Posted on 08 Aug, 2017 11:35 AM प्राकृतिक आपदाओं के दौर में जन-धन हानि की खबरें सुर्खियों में रहती हैं। यह बात सही है कि ऐसी आपदाएँ कभी कहकर नहीं आती लेकिन विभिन्न एजेंसियों में प्रभावी समन्वय हो तो आपदाओं के दुष्प्रभावों पर एक हद तक अंकुश लग सकता है। लेकिन यदि सरकारी एजेंसियाँ ही विफल रहने लगें तो कहा जाएगा कि…
Posted on 08 Aug, 2017 11:32 AM गंगा को निर्मल बनाने के लिये सरकार के महत्त्वाकांक्षी नमामि गंगे कार्यक्रम पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की यह सख्त टिप्पणी कि दो साल में सात हजार करोड़ खर्च होने के बावजूद गंगा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है, कुल मिलाकर यही रेखांकित करता है कि गंगा निर्मलीकरण की रफ्तार सुस्त है। यह स्थिति यह भी इंगित करती है कि गंगा निर्मलीकरण को लेकर नदी व
Posted on 08 Aug, 2017 10:21 AM विश्व पर्यावरण दिवस 2003 का मुख्य विषय था: जल, जिसके लिये 2 बिलियन लोग मर रहे हैं। इससे टिकाऊ विकास में जल की केन्द्रीय भूमिका उजागर होती है। जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ को वर्ष 2003 को स्वच्छ जल का अन्तरराष्ट्रीय वर्ष घोषित करना पड़ा।
Posted on 06 Aug, 2017 04:31 PM निरंतर बढ़ती जनसंख्या से पूरे विश्व में स्वच्छ पानी की भारी कमी महसूस की जा रही है और इससे निबटने के लिये वैज्ञानिक भी ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इस रस्साकशी में पानी बचाने, गंदे पानी को उपयोगी बनाने हेतु भी नई-नई तकनीक ईजाद की जा रही है। पिछले दिनों हुई अन्तरराष्ट्रीय जल संसद में वेटलैंड तकनीक की ओर ध्यान खींचा गया। प्राचीन होते हुए भी सबसे बेहतर
Posted on 06 Aug, 2017 01:55 PM पिछले दस पन्द्रह सालों से, जल संकट की पृष्ठभूमि में रेन-वाटर हार्वेस्टिंग का नाम, अक्सर सुना जाने लगा है। पिछले कुछ सालों से सरकार भी इस काम को बढ़ावा देने के लिये लगातार प्रयास कर रही है। कार्यशालाओं तथा तकनीकी गोष्ठियों में इस विषय पर गंभीर बहस होने लगी है। समाज को जोड़ने और उसकी भागीदारी की बात होने लगी है। इससे संबंधित सरल साहित्य छापा जाने लगा है। मीडिया में इस पर लेख छपते हैं पर आम आदम
Posted on 05 Aug, 2017 01:49 PM पुरातन काल की अधिकांश सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारों पर हुआ जो इस बात को इंगित करता है कि जल, जीवन की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिये आवश्यक ही नहीं, वरन महत्त्वपूर्ण संसाधन रहा है। विगत दशकों में तीव्र नगरीकरण एवं आबादी में निरंतर हो रही बढ़ोत्तरी, पेयजल आपूर्ति की मांग तथा सिंचाई जल मांग में वृद्धि के साथ ही औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार इत्य
Posted on 05 Aug, 2017 12:02 PM सतत परिवर्तनशीलता प्रकृति का गुण है। इसके अन्तस में सर्वपूर्ण श्रेष्ठतम स्थिति की प्यास है। सो प्रकृति प्रतिपल सक्रिय है। नित्य नूतन गढ़ने, जीर्ण-शीर्ण पुराने को विदा करने और नए को बारम्बार सृजित करने का प्रकृति प्रयास प्रत्यक्ष है। वह लाखों करोड़ों बरस से सृजनरत है। अपने सृजन से सदा असन्तुष्ट जान पड़ती है प्रकृति। एक असमाप्त सतत संशोधनीय कविता जैसी।