प्रशासनिक और स्थानीय लोगों की उपेक्षा के चलते ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण फल्गु नदी की अस्तित्व को खतरा
कहा जाता है, विनाश काले विपरीत बुद्धि बस, बढ़ते प्रदूषण को लेकर भी यही कहा जा सकता है कि इन्सान की महत्वाकाक्षांएं उसे विनाश की ओर बहुत तेजी से धकेल रही हैं। तभी तो एक के बाद एक देश की महत्वपूर्ण नदियों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है। इस कड़ी में नया नाम फल्गु नदी का है। त्रेता युग में माता सीता के श्राप से श्रापित फल्गु को अतःसलिला का रूप धारण करना पड़ा और अब कलियुग में फल्गु नदी उपेक्षा के चलते बुरी तरह प्रदूषित हो गई है। गया नगर निगम और स्थानीय लोग नदी के मिटते अस्तित्व की रक्षा के लिए नहीं बल्कि इसके मिटते अस्तित्व में आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।
अंदरगया, पंचमहला, उपरडीह, चांदचौरा से निकलने वाली फल्गु में अब गंदगी का प्रवाह हो रहा है। मधुश्रवा का नाम मनसरवा नाला हो गया है। इस नाले से निकली गंदगी विष्णुपद मंदिर के पीछे से देवघाट होते हुए आगे बढ़ जाती है। मनसरवा नाले की गंदगी को नाला बना कर आगे नहीं बढ़ाने से यह देवघाट के पास नदी में फैल जाती है। पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गयाधाम में श्राद्ध करने आए श्रद्धालुओं को तब ठेस पहुंचती है जब उन्हें गंदे जल का इस्तेमाल करना पड़ता है, यह स्थिति केवल देवघाट की ही नहीं बल्कि फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर बसे पितामहेश्वरघाट सिढ़ियाघाट, मौर्यघाट, किरानीघाट, पंचायती अखाड़ा, रामशिला आदि सभी स्थानों की है।
फल्गु नदी झारखंड के हजारीबाग के जंगलों और पहाड़ियों से निकल कर बोधगया और गया होते हुए पुनपुन में विलीन हो जाती है। अगर इसका धार्मिक महत्व देखें तो गंगा नदी भगवान विष्णु के नख से निकली है जबकि स्वयं भगवान विष्णु जल के रूप में द्रवित होकर फल्गु नदी में बह रहे हैं।
गौर करने लायक बात है कि गया नगर निगम शहर के कचरे को कई सालों से नदी में डाल रहा है। स्थानीय लोग भी पीछे नहीं हैं। नदी के पूर्वी एवं पश्चिमी किनारे पर लगातार किए जा रहे अतिक्रमण से उसका पाट लगातार सिकुड़ता जा रहा है। कई स्थानों पर तो इकबाल नगर जैसे कई मोहल्ले बस गए हैं। प्रशासन द्वारा रोकने के बावजूद सूर्य कुंड और पितामहेश्वर सरोवर का कचरा नदी में डाला जा रहा है। शहर के सभी नालों का रुख फल्गु की ओर है। जाहिर तौर पर इन नालों का प्रदूषित जल जमीन में जा रहा है।
तभी तो पितामहेश्वर मोहल्ले में सरकारी अथवा निजी रूप से लगाए गए चापाकलों से निकलने वाला पानी बदबूदार होने के साथ-साथ मटमैला और झागयुक्त हो गया है। पानी में हाथ डालने पर ऐसा लगता है कि इसमें सर्फ घोला हुआ है। मोहल्ले के लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 14 करोड़ रु. की लागत से बोरिंग कराकर ट्यूबवेल लगाया तो गया पर कम गहराई में बोरिंग कराकर ट्यूबवेल लगाया तो गया पर कम गहराई में बोरिंग होने से इससे स्वच्छ जल नसीब नहीं हो सका। फिलहाल इस मामले में संवेदक के खिलाफ जांच की प्रक्रिया जारी है। स्थानीय लोग इसी जल का उपयोग लंबे समय से कर रहे हैं। यहां रहने वाले श्रवण केसरी बताते हैं, “प्रदूषित जल का सेवन करना फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर बसे लोगों की लाचारी है प्रशासन की अनदेखी के कारण शहर के नाले और गंदगी का प्रवाह फल्गु नदी की ओर किया जा रहा है,”
समाजसेवी सुरेश नारायण फल्गु की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “एक समय था जब भू-गर्भशास्त्री फल्गु नदी के जल को पेयजल की दृष्टि से सर्वोत्तम बताते थे। आज आलम यह है कि इसका भू-जल भी प्रदूषित हो गया है। फल्गु के अस्तित्व को बचाने के लिए किसी योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है।” गया नगर निगम द्वारा शहर के कचरे को फल्गु नदी में डालने से नदी का पाट न सिर्फ सिकुड़ता जा रहा है बल्कि कूड़े के ढेर के आगे विष्णु पद मंदिर का शिखर भी छोटा लगने लगा है।
जिले में खाद्य एवं पेय पदार्थों की गुणवत्ता की जांच के लिए पिलग्रीम अस्पताल परिसर में जिला जन स्वास्थ्य प्रयोगशाला स्थापित है। स्वास्थ्य विभाग ने प्रयोगशाला में वरीय वैज्ञानिक की पदस्थापना न कर मेडिकल ऑफिसर को पदस्थापित कर दिया है। प्रयोगशाला में पदस्थापित चिकित्सक डॉ. प्रदीप कुमार अग्रवाल के अनुसार, “जन स्वास्थ्य प्रयोगशाला में खाद्य एवं पेय पदार्थों की जांच नहीं की जाती यहां पैथोलॉजिकल जांच की व्यवस्था है।” डॉ. अग्रवाल ने बताया, “प्रति लीटर 250 ग्राम नाइट्रेट के सेवन से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। शरीर में खून की कमी हो जाती है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को ज्यादा नुकसान होता है।” जांच के दौरान यहां के पानी के प्रति लीटर 250 ग्राम नाइट्रेट पाया गया था।
इस तरह की स्थिति सिर्फ पिता महेश्वर मुहल्ले की ही नहीं बल्कि फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर बसे नादरागंज, रमना, सिढ़ियाघाट, मौर्यघाट, किरानीघाट, पंचायती अखाड़ा आदि मोहल्लों की भी है। यहां गया नगर निगम द्वारा फेंकी गई शहर की गंदगी नाले के माध्यम से नदी में जाती है।
गया नगर निगम के नगर आयुक्त राय मदन किशोर बताते हैं, “फल्गु के पश्चिमी किनारे का भू-जल प्रदूषित हो गया है। शहरवासियों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए शहर से दक्षिण दंडीबाग, केंदुई या केंदुआ में जलापूर्ति केंद्र स्थापित किया जाएगा।”
इस पर जिलाधिकारी संजय कुमार सिंह कहते हैं, “नदी की पवित्रता बरकरार रखने और नदी के भू-जल को प्रदूषित होने से रोकने के लिए राज्य सरकार और जिला प्रशासन की पहल पर आवश्यक कार्रवाई शुरू कर दी गई है। शहर के कचरे को नदी में या नदी के किनारे फेंकने पर पाबंदी लगा दी गई है। एशियन डेवलपमेंट बैंक की मनसरवा नाला, पंचायती अखाड़ा नाला कुजापी और कंडी नवादा के पास वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना है। इसके लिए बैंक अधिकारियों ने सर्वेक्षण कार्य पूरा कर लिया है।” वैसे कहने को बातें तो बहुत हैं लेकिन हकीकत तब पता चलेगी जब उन पर अमल होगा।
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