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दिल्ली
वाटरशेड प्रबन्ध और पर्यावरणी खतरे (Watershed Management and Environmental Hazards)
Posted on 04 Dec, 2017 04:48 PM
प्राकृतिक घटकों के ह्रास से निजात पाने के लिये भारत में बहुत सारी योजनाओं पर काम हुआ है। उन योजनाओं के घोषित लक्ष्य और उपचारित इलाके भले ही अलग-अलग रहे हैं पर उन सबके अन्तर्गत किये जाने वाले कामों का केन्द्र बिन्दु मौटे तौर पर पानी और मिट्टी की बिगड़ती हालत को ठीक करना ही रहा है।

पर्यावरणी प्रवाह - जीवन का अधिकार माँगती नदियाँ (Environmental flow- Rivers waiting for Rights of living entity)
Posted on 11 Nov, 2017 12:49 PM
न्यूनतम पर्यावरणी प्रवाह, प्रत्येक स्वस्थ नदी का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार, प्रकृति ने, नदी तंत्र को अपने कछार की साफ-सफाई और जलीय जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों के निरापद जीवन को आधार प्रदान करने के लिये सौंपा है। इस विशेषाधिकार के कारण कछार सहित नदी तंत्र में असंख्य जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों का जीवन पलता है और वह अपने कुदरती दायित्वों को बिना किसी रुकावट के पूरा करती है।

टिकाऊ विकास के लिये नदी विज्ञान को समझना आवश्यक है
Posted on 18 Oct, 2017 01:52 PM
भारत की अधिकांश नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह में कमी अनुभव हो रही है। यह कमी हिमालय से निकलने वाली नदियों में थोड़ा कम तथा भारतीय प्रायद्वीप की नदियों में अधिक है। सूखे दिनों के प्रवाह में हो रही कमी को समग्रता में समझने के लिये नदी विज्ञान को जानना आवश्यक है। बायोडाइवर्सिटी की सुरक्षा के लिये उसे जानना आवश्यक है।

नदी परिचय - आइए नदी को जानें (Let's know the river)
Posted on 10 Oct, 2017 04:39 PM
प्रकृति द्वारा विकसित एवं लगातार परिमार्जित मार्ग पर बहते पानी की अविरल धारा ही नदी है। बरसात उसे जन्म देती है। वह सामान्यतः ग्लेशियर, पहाड़ अथवा झरने से निकलकर सागर अथवा झील में समा जाती है। इस यात्रा में उसे अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं। नदी और उसकी सहायक नदियाँ मिलकर नदी तंत्र बनाती है। जिस इलाके का सारा पानी नदी तंत्र को मिलता है, वह इलाका जल निकास घाटी (वाटरशेड) कहलाता है। नदी, जल निकास घाटी पर बरसे पानी को इकट्ठा करती है। उसे प्रवाह में शामिल कर आगे बढ़ती है। वही उसके पानी की समृद्धि का आधार होता है।

मानसून के प्रवेशद्वार पर नया रडार
Posted on 12 Jul, 2017 07:12 PMनई दिल्ली, 12 जुलाई (इंडिया साइंस वायर) : मौसमी गतिविधियों पर निगरानी के लिए हाल में देश में विकसित एक रडार की स्थापना केरल के कोचीन में की गई है, जो वायुमंडलीय अध्ययन संबंधी शोध कार्यों को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकता है।
नदी अस्मिता को मिले कानूनी अधिकार
Posted on 25 Mar, 2017 12:48 PM
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने लगभग तीन साल की अल्पावधि में मोहम्मद सलीम की जनहित याचिका पर नदियों के हित में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। यह फैसला उन्हें जीवित व्यक्ति का दर्जा देता है। यह फैसला विश्व जल दिवस के दो दिन पहले अर्थात 20 मार्च 2017 को आया है। इस फैसले ने एक ओर यदि नदियों को उनकी अस्मिता एवं जीवन की रक्षा का कानूनी कवच पहनाया है तो समाज तथा नदी प्रेमियों को वर्ष 2017 का सबसे बड़ा तोहफा दिया है।
इस फैसले के बाद गंगा तथा यमुना को देश के नागरिकों की ही तरह वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे जो भारत के आम नागरिक को संविधान के अन्तर्गत मिले हैं। उन्हें प्रदूषित करना या हानि पहुँचाना अपराध की श्रेणी में आएगा। अब वे अनाथ नहीं होगी। इस फैसले ने उनके लिये तीन अभिभावक भी तय कर दिये हैं। अभिभावक हैं नमामि गंगे के महानिदेशक, उत्तराखण्ड राज्य के मुख्य सचिव और उत्तराखण्ड राज्य के ही महाधिवक्ता। जाहिर है गंगा तथा यमुना और उनकी सहायक नदियों के अभिभावकों को अदालत द्वारा प्रदत्त अधिकार दी गई कानूनी जिम्मदारी के बाद हालात बदलेंगे।

तालाब - समझने से ही बात बनेगी
Posted on 19 Feb, 2017 12:00 PM
भारत के लगभग हर गाँव हर बसाहट के आसपास तालाब मौजूद हैं। यहाँ तक कि अनेक विलुप्त तालाब भी समाज की स्मृति में जिन्दा हैं। उनके नाम गाँव, मोहल्लों के नामों तथा उपनामों में रचे-बसे हैं। आज भी भारत में सैकड़ों साल पुराने अनेक तालाब मौजूद हैं। अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ तथा सेंटर फॉर साईंस एंड एनवायरनमेंट, नई दिल्ली की किताब ‘बूँदों की संस्कृति’ में देश के विभिन्न भागों में मौजूद परम्परागत तालाबों का विवरण उपलब्ध है।
हमारे आसपास दो प्रकार के तालाब अस्तित्व में हैं। परम्परागत और आधुनिक तालाब। उन दोंनों प्रकार के तालाबों के अन्तर को समझने का मतलब है समस्याओं को बेहतर तरीके से स्थायी तौर पर सुलझाना।

भूजल रीचार्ज के मास्टर प्लान का नजरिया बदले तो बात बने
Posted on 11 Feb, 2017 04:22 PM
भारत सरकार के सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने देश के लगभग 941541 वर्ग किलोमीटर ऐसे इलाके की पहचान की है जो सामान्य बरसात के बावजूद, बाकी इलाकों की तरह, तीन मीटर तक नहीं भर पाता है। अर्थात उस इलाके में भूजल का स्तर तीन मीटर या उससे भी अधिक नीचे रहता है। यह स्थिति, उस इलाके के भूजल के संकट का मुख्य कारण है।
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड का मानना है कि, बरसात के मौसम में भूजल रीचार्ज के कृत्रिम तरीके को अपनाकर उस इलाके की खाली जगह को भरा जा सकता है। इस खाली जगह को भरने के लिये सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने भारत के लिये सन 2013 में भूजल रीचार्ज का मास्टर प्लान तैयार किया था। उस प्लान को इस अपेक्षा के साथ सभी राज्यों को भेजा था कि वे अगले दस सालों में मास्टर प्लान में सुझाए सभी कामों को पूरा कर लगभग 855650 लाख घन मीटर बरसाती पानी को जमीन के नीचे उतारेंगे।

नदी में प्रवाह होगा तभी तो सफाई होगी
Posted on 24 Jan, 2017 01:48 PM
वाटर सेक्टर की 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती जलस्रोतों की निरापद सफाई है। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध से जलस्रोतों में इको-सिस्टम की बर्बादी, बढ़ती गन्दगी, बढ़ता अतिक्रमण और घटती क्षमता के पुख्ता संकेतों का मिलना शुरू हो गया था। वैज्ञानिकों ने उनका अध्ययन और इंजीनियरों ने बढ़ती गन्दगी को कम करने की दिशा में काम करना प्रारम्भ कर दिया था।
सबसे पहले, सन 1986 में गंगा को साफ करने का प्रयास प्रारम्भ हुआ। इस हेतु गंगा के किनारे बसे सबसे अधिक प्रदूषित 25 स्थानों पर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए। अगस्त 2009 में यमुना, महानदी, गोमती और दामोदर नदी की सफाई को जोड़कर गंगा एक्शन प्लान का दूसरा चरण प्रारम्भ हुआ। पर बात नहीं बनी।
