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दिल्ली
प्राकृतिक जलचक्र के संकट को तलाश है समाधान की
Posted on 24 Nov, 2016 04:43 PMकुदरत ने पृथ्वी पर 1300 करोड़ साल पहले प्राकृतिक जलचक्र की स्थापना की थी। तब से वह पृथ्वी पर संचालित है। कुदरत ने ही उसके लिये पानी की आवश्यक मात्रा का बन्दोबस्त किया है। कुदरत ने ही उसके स्वभाव को निर्मल और फितरत को घुमक्कड़ बनाया है। सभी लोगों की नजर में वह, कुदरत की नियामत और अनमोल प्राकृतिक संसाधन है। हवा के बाद, वह दूसरा प्राकृतिक संसाधन है जो जीवन की निरन्तरता के लिये जरूरी है। कुदरती

पृथ्वी पर पानी
Posted on 17 Nov, 2016 04:13 PMपृथ्वी पर पानी, प्राकृतिक जलस्रोतों तथा मनुष्यों द्वारा बनाई संरचनाओं में मिलता है। प्राकृतिक जलस्रोतों में समुद्र, बादल, वर्षा, बर्फ की चादरें एवं हिमनदियाँ, दलदली भूमि, नदी, झरनों सहित भूजल भण्डार और गर्म पानी के सोते प्रमुख हैं। मानव निर्मित जल संरचनाओं में तालाब, तडाग, पोखर, जलाशय, सरोवर, पुष्कर, पुष्करणी, कुआँ, बावड़ी, वापी, बाँध, बैराज, नलकूप और स्टॉपडैम इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

पानी की उत्पत्ति
Posted on 01 Nov, 2016 11:48 AM
कितना सुपरिचित नाम है पानी। जन्म से ही हमारा उससे नाता है। पैदा होते ही बच्चे को दाई पानी से नहलाती है। बचपन में सभी ने पानी में खूब मस्ती की है। सभी लोग उसे रोज काम में लाते हैं। बरसात में वह बूँदों का उपहार देकर धरती को हरी चुनरी की ओढ़नी ओढ़ाता है। उसका शृंगार करता है।
नदी, तालाबों तथा झरनों को जीवन देता है। शीत ऋतु में हरी घास के बिछौने, पत्तियों की कोरों और फूलों की पंखुड़ियों पर ओस कणों के रूप में उतर कर मन को आनन्दित करता है। बाढ़ तथा सुनामी बनकर आफत ढाता है तो प्यास बुझा कर समस्त जीवधारियों के जीवन की रक्षा करता है। वह जीवन का आधार है। वह, धरती के बहुत बड़े हिस्से पर काबिज है। उसके विभिन्न रूपों (द्रव, ठोस तथा भाप) से सभी बखूबी परिचित हैं।

नदी जल विवादों का स्थायित्व और निरापद भविष्य
Posted on 15 Oct, 2016 11:40 AM
नदी जल विवाद चाहे वे अन्तरराष्ट्रीय हों या अन्तरराज्यीय, उनके समाधानों की तो खूब चर्चा होती है पर समाधानों के स्थायित्व और उनकी निरापदता की चर्चा नहीं होती। वह (स्थायित्व एवं निरापदता) समाधान सम्बन्धी विचार गोष्ठियों में चर्चा का मुख्य बिन्दु भी नहीं होता। इस कमी या अनदेखी के कारण, सामान्य व्यक्ति के लिये नदी जल विवादों के समाधानों के टिकाऊपन और वास्तविक असर को समझ पाना बेहद कठिन होता है।
यह अनदेखी, मुख्य रूप से जल्दी-से-जल्दी फैसले पर पहुँचने की उत्कट इच्छा और पानी की लगातार बढ़ती माँग का परिणाम होती है। अब समय आ गया है जब हमें आवंटित पानी के उपयोग की टिकाऊ और निरापद रणनीति विकसित करने और उस पर अमल करने की आवश्यकता है।

नीर, नारी, नदी सम्मेलन में जल योद्धाओं की माँग- सरकार बनाए नदी पुनर्जीवन नीति
Posted on 29 Sep, 2016 10:15 AM
इस वर्ष मानसून सामान्य रहा। बारिश भी खूब हुई। इसके बावजूद देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। एक ओर कर्नाटक का बहुत बड़ा हिस्सा सूखे से प्रभावित है, वहीं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं बस्ती मण्डल में वर्षा के अभाव में धान की फसल नष्ट हो रही है। महाराष्ट्र के कई इलाकों में भी इस वर्ष सूखे के हालात हैं।

मौत बाँटता आर्सेनिक
Posted on 27 Sep, 2016 03:40 PMउत्तर प्रदेश के बलिया समेत कई जिलों में आर्सेनिक का प्रकोप कोई घटना नहीं है, लेकिन अब हालात बदतर होते जा रहे हैं और स्वास्थ्य सेवाओं की ओर प्रशासन का जरा भी ध्यान नहीं है। अठारह वर्ष के देव कुमार चौबे पिछले पाँच साल से हर रोज किसी-न-किसी डॉक्टर के पास जा रहे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के हरिहरपुर गाँव के रहने वाले देव कुमार के पूरे बदन पर

स्वच्छ जल बचाए संक्रमण से
Posted on 27 Sep, 2016 02:59 PMबरसात का मौसम वह समय है, जब दूषित पानी और मच्छरों का संक्रमण बढ़ जाता है। मलेरिया से लेकर पेचिस, हैजा और दस्त जैसी बीमारियाँ अपना पैर पसारने लगती हैं।

भूकम्प से कैसे निपटें (How to deal with Earthquake in Hindi)
Posted on 22 Aug, 2016 02:50 AMभूकम्प का पूर्वानुमान सम्भव नहीं
भूकम्प एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका पूर्वानुमान सम्भव नहीं है। विज्ञान की तमाम आधुनिक सुविधाओं के बावजूद भूकम्प आने के समय, भूकम्प के असर का दायरा और तीव्रता बताना मुश्किल है।
बीबीसी को दिये गये अपने एक बयान में प्रो. चंदन घोष बताते हैं कि जब कोई भूकम्प आता है तो दो तरह के वेव निकलते हैं। एक को प्राइमरी वेव कहते हैं और दूसरे को सेकेन्ड्री वेव कहते हैं।
प्राइमरी वेव की गति औसतन 6 कि.मी. प्रति सेकेन्ड की होती है जबकि सेकेन्ड्री वेव औसतन 4 कि.मी. प्रति सेकेन्ड की रफ्तार से चलती है। इस अन्तर के चलते हरेक 100 कि.मी. पर 8 सेकेन्ड का अन्तर हो जाता है। यानि भूकम्प केन्द्र से 100 कि.मी. दूरी पर 8 सेकेन्ड पहले पता चल सकता है कि भूकम्प आने वाले है।

पौधारोपण को बनाएँ जन आन्दोलन – प्रधानमंत्री मोदी
Posted on 20 Aug, 2016 04:44 PMमन की बात 31 जुलाई 2016
