गया जिला

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बाढ़ की प्रलय और फल्गु नदी प्यासी
Posted on 25 Sep, 2008 11:44 AM

पटना, 17 सितंबर । एक तरफ उत्तर बिहार की नदियां उफान पर हैं तो दूसरी तरफ दक्षिण बिहार के गया की फल्गु नदी में आज भी नहीं के बराबर पानी है।

एक तरफ बाढ़ के पानी से लोगों को बाहर निकालने के लिए सेना के जवानों को लगाया गया है तो दूसरी तरफ फल्गु नदी में अपने पितरों की आत्मा को मुक्ति देने के लिए तर्पण करने वालों के लिए पानी नदी खोद कर निकालना पड़ रहा है।

दक्षिण बिहार की जीवनदायिनी 'पारम्परिक आहर-पईन जल प्रबन्धन प्रणाली' की समीक्षा (भाग 2)
भारतीय सभ्यता में मानवीय हस्तक्षेप द्वारा वर्षा जल संग्रहण और प्रबन्धन का गहन इतिहास रहा है। भारत के विभित्र इलाकों में मौजूद पारम्परिक जल प्रबन्धन प्रणालियाँ आज भी उतनी ही कारगर साबित हो सकती हैं जितनी पूर्व में थी। समय की कसौटी पर खरी उतरी और पारिस्थितिकी एवं स्थानीय संस्कृति के अनुरूप विकसित हुई पारम्परिक जल प्रबन्धन प्रणालियों ने लोगों की घरेलू और सिंचाई जरूरतों को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पूरा किया है। एकीकृत मानव अनुभव ने पारम्परिक प्रणालियों को कालांतर में विकसित किया है जो उनकी सबसे बड़ी खासियत व ताकत है। Posted on 11 Jun, 2024 07:56 PM

आहर-पईन खोदते समय निकली मिट्टी से अलंग बनाया जाता है जो अतिवृष्टि एवं बाढ़ की स्थिति का सामना करने में सहायक होता था। भू-क्षेत्र के केंद्र में गाँव और गाँव के चारों तरफ समतल खेत मगध के ग्रामीण बसाहट की विशेषता है। खेतों के बड़े आयताकार समुच्चय (50 से 100/200 एकड़ रकबे) को खंधा कहा जाता है। हर खंधे का विशेष नाम होता है जैसे मोमिन्दपुर, बकुंरवा, धोविया घाट, सरहद, चकल्दः, बडका आहर, गौरैया खंधा आदि

पारम्परिक आहर-पईन जल प्रबन्धन प्रणाली
सिंचाई के बिना प्रभावित होती कृषि
देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जहां ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों को सिंचाई में होने वाली परेशानी के कारण कृषि व्यवस्था प्रभावित हो रही है. इन्हीं में एक बिहार के गया जिला का उचला गांव है. जहां किसान सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण कृषि कार्य से विमुख हो रहे हैं. जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर और प्रखंड मुख्यालय बांकेबाज़ार से करीब 13 किमी दूर यह गांव रौशनगंज पंचायत के अंतर्गत है. लगभग 350 परिवारों की आबादी वाले इस गांव में उच्च वर्ग और अनुसूचित जाति की मिश्रित आबादी है Posted on 19 Dec, 2023 03:40 PM
सिंचाई के बिना प्रभावित होती कृषि
जलाशयों में 100 फीट बोरवेल जरूरी
Posted on 11 May, 2019 11:27 AM

हिन्दुस्तान, गया, 11 मई 2019

भीषण गर्मी और पेयजल संकट के बीच शुक्रवार को गया कलेक्ट्रेट में गया के प्रभारी सचिव आरके महाजन ने पेयजल की स्थिति पर बिंदुवार समीक्षा की। बताया गया कि गया में कुल 40,896 चापाकल हैें, जिसमें 5,869 नाकाम हैं। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कार्यपालक अभियंता विवेक कुमार ने बताया कि जिले का जल-स्तर 40-45 फीट निचे चला गया है।

गया शहर की संस्कृति को सहेजते हैं तालाब
Posted on 25 Nov, 2012 10:17 AM किसी भी जिले या शहर की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने का एक कारक तालाब भी है। इससे वहां की खूबसूरती भी बढ़ती है। युगो-युगों से नगर के समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के रूप में तालाबों को स्वीकार किया गया है। इतिहास गवाह रहा है कि मानव सभ्यता का विकास किसी नदी के किनारे ही हुआ है। भारतीय सभ्यता संस्कृति का शैशव काल यानी सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार इतिहास में जिसकी चर्चा
गांव की एटीएम हैं तालाब
Posted on 24 Nov, 2012 12:01 PM सामान्य खेतों में जहां साल भर खूब मेहनत के बावजूद फसल उत्पादन से अच्छी आय नहीं होती है, वहीं तालाब बनवा कर मछलीपालन अधिक लाभकारी है। बिहार में बेगूसराय के किसान जयशंकर कुमार को मात्र 38 कट्ठे की जमीन पर तालाब से चार से छह लाख रुपये सालाना आय हो रही है। जयशंकर की तरह ही राज्य के कई किसान अब सामान्य खेती के बदले समेकित खेती करने लगे हैं। समेकित खेती के लिए तालाब जरूरी है। बिहार में कृषि और मत्स्य
फल्गु नदीः नियति बन गया है प्रदूषित होना
Posted on 17 Aug, 2010 09:21 AM
प्रशासनिक और स्थानीय लोगों की उपेक्षा के चलते ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण फल्गु नदी की अस्तित्व को खतरा

कहा जाता है, विनाश काले विपरीत बुद्धि बस, बढ़ते प्रदूषण को लेकर भी यही कहा जा सकता है कि इन्सान की महत्वाकाक्षांएं उसे विनाश की ओर बहुत तेजी से धकेल रही हैं। तभी तो एक के बाद एक देश की महत्वपूर्ण नदियों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है। इस कड़ी में नया नाम फल्गु नदी का है। त्रेता युग में माता सीता के श्राप से श्रापित फल्गु
संकट में फल्‍गू का अस्तित्‍व
Posted on 13 Aug, 2010 09:51 AM
माता सीता के शाप से शापित होने के बावजूद पौराणिक काल से पितरों को मोक्ष दिलाती आ रही गया की पवित्र फल्गू नदी का वजूद आज ख़तरे में है। देश-विदेश से लाखों लोग प्रति वर्ष इसे नमन करने आते हैं। यह नदी मगध के लोगों की जीवनरेखा है, लेकिन विगत कुछ वर्षों से इसमें शहर भर का कूड़ा-कचरा फेंका जा रहा है। यही नहीं, 15 बड़े नालों का गंदा पानी भी इसे प्रदूषित कर रहा है, जिसके चलते भू-क्षरण, भूगर्भ जल के व
इस साल के सूखे में दक्षिण बिहार के लोगों की मदद करें
Posted on 06 Aug, 2010 12:26 PM पानी की समस्या पर काम करने वाले विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, संस्थाएँ एवं सरकार के विभाग इस विषम परिस्थिति में राहत कार्य के रूप में जलाशयों के जीर्णोद्धार के काम को ऊच्च प्राथमिकता दे कर तत्परतापूर्वक अभी से लग जाएँ। इससे सूखे के दौरान लोगों को काम भी मिल जायेगा और आगे कम वर्षा के समय इन जलाशयों से सिंचाई तो होगी ही साथ ही भूमिगत जल के संभरण एवं पेयजल की समस्या का भी दीर्घकालिक समाधान होगा। ऐतिहासिक रूप से विख्यात मगध प्रमण्डल (पूर्व में गया जिला) बिहार का दक्षिणी भाग है। मगध प्रमण्डल में चार जिले गया, औरंगाबाद, जहानाबाद तथा नवादा हैं। मगध क्षेत्र की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक गौरव और इसके अविछिन्न इतिहास का आधार इस इलाके की अद्भुत सिंचाई व्यवस्था रही है। फल्गु , दरधा, सकरी, किउल, पुनपुन और सोन मगध क्षेत्र की मुख्य नदियाँ हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहमान ये नदियाँ गंगा में मिलती हैं। ‘बराबर पहाड़’ के बाद फल्गु कई शाखाओं में बँट कर बाढ़ - मोकामा के टाल में समा जाती है। बौद्धकाल से ही मगध वासियों ने सामुदायिक श्रम से फल्गु, पुनपुन आदि इन नदियों से सैंकडों छोटी-छोटी शाखायें निकालीं, जिससे बरसात में पानी कोसों दूर खेतों तक पंहुचाया जा सके।

सामुदायिक श्रम से वाटर हार्वेस्टिंग की एक अद्भुत विधा और तकनीक का विकास सह्स्राब्दियों से इस इलाके में होता रहा, जो ब्रिटिश शासन तक चालू रहा।
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