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झाबुआ जिला
बदलाव की शुरुआत
Posted on 18 Nov, 2017 03:23 PMतकनीक का विकास दुनियाभर को नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ा रहा है और इसने काला सोना यानी कोयले के भविष्य को चुनौती दे दी है। भारत में अन्तिम कोयला बिजली संयंत्र 2050 तक बन्द हो सकता है। चंद्र भूषण का विश्लेषण
जल, जंगल जमीन के कामों को समर्पित व्यक्तित्व : महेश शर्मा
Posted on 20 May, 2017 03:33 PM
मध्यप्रदेश के झाबुआ में आदिवासी परंपरा हलमा को पुनर्जीवित कर हजारों जल संरचनाएं बनाने की कोशिश में जुटे महेश शर्मा से विशेष मुलाकात के बाद तैयार प्रोफाइल
तेरह सौ गाँवों को पानीदार बनाने की कोशिश
45-48 डिग्री तापमान में उस उजाड़ इलाके में लू के सनसनाते थपेड़ों और तेज धूप में पखेरू भी पेड़ों की छाँह में सुस्ताने लगते हैं, ऐसे में एक आदमी अपने जुनून की जिद में गाँव–गाँव सूखे तालाबों को गहरा करवाने, नए तालाब बनाने और जंगलों को सुरक्षित करने की फ़िक्र में घूम रहा हो तो इस जज्बे को सलाम करने की इच्छा होना स्वाभाविक ही है।
बात मध्य प्रदेश के झाबुआ आदिवासी इलाके में करीब तेरह सौ गाँवों को पानी और पर्यावरण संपन्न बनाने में जुटे सामाजिक कार्यकर्ता महेश शर्मा की है। वे यूँ तो बीते चालीस सालों से समाज को समृद्ध बनाने के लिये स्वस्थ पर्यावरण की पैरवी करते हुए काम करते रहे हैं लेकिन बीते दस सालों से उन्होंने अपना पूरा फोकस आदिवासी गाँवों पर ही कर दिया है। इस बीच उन्होंने आदिवासियों की अल्पज्ञात परम्परा हलमा को पुनर्जीवित किया तथा पंद्रह हजार से ज़्यादा आदिवासियों के साथ मिलकर खुद श्रमदान करते हुए झाबुआ शहर के पास वीरान हो चुकी हाथीपावा पहाड़ी पर पचास हजार से ज़्यादा कंटूर ट्रेंच (खंतियाँ) खोद कर साल दर साल इसे बढ़ाते हुए पहाड़ी को अब हरियाली का बाना ओढ़ा दिया है।
आदिवासी बनाएँगे हलमा से 11 तालाब
Posted on 21 Mar, 2017 06:28 PM
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के ग्रामीण इलाके में इस बार आदिवासी खुद सामूहिक श्रमदान की अपनी परम्परा हलमा के माध्यम से 11 तालाब बनाएँगे वहीं चार जंगलों को भी संरक्षित कर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। इससे पहले 5 मार्च को झाबुआ शहर के पास हाथीपावा पहाड़ी पर करीब 15 हजार आदिवासियों ने महज चार घंटे में 20 हजार से ज़्यादा जल संरचनाएँ निर्मित की।
करोड़ों का सरकारी खर्च, आदिवासी बच्चे प्यासे
Posted on 13 Jan, 2017 03:36 PMबच्चों को पीने के पानी के लिये पूरे साल भटकना पड़ता है। यहाँ सड़क के पार गाँव में जाकर बच्च
108 गाँव में फिर बहेगी जलधारा
Posted on 27 Nov, 2016 12:41 PM1. फ्लोराइड प्रभावित ग्रामों में काटे गए बिजली कनेक्शन फिर जुड़ेंगे
2. 25 दिसम्बर तक 35 लाख भरने की मिली मोहलत
हलमा से पानी और हरियाली बचाने की अनूठी मुहिम
Posted on 19 Jul, 2016 04:03 PMअपढ़ माने जाने वाले आदिवासी समाज ने बिना पैसों के 15 हजार जल संरचनाएँ सुबह 7 से 12 बजे तक
झाबुआ में आशा के बीज
Posted on 07 Jul, 2016 04:15 PM
झाबुआ का एक गाँव है डाबडी। वैसे तो यह सामान्य गाँव है लेकिन यहाँ एक किसान के खेत में देसी गेहूँ की 16 किस्में होने के कारण यह खास बन गया है। और वह भी बिना रासायनिक खाद और बिना कीटनाशकों के। पूरी तरह जैविक तरीके से देसी गेहूँ का यह प्रयोग आकर्षण का केन्द्र बन गया है।
मध्य प्रदेश में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम
Posted on 13 May, 2016 01:15 PMऔद्योगीकरण के विकास से एक तरफ अर्थव्यवस्था में अवश्य सुधार हुआ है लेकिन दूसरी तरफ औद्योगी
राष्ट्रीय फ्लोरोसिस रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम का मूल्यांकन
Posted on 07 Apr, 2016 11:41 AMनौ साल का सफर, नहीं चल पाये अढ़ाई कोस
धार, झाबुआ, अलीराजपुर के 1141 ग्रामों में फ्लोराइड संकट
झाबुआ जिले के सर्वाधिक 75 प्रतिशत ग्राम में है फ्लोराइड का प्रभाव
इन्दौर। भारत सरकार ने 2008-09 में देश में फ्लोरोसिस की रोकथाम एवं नियंत्रण के उद्देश्य से राष्ट्रीय फ्लोरोसिस रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीपीसीएफ) की शुरुआत की थी। अभी तक यह कार्यक्रम चरणबद्ध तरीके से 18 राज्यों के 111 जिलों तक विस्तारित किया जा चुका है। भले ही ये राष्ट्रीय कार्यक्रम नौ सालों से चल रहा हो लेकिन मैदानी हकीकत ये है कि अभी तक मध्य प्रदेश सहित सभी 18 राज्यों में स्थिति चिन्ताजनक है।
धार, झाबुआ, अलीराजपुर बहुल जिलों में 1141 ग्रामों में इस योजना का मूल्यांकन करें तो और भी चिन्ताजनक स्थिति सामने आती है। आज भी फ्लोरोसिस के लिये इस बात की मशीन से जाँच करके अन्य बीमारियों की तरह पुष्टि करना मुश्किल हैै। राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत कहीं मशीनें उपलब्ध हैं तो कहीं मशीन चलाने वाले ही नहीं है। कुछ जगह ऐसी भी है जहाँ आज तक मशीन ही नहीं पहुँची है। ऐसे में ये राष्ट्रीय कार्यक्रम अपने उद्देश्य से बहुत दूर रह गया है।