गांव की एटीएम हैं तालाब

सामान्य खेतों में जहां साल भर खूब मेहनत के बावजूद फसल उत्पादन से अच्छी आय नहीं होती है, वहीं तालाब बनवा कर मछलीपालन अधिक लाभकारी है। बिहार में बेगूसराय के किसान जयशंकर कुमार को मात्र 38 कट्ठे की जमीन पर तालाब से चार से छह लाख रुपये सालाना आय हो रही है। जयशंकर की तरह ही राज्य के कई किसान अब सामान्य खेती के बदले समेकित खेती करने लगे हैं। समेकित खेती के लिए तालाब जरूरी है। बिहार में कृषि और मत्स्यपालन के क्षेत्र में तालाब के माध्यम से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो सकती है।

तालाब किसानों के आय का अच्छा स्त्रोत है। इसमें जल भंडारण से आसपास की जमीन का जल स्तर रिचार्ज होता है। सिंचाई की सुविधा मिलती है। मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में तालाब की बड़ी भूमिका है। नये तालाब बनाने और पुराने तालाब के जीर्णोद्धार के लिए किसानों को अनुदान दिये जा रहे हैं। तालाब का उपयोग मछली उत्पादन के साथ ही पानी फल सिंघाड़ा और मखाना उत्पादन के लिए किया जा सकता है। बिहार में 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में तालाब हैं। तालाब की संख्या लगभग 75 हजार है। नौ हजार हेक्टेयर में मन या गोखुर झील है। 25 हजार हेक्टेयर में जलाशय हैं। पांच लाख हेक्टेयर में आर्द्र जल चौर हैं। 3200 किलोमीटर सदाबहार नदियां हैं। राज्य में तालाब, नदी, चौर और मन इतने अधिक होने के बावजूद मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है। अभी एक वर्ष में राज्य 5.20 लाख टन मछली की खपत होती है, जबकि उत्पादन मात्र तीन लाख टन के आसपास होती है। लगभग चालीस प्रतिशत मछली आंध्रप्रदेश और पश्चितम बंगाल से आयात करना पड़ता है। बिहार में प्रति वर्ष दूसरे राज्यों से डेढ़ से दो लाख टन मछली आयात की जाती है।

मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलायी जा रही हैं। हाल ही में पशु व मत्स्य विभाग ने समग्र मछली पालन योजना शुरू की है। इस योजना के तहत एक हेक्टेयर क्षेत्र में तालाब बनवाने का लागत मूल्य चार लाख रुपये तय किये गये हैं। नये तालाब बनवाने के लिए चालीस प्रतिशत यानी एक लाख 60 हजार रुपये अनुदान मिलेगा। पुराने तालाब के जीर्णोद्धार के लिए डेढ़ लाख रुपये लागत खर्च आंकलित है। इसमें पचास प्रतिशत यानी 75 हजार रुपये अनुदान दिये जायेंगे। एक एकड़ तक तालाब के लिए बोरिंग के लिए 50 हजार रुपये में 80 प्रतिशत यानी 40 हजार और पांच एचपी का पानी मोटर लगाने के लिए 25 हजार में 80 प्रतिशत अनुदान देने का प्रावधान है। तालाब में मछली बीज डालने के लिए भी 50 प्रतिशत अनुदान मिलेंगे। फिश फीड मिल लगाने में 12 लाख रुपये खर्च होते हैं। इसमें सरकार 50 प्रतिशत यानी छह लाख रुपये अनुदान के रूप में देगी। तीन एकड़ जमीन पर हैचरी निर्माण के लिए सरकार 15 लाख रुपये में यानी 7.50 लाख रुपये अनुदान मिलेगा। इतना ही नहीं मछली को खाना खिलाने के लिए पचास प्रतिशत अनुदान दिया जायेगा।

एक एकड़ क्षेत्र में मछली को खाना खिलाने में एक वर्ष में 62 हजार रुपये अनुमानित है। इसमें किसानों को 50 प्रतिशत यानी 31 हजार रुपये अनुदान के रूप में देने का प्रावधान किया गया है। पंगेशियस मछली पालन के लिए 60 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है। चौर क्षेत्र में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए इस वर्ष विशेष योजना शुरू की गयी है। चौर क्षेत्र में एक हेक्टेयर में तालाब निर्माण में लागत खर्च 3.88 लाख रुपये अनुमानित है। इस क्षेत्र के किसानों को तालाब बनवाने के लिए 60 प्रतिशत अनुदान दिये जायेंगे। समस्तीपुर, सीवान और दरभंगा आदि क्षेत्रों में जहां निचली भूमि और जल जमाव के कारण धान या गेहूं सहित अन्य फसलों की खोती नहीं हो पाती थी, वहां के किसान अब तालाब निर्माण कराने लगे हैं। राज्य में सिंचाई की स्थिति काफी खराब है। ऐसे में तालाब के निर्माण से उम्मीद बढ़ जाती है।

कृषि विभाग के माध्यम से बिहार के उप पठारी जिले बांका, मुंगेर, जमुई, गया, नवादा, औरंगाबाद, रोहतास व कैमूर में भूमि एवं जल संरक्षण के लिए योजनाएं चल रही हैं। जल संचय के लिए तालाब निर्माण, चेक डैम निर्माण एवं पौधारोपण को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चलायी जा रही हैं। इन जिलों के किसानों को जल संचय योजना के तहत तालाब निर्माण के लिए 80 से 90 प्रतिशत तक अनुदान देने की व्यवस्था है। पांच एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को 90 और पांच एकड़ से अधिक जमीन वाले किसानों को इस योजना से तालाब निर्माण के लिए 80 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। इस योजना के माध्यम से जल संरक्षित कर जमीन की उर्वरा बढ़ाना है। सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता भी है। इन क्षेत्रों में अधिक से अधिक तालाब और चेक डैम के निर्माण से पानी का जलस्तर ऊपर आयेगा। इससे जमीन की उर्वरता बढ़ेगी।

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