जापान की ओसाका यूनिवसिर्टी के वैज्ञानिक ताकाहिरो सुमी ने किया है। इस टीम द्वारा की गई गणनाओं के मुताबिक हमारी आकाशगंगा में 200 अरब तारों में प्रत्येक तारे के आसपास बृहस्पति जैसे दो विशाल ग्रह विचर रहे हैं। इस रिसर्च से पहले यह माना जाता था कि सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत तारों के पास ही बृहस्पति जैसे ग्रह हैं लेकिन अब लगता है कि संख्या के मामले में ग्रह तारों से काफी आगे निकल गए हैं।
आजकल जिधर देखिए, मकान के लिए मारामारी है। कोई किसी बिल्डर के पीछे भाग रहा है तो कोई सरकार को कोस रहा है कि वह आम आदमी के लिए सस्ते मकान की व्यवस्था नहीं कर पा रही है। मकान के लिए जगह की किल्लत होने लगी है। बिल्डर किसानों की जमीन पर नजरें टिकाने लगे हैं, जिससे किसानों में नाराजगी फैल रही है। आखिर यह सब कहां जाकर रुकेगा, कहना मुश्किल है। इन सब से परेशान इंसान इसलिए कह उठता है कि क्यों न इस पृथ्वी से बाहर कहीं चला जाए। पृथ्वी से दूर कहीं और बस्ती बसाने की बात हमारे लिए भले ही एक फैंटेसी हो पर वैज्ञानिक इसे लेकर काफी गंभीर हैं।
हमारे सौरमंडल के बाहर ग्लीजा सिस्टम पिछले कुछ समय से वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल और जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। उन्हें लगता है कि हम अपने आसपास पृथ्वी जैसे जिस आशियाने की तलाश कर रहे हैं, वह शायद इसी प्लेनेटरी सिस्टम में मौजूद है। इस सिस्टम में 'ग्लीजा 581 डी' नामक चट्टानी ग्रह सौरमंडल के बाहर संभवत: पहला ऐसा ग्रह है, जो जीवन के लिए अनुकूल हो सकता है। फ्रांस के एस्ट्रोनॉमर्स ने एक नए वायुमंडलीय मॉडल के अध्ययन के बाद यह पता लगाया है कि यह ग्रह अपने मेजबान तारे के जीवनानुकूल क्षेत्र में है, यानी यह ग्रह ऐसी मध्यम दूरी पर स्थित है, जहां की परिस्थितियां तरल जल की मौजूदगी के लिए अनुकूल हो सकती हैं। नई रिसर्च के मुताबिक इस पारलौकिक दुनिया में पृथ्वी की तरह ही समुद्र, बादल और वर्षा जैसे महत्वपूर्ण फीचर हो सकते हैं।
यह नया निष्कर्ष हाल ही में किए गए दूसरे मॉडल-अध्ययनों के अनुरूप है, लेकिन इससे यह बात यकीनी तौर पर नहीं कही जा सकती कि इस ग्रह की सतह पर जीवनदायी जल बहता है। 'ग्लीजा 581 डी' हमारी पृथ्वी से सात गुना बड़ा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसका वायुमंडल घना और कार्बन डाइआक्साइड आधारित है। इस ग्रह का मूल तारा 'ग्लीजा 581' एक छोटा लाल तारा है, जो पृथ्वी से 20 प्रकाश वर्ष दूर है। प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की जाने वाली दूरी प्रकाश वर्ष कहलाती है। यूनिवर्स के स्केल से देखें तो यह दूरी बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन हम पृथ्वीवासियों के लिए 20 प्रकाश वर्ष वास्तव में खरबों वर्ष हो जाते हैं। यदि 20 प्रकाश वर्ष को किलोमीटर में तब्दील किया जाए तो वास्तविक आंकड़ा 189214609451616 किलोमीटर बैठता है।
अभी तक एस्ट्रोनामर्स ने छह ग्रहों का पता लगाया है जो इस तारे के इर्द-गिर्द चक्कर काट रहे हैं। 'ग्लीजा 581 डी' पृथ्वी से बाहर जीवन की उम्मीद जगाने वाला अकेला ग्रह नहीं है। ग्लीजा परिवार का एक और सदस्य, 'ग्लीजा 581 जी' पृथ्वी से तीन गुना बड़ा है। इस ग्रह के भी चट्टानी होने की पूरी संभावना है। पिछले साल सितंबर में इस ग्रह की खोज की घोषणा के बाद एस्ट्रोनॉमर्स काफी उत्साहित नजर आए क्योंकि यह ग्रह जीवन अनुकूल क्षेत्र के बिल्कुल बीचों-बीच है। यदि यह ग्रह वास्तव में मौजूद है तो वहां जीवन को पोषित करने वाली परिस्थितियां हो सकती हैं।
कुछ रिसर्चरों ने ग्रह की खोज के लिए किए गए विश्लेषण पर सवाल उठाए हैं। उनका यह भी कहना है कि वे 'ग्लीजा 581 जी' के अस्तित्व की पुष्टि कर पाने में असमर्थ हैं लेकिन इस ग्रह के खोजकर्ता अपनी खोज को सही बता रहे हैं और इस पर कायम हैं। 'ग्लीजा 581 डी' दूसरे ग्रह 'ग्लीजा 581 जी' की तुलना में अपने मूल तारे से काफी दूर है। 2007 में जब इसकी खोज हुई थी तब रिसर्चरों ने उसे बेहद ठंडा होने के कारण जीवन के अनुकूल नहीं पाया था।
अब फ्रेंच रिसर्चरों का कहना है कि तगड़े ग्रीनहाउस प्रभाव की वजह से यह ग्रह काफी गरम हो जाता है। इतनी गर्मी में तरल पानी जीवन को पोषित कर सकता है। रिसर्च टीम ने एक नया कंप्यूटर मॉडल विकसित करके यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि 'ग्लीजा 581 डी' कार्बन डाइऑक्साइड के घने वायुमंडल के बावजूद पानी को तरल अवस्था में रखने में सक्षम है। यह ग्रह अपने मूल तारे से तुलनात्मक रूप से ज्यादा दूर होने के बावजूद ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण गरम होता रहता है। ग्रह का वायुमंडल दिन में उत्पन्न गर्मी को पूरे ग्रह पर प्रसारित करता रहता है।
क्या 'ग्लीजा 581 डी' सचमुच जीवन-अनुकूल है, यह साबित करने के लिए रिसर्चरों को सीधे उसके वायुमंडल को खोजना होगा और उसकी विशिष्टताओं का पता लगाना होगा। इस कार्य में कई वर्ष लग सकते हैं क्योंकि इसके लिए नए और अति उन्नत टेलीस्कोपों की जरूरत पड़ेगी। मानव-निर्मित अंतरिक्ष यानों को ग्लीजा मंडल के आसपास भेजना संभव नहीं है। टेक्नोलॉजी के वर्तमान स्तर को देखते हुए 'ग्लीजा 581 डी' के लिए अंतरिक्ष यान को 20 प्रकाश वर्षों की यात्रा पूरी करने में हजारों वर्ष लग जाएंगे।
ग्लीजा प्लेनेटरी सिस्टम ने जहां बाहरी 'पृथ्वियों' के बारे में नई जिज्ञासा पैदा की है, वहीं बाहरी ग्रहों के बारे में कुछ नई चौंकाने वाली जानकारियाँ मिलने के बाद खगोल वैज्ञानिकों को इन ग्रहों की उत्पत्ति और उनकी संख्या के बारे में नए सिरे से सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है। आकाशगंगा की हाल ही में की गई पड़ताल के दौरान वैज्ञानिकों को 10 ऐसे 'अनाथ' ग्रहों का पता चला है, जिनके पास परिक्रमा करने के लिए अपना कोई तारा नहीं है। इनमें से प्रत्येक का आकार बृहस्पति जितना है।
नई रिसर्च के मुताबिक हमारी आकाशगंगा में खरबों ऐसे ग्रह हैं, जो अपने मूल ग्रह परिवारों से खदेड़े जा चुके हैं। ये 'अनाथ' ग्रह या तो अकेले ही विचरण कर रहे हैं या फिर ऐसी कक्षाओं में पहुंच गए हैं, जो सूरज और पृथ्वी के बीच की दूरी की तुलना में अपने मूल तारों से 10 गुना ज्यादा दूर हैं। यह खोज खगोल वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने की है, जिसका नेतृत्व जापान की ओसाका यूनिवसिर्टी के वैज्ञानिक ताकाहिरो सुमी ने किया है। इस टीम द्वारा की गई गणनाओं के मुताबिक हमारी आकाशगंगा में 200 अरब तारों में प्रत्येक तारे के आसपास बृहस्पति जैसे दो विशाल ग्रह विचर रहे हैं। इस रिसर्च से पहले यह माना जाता था कि सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत तारों के पास ही बृहस्पति जैसे ग्रह हैं लेकिन अब लगता है कि संख्या के मामले में ग्रह तारों से काफी आगे निकल गए हैं। एक स्वाभाविक सवाल यह पैदा होता है कि क्या अकेले घूम रहे ग्रह भी जीवन-अनुकूल हो सकते हैं। एस्ट्रोनॉमर्स ऐसी किसी संभावना को खारिज करते हैं। गरम मिजाज वाले इन विराट गैस पिंडों पर जीवन का पनपना नामुमकिन है।
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