशोषण, संपीडक सामर्थ्य, आनमनी सामर्थ्य तथा सीधापन आदि गुण ज्ञात किये गये।
स्टोन अपशिष्ट के द्वारा बनाई गई टाइलों की स्टैंडर्ड में दी गई मान्यता के अनुसार तुलना की गई जिससे पाया गया कि ये टाइलें दफ्तर, भवनों, अस्पतालों तथा स्कूलों आदि जैसे भवनों के प्रयोग में लाई जा सकती है।
परिणाम एवं विवेचेना
IS-1237 के आधार पर बनाये गये टाइलों के प्रतिदर्शों के विभिन्न परीक्षण जैसे-जल अवशोषण, आनमनी सामर्थ्य, संपीडक सामर्थ्य तथा सीधापन ज्ञात किये गये। टाइलों की संपीडक सामर्थ्य ज्ञात करने के लिये 1000 kN सामर्थ्य की UTM मशीन का प्रयोग किया गया। जिन प्रतिदर्शों पर यह परीक्षण किया गया वे 50x50 परिमाप के थे।
इसके साथ ही आनमनी सामर्थ्य तीन बिंदु संकुचित परीक्षण से ज्ञात की गई। सभी प्रतिदर्शों की औसत आनमनी सामर्थ्य सारणी 2 में दर्शाई गई है तथा प्राप्त परिणामों की भारतीय मानक के साथ तुलना करने पर पाया गया कि सभी प्रतिदर्शों की आनमनी सामर्थ्य मानक में दी गई सामर्थ्य से अधिक है तथा आनमनी सामर्थ्य कोटा स्टोन पाउडर का अनुपात बढ़ाने पर घटती है।
घिसाई सामर्थ्य: इस उद्देश्य के लिये घिसाई परीक्षण मशीन का प्रयोग किया गया। इसके लिये टाइल प्रतिदर्शों। की घिसाई से पूर्व मोटाई ज्ञात कर लेते है तथा मशीन में घिसाई के पश्चात प्रतिदर्शों की मोटाई में आया अंतर नोट कर लेते हैं।
सारणी 2- कोटा स्टोन अपशिष्ट से निर्मित टाइलों के गुण | ||
गुण | मात्रा | सीमा IS-1237-1980 |
जल अवशोषण (24 घण्टे)% | 4.7 | अधिकतम 10 |
आनमनी सामर्थ्य (28 दिन) MPa | 8.9 | न्यूनतम 3.0 |
संपीडक सामर्थ्य (28 दिन) MPa | 40 | न्यूनतम 15 |
सीधापन% | 0.45 | अधिकतम 1.0 |
घिसाई सामर्थ्य (मिमी.) | 0.585 | अधिकतम 2.0 |
टाइलों की जल अवशोषण सामर्थ्य: जल अवशोषण ज्ञात करने के लिये टाइलों के प्रतिदर्शों का भार ज्ञात कर, जल में 24 घंटे डुबाकर रखा गया तथा कमरे के ताप पर पुनः भार लेकर जल अवशोषण प्रतिशतता ज्ञात की गई। सभी प्रतिदर्शों की जल अवशोषण सामर्थ्य भारतीय मानक में दी गई सीमा से कम पाई गई जो कि चित्र में दर्शायी गई है। कोटा स्टोन पाउडर सूक्ष्मता के कारण यह जल का अधिक अवशोषण करता है तथा कोटा स्टोन पाउडर का अुनपात बढ़ाने पर जल अवशोषण भी बढता है।
निष्कर्ष
फर्शी टाइलों के निर्माण में, कोटा स्टोन का भरावन सामग्री के रूप में प्रयोग कर एक सराहनीय कार्य किया गया, जिसके निष्कर्षों से पाया गया कि कोटा स्टोन अपशिष्ट बालू के साथ प्रतिस्थापन करके प्रयोग किया जा सकता है। इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों के आधार पर पाया गया है कि कोटा स्टोन पाउडर का प्रयोग (1) पर्यावरण संरक्षण में सहयोग करने हेतु (2) अनेक प्रकार की शहरी आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं के निवारण में ; (3) स्टोन अपशिष्ट से संबंधित पदार्थों के पुनः प्रयोग में लाभदायक है।
आभार
लेखक प्रो. एस. के. भट्टाचार्य निदेशक सीएसआईआर-सी.बी.आर.आई, रुड़की के इस कार्य को प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करने के लिये तथा विज्ञान एवं तकनीकी विभाग (डी.एस.टी.) नई दिल्ली के सहायतार्थ अनुदान राशि प्रदान करने के लिये आभारी हैं।
संदर्भ
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सम्पर्क
रजनी लखानी एवं प्रियंका तोमर, Rajni Lakhani & Priyanka Tomar
सामग्री विभाग, Organic Building Materials Division, CSIR- Central Building Research Institute, Roorkee 247667 (Uttarakhand), कार्बनिक भवन सीएसआईआर-केन्द्रीय भवन अनुंसधान संस्थान, रुड़की 247667 (उत्तराखण्ड)
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