दिल्ली

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बाढ़ नियंत्रण और कुदरत
Posted on 05 Nov, 2015 11:46 AM


बाढ़, कम समय में हुई अतिवृष्टि का प्रतिफल है। कई बार गैर-प्राकृतिक कारणों से भी बाढ़ें आती हैं। लाखों करोड़ों सालों से दुनिया भर की नदियों में बाढ़ें आ रही हैं पर जबसे उसके असर से मनुष्य को परेशानी होने लगी है, बाढ़ नियंत्रण पर चर्चा और उसके असर को कम करने के लिये प्रयास होने लगे हैं।

river
वाटरलेस यूरिनल लिखेंगे नई इबारत
Posted on 05 Nov, 2015 11:23 AM
रमेश शक्तिवाल एक प्रतिभावान इंजीनियर और जल विशेषज्ञ हैं। आईआईटी दिल्ली से हो रही उनकी पीएचडी का विषय है वाटरलेस यूरिनल की डिजाइन। उनका मानना है कि जलसंकट के इस दौर में नई डिज़ाइन वाले निर्जल मूत्रालय आज के समय की महती आवश्यकता हैं। वाटरलेस यूरिनल को कुछ इस प्रकार बनाया गया है कि इनमें मूत्र के निस्तारण के लिये परम्परागत मूत्रालयों की तरह पानी की आवश्यकता नहीं होती।हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की ख्याति का एक कारण उनका स्वमूत्र का सेवन भी था। इतना ही नहीं वे लोगों को भी मूत्र को औषधि के रूप में व्यवहार करने की सलाह देते थे। मोरारजी की सलाह आप मानें न मानें पर गौमूत्र की उपयोगिता पर लगातार खोजों ने क्या आपको यह नहीं बताया कि गौमूत्र संजीवनी रसायन है। वैसे तो संसार गाय के मूत्र की विलक्षणताओं के बारे में जान ही गया है। कई गौशालाओं के लोग इसे बोतलबंद करके बेचने लगे हैं, इनका उपयोग लोग अपनी बीमारियों को ठीक करने में करते हैं। किसान अपने खेतों में फसलों की उपज बढ़ाने तथा फसलों के रोगों के इलाज के तौर
urinal
मूर्ति विसर्जन और पर्यावरणीय सुरक्षा के प्रयास
Posted on 19 Oct, 2015 10:33 AM

नवरात्र विशेष


भारत जैसे संस्कारित देश में लगभग सभी प्रमुख धर्मों को मानने वाले लोग निवास करते हैं। अपने-अपने धर्म के अनुसार उनके तीज-त्योहार, उत्सव, पर्व, कर्मकाण्ड और आस्थाएँ हैं। धार्मिक विविधता के कारण देश भर में लगभग साल भर धार्मिक अनुष्ठान एवं कार्यक्रम चलते रहते हैं।
Statue immersion
इन्क्लूसिव मीडिया-यूएनडीपी फेलोशिप (Inclusive Media - UNDP fellowship)
Posted on 19 Oct, 2015 10:31 AM

इन्कूलिसिव मीडिया-यूएनडीपी फेलोशिप-2015 के लिए पत्रकारों से हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में आवेदन आमंत्रित हैं। फेलोशिप के लिए आवेदन इन्कूलिसिव मीडिया फॉर चेंज की ओर से आमंत्रित किए गए हैं। यह फैलोशिप ग्रामीण-संकट/ विकास तथा वंचित तबके के मुद्दों पर मीडिया कवरेज बढ़ाने और कवरेज को पैना बनाने के लिए दी जा रही है। फेलोशिप का उद्देश्य लो

अन्तरराज्यीय जल विवाद
Posted on 14 Oct, 2015 01:17 PM

कन्फ्लिक्ट रिजोल्यूशन दिवस, 15 अक्टूबर 2015 पर विशेष


.भारत नदियों का देश है। गंगा, यमुना, सिन्धु, झेलम, ब्यास, ब्रह्मपुत्र, चम्बल, केन, बेतवा, नर्मदा, महानदी, सोन, ताप्ती, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा जैसी अनेक नदियाँ इसकी पहचान हैं। उक्त सूची में दर्ज कुछ नदियाँ अन्तरराज्यीय हैं तो कुछ अपने ही प्रदेश के आँगन में अपनी यात्रा पूरी कर लेती हैं।

कुछ नदियों में पानी की विपुल मात्रा प्रवाहित होती है तो कुछ कम पानी पर सन्तोष करती हैं। सिन्धु और ब्रह्मपुत्र का अस्तित्व भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी है। उनके पानी के बँटवारे को लेकर अन्तरराष्ट्रीय समझौते तथा कतिपय समस्याएँ हैं।

भारत की जलवायु मानसूनी है इसलिये यहाँ बमुश्किल चार महीने ही पानी बरसता है। ऐसे देश में जहाँ लगभग आठ माह सूखे हों उस देश के राज्यों के बीच अन्तरराज्यीय नदियों के पानी के बँटवारे का मामला, अपने आप ही प्रभावित आबादी की पानी की मूलभूत ज़रूरतों, खेती और आजीविका से जुड़ा मामला बन जाता है।

कावेरी नदी
बाढ़ और सूखा
Posted on 11 Oct, 2015 03:59 PM

इंटरनेशनल नेचुरल डिजास्टर रिडक्शन दिवस, 13 अक्टूबर 2015 पर विशेष


. बरसात, कुदरत की नियामत है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठे बादल, हर साल, भारत की भूमि को पानी की बूँदों की सौगात देते हैं। कहीं कम तो कहीं अधिक पर बूँदों के अवदान का सिलसिला तीन से चार माह चलता है। शीत ऋतु में, भूमध्य सागर से पूरब की ओर चली हवाएँ जब लम्बी दूरी तय कर उत्तर भारत में प्रवेश करती हैं तो हिमालय की पर्वतमाला उन्हें रोककर बरसने के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करती हैं।

हिमालय की इसी निर्णायक भूमिका के कारण, रबी के मौसम में उत्तर भारत में बरसात होती है। बरसात के आँकड़ों को देखने से पता चलता है कि भारत के पूर्वी भाग में अधिक तो पश्चिमी भाग में कम वर्षा होती है। राजस्थान के थार मरुस्थल में उसकी मात्रा सबसे कम है।

सूखा
गाँधी जी का पर्यावरण मंत्र संयम, स्वावलम्बन और सोनखाद
Posted on 01 Oct, 2015 10:13 AM

स्वच्छता दिवस, 02 अक्टूबर 2015 पर विशेष


कचरा, पर्यावरण का दुश्मन है और स्वच्छता, पर्यावरण की दोस्त। कचरे से बीमारी और बदहाली आती है और स्वच्छता से सेहत और समृद्धि। ये बातें महात्मा गाँधी भी बखूबी जानते थे और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी भी। इसीलिये गाँधी जी ने स्वच्छता को स्वतंत्रता से भी ज्यादा जरूरी बताया। मैला साफ करने को खुद अपना काम बनाया।

गाँवों में सफाई पर विशेष लिखा और किया। कुम्भ मेले में शौच से लेकर सुर्ती की पीक भरी पिचकारी से हुई गन्दगी से चिन्तित हुए। श्रीमान मोदी ने भी स्वच्छता को प्राथमिकता पर रखते हुए स्वयं झाड़ू लगाकर अपने प्रधानमंत्रित्व काल के पहले ही वर्ष 2014 में गाँधी जयन्ती को ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की।

वर्ष-2019 में गाँधी जयन्ती के 150 साल पूरे होने तक 5000 गाँवों में दो लाख शौचालय तथा एक हजार शहरों में सफाई का लक्ष्य भी रखा।
Mahatma Gandhi
नदी की कहानी : नदी की जुबानी
Posted on 15 Sep, 2015 11:43 AM

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष

River
पानी चाहिए तो हिमालय बचाना होगा
Posted on 08 Sep, 2015 04:17 PM

हिमालय दिवस 9 सितम्बर 2015 पर विशेष


अलवर, राजस्थान स्थित तरुण भारत संघ ने वर्ष 2007 में एक पुस्तक छापी थी- भारतीय जल दर्शन। इसके एक अध्याय- प्रलयकाल में जल का वर्णन- में पुराणों के हवाले से कहा गया है कि प्रलय का समय आने तक मेघ पृथ्वी पर वर्षा नहीं करते। किसी को अन्न नहीं मिलता, ब्रह्माण्ड गोबर के उपले की तरह धू-धूकर जलने लगता है... सब कुछ समाप्त हो जाता है... इसके बाद सैकड़ों वर्षों तक सांवर्तक वायु चलती है और इसके पश्चात असंख्य मेघ सैकड़ों वर्षों तक वर्षा करते हैं। सब कुछ जलमग्न हो जाता है...”

नहीं मालूम कि यह पौराणिक आख्यान कितना सच होगा पर आज इस सबकी अनुभूति सी होने लगी है। वर्षा का चक्र बिगड़ गया है, अन्न की कमी हो ही चुकी है और पृथ्वी उपले की तरह तो नहीं जल रही पर तापमान खूब बढ़ गया है और वैसा ही कुछ अहसास दे रही है।

जलवायु वैज्ञानिकों का एक वर्ग भी मानता है कि हर एक लाख वर्ष के बाद धरती 15-20 हजार वर्ष तक गर्म रहती है और वर्तमान जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया कोई 18 हजार वर्ष पहले शुरू हो गई थी।
स्कूलों में जल का पाठ्यक्रम अलग से जोड़ने की जरूरत
Posted on 04 Sep, 2015 02:02 PM

विश्व साक्षरता दिवस 08 सितम्बर 2015 पर विशेष


ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में नई-नई चुनौतियाँ खड़ी हो रही हैं। कुछ ऐसी चुनौतियाँ जिनका समाधान हमें पारम्परिक ज्ञान से मिलने में दिक्कत आ रही है। ऐसी ही एक समस्या या संकट जल की उपलब्धता का है। वैसे ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में कम-से-कम दो हजार साल का ज्ञात इतिहास हमारे पास है। दृश्य और लौकिक जगत में अपने काम की लगभग हर बात के पता होने का हम दावा करते हैं। लेकिन जल से सम्बन्धित ज्ञान-विज्ञान का पर्याप्त पाठ्य हमें मिल नहीं रहा है।

जल प्रबन्धन पर पारम्परिक और आधुनिक प्रौद्योगिकी जरूर उपलब्ध है लेकिन पिछले दो दशकों में बढ़ा जल संकट और अगले दो दशकों में सामने खड़ी दिख रही भयावह हालत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सामने बिल्कुल नई तरह की चुनौती खड़ी कर दी है।

हालांकि जागरूक समाज का एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा जल संकट को लेकर पिछले एक दशक से वाटर लिटरेसी यानी जल शिक्षा या जल जागरुकता की मुहिम चलाता दिख जरूर रहा है लेकिन नतीजे के तौर पर देखें तो ऐसे आन्दोलन का कोई असर नजर नहीं आया।
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