झाबुआ की तस्वीर बदल रही है

हाथिपावा पहाड़ी जो झाबुआ की तस्वीर बदल रही
हाथिपावा पहाड़ी जो झाबुआ की तस्वीर बदल रही

जल पांच तत्वों में से एक तत्व, जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जहां भी पानी हो, वहां जीवन अपने आप ही पल्लवित हो उठता है। वास्तव में यही हमारी भारत भूमि की परंपरा रही है। हमें इसलिए स्थान विशेष में जल संरक्षण हेतु तमाम पद्धतियां, प्रक्रियाएं और परिणाम स्वरूप जल-संरचनाएं मिलती हैं। आज भी ऐसे कुछ स्थान, कुछ समाज ऐसे बचे हैं, जिन्होंने जल के प्रति भारत भूमि की भावना को संजोए रखा है और इस भावना के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी वे कर रहे हैं। ऐसा ही एक स्थान है मध्य प्रदेश का जनजातीय जिला झाबुआ। यहां भील, भिलाला और पटेलिया जनजाति समाज के बनवासी न केवल झाबुआ में जलसंकट को दूर करने का जतन कर रहे हैं, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों के लिए प्रेरणा और अनुसंधान का विषय भी बन रहे हैं ।

झाबुआ क्षेत्र के वनवासियों की एक ऐतिहासिक परंपरा है - हलमा। हलमा ऐसी परंपरा है जिसमें यदि कोई व्यक्ति अपनी पूरी सामर्थ्य लगाने के बाद भी किसी समस्या से उबर नहीं पाता, तब वह हलमा बुलाता है और गांव-पड़ोस के लोग परमार्थ के भाव से आकर उसकी समस्या से उसे उबार देते हैं।

पानी की परेशानी शुरू हुई तो झाबुआ के आदिवासियों ने हलमा बुलाया और जल-संरक्षण के लिए एक बड़ी जनशक्ति खड़ी हो गई। 4500 से ज्यादा जल संरचनाओं पर काम हुआ। 75 हजार से ज्यादा पेड़ लगे और इलाके की तस्वीर बदल रही है।

सदियों से झाबुआ क्षेत्र में यह हलमा परंपरा चली आ रही है,  हलमा को अलीराजपुर में ‘ढासिया’ या ‘लाह’ कहते हैं। झाबुआ जिले में इसे हलमा ही कहते हैं। हलमा, ढासिया, लाह का भाव एक ही है ‘परमार्थ’। हलमा के माध्यम से आसपास के गांवों के लोग मिलकर जल संरक्षण के लिए तालाब निर्माण, कुआं खोदना, पहाड़ियों की ढलान पर गड्ढे करना इत्यादि करते आ रहे हैं। 

नई सदी में प्रवेश करते ही दुनिया, जलवायु परिवर्तन के प्रलयंकारी परिणामों से रूबरू हुई। जलसंकट एक प्रत्यक्ष वैश्विक समस्या बनकर उभरा। झाबुआ भी इससे अछूता नहीं रहा। झाबुआ के ढालू जमीन के कारण बारिश का पानी कम ठहरता है और अंधाधुंध निर्वनीकरण ने जलसंकट को विकराल रूप दे दिया है।

ऐसे में झाबुआ के वनवासियों ने हलमा को ही इस समस्या से जूझने का साधन बनाया। सन् 2005 में गोपालपुरा गांव में 16 गांव के लोगों ने मिलकर एक तालाब का निर्माण किया। इस सफलता से लोगों का ध्यान आया कि हलमा से पूरे झाबुआ की तस्वीर बदली जा सकती है। इससे उत्साहित और प्रभावित होकर जन-जागरण और हलमा के संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए झाबुआ की हाथीपावा पहाड़ी पर हलमा का आयोजन शुरू हुआ।

शिवगंगा संस्था के सहयोग से 2009 में शुरू हुई, इस जनसभा में 1000 लोग आए, और अपने गांव में हलमा करने का संकल्प लेकर अपने गांव वापस गए। इसके बाद शुरू हुआ एक अभियान झाबुआ के तस्वीर बदलने का। सन् 2009 से 2018 के बीच हाथीपावा पहाड़ी पर 1 लाख 11 हजार कंटूर-ट्रेंचेज का निर्माण किया गया। जो संख्या 2009 में 1000 की थी वह 2018 में 12000 से ऊपर पहुंच गई और न केवल झाबुआ के गांव में बल्कि देश के विभिन्न शहरों में अनेकानेक गणमान्य जन एवं आईआईटी एवं आईआईएम जैसे उत्कृष्ट संस्थानों के विद्यार्थियों ने हलमा में भागीदार बनकर हलमा की भावना को प्रोत्साहित किया।

झाबुआ में हलमा की पानी बचाने की परंपरा से ही आज 50 से भी ज्यादा छोटे-बड़े तालाबों का निर्माण किया जा चुका है। कुएं, हैंडपंप रिचार्जिंग, चेक डैम रिपेयरिंग आदि लेकर झाबुआ में 4500 से ज्यादा जल संरचनाओं पर काम हुआ है। जल संवर्धन का एक अभिन्न भाग है वन संवर्धन। इसके लिए भी हलमा के ही माध्यम से अलग-अलग मातावनों में 75000 से भी ज्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं। आज के युग में हम जिन्हें अशिक्षित और अक्षम मानते हैं, वहीं वनवासी समाज की परिस्थिति की गंभीरता को समझ कर जलसंवर्धन के लिए जुट गए हैं। इसका श्रेय कहीं न कहीं उनके पूर्वजों द्वारा बनाई गई ऐतिहासिक परंपरा और उसमें निहित परमार्थ की भावना को जाता है। इस बात से यह भी ध्यान में आता है कि न केवल पानी बचाने बल्कि पानी बचाने की परंपराओं को भी बचाना आवश्यक है। 

 

महेश शर्मा ने अपना पूरा जीवन झाबुआ के आदिवासियों के लिए समर्पित कर रखा है। उनका संगठन शिवगंगा अभियान मध्यप्रदेश के भील जनजाति बहुल जिला झाबुआ में भीलों का स्वाभिमान जागृत करने और उनकी आस्था और परंपरा से जोड़कर आगे बढ़ने का रास्ता दिखा रहा है।

शिवगंगा अभियान में भागीदारी करने के लिए आप संपर्क कर सकते हैं  - 
Shivganga Samagra Gramvikas Parishad, Jhabua
shivganga gurukul, dharampuri, 
Jhabua, India
ईमेल - shivgangajhabua@gmail.com
मोबाइल नंबर - 095882 96068, 9425322150, 093404 71574
फोन न. - 0123456789

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