पर्यावरणी प्रवाह - जीवन का अधिकार माँगती नदियाँ (Environmental flow- Rivers waiting for Rights of living entity)

रावी नदी
रावी नदी


न्यूनतम पर्यावरणी प्रवाह, प्रत्येक स्वस्थ नदी का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार, प्रकृति ने, नदी तंत्र को अपने कछार की साफ-सफाई और जलीय जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों के निरापद जीवन को आधार प्रदान करने के लिये सौंपा है। इस विशेषाधिकार के कारण कछार सहित नदी तंत्र में असंख्य जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों का जीवन पलता है और वह अपने कुदरती दायित्वों को बिना किसी रुकावट के पूरा करती है।

उदाहरण के लिये कहा जा सकता है कि यदि कुदरत ने नदी का संविधान लिखा होता तो उसकी भूमिका में न्यूनतम पर्यावरणी प्रवाह का उल्लेख, निश्चित ही नदी के मौलिक अधिकारों अर्थात जीवन के अधिकारों के रूप में होता। उसका अन्त कुदरत की व्यवस्था का अन्त होता है।

पूरी दुनिया के वैज्ञानिक, विभिन्न कारणों से नदियों में पर्यावरणी प्रवाह की बारहमासी मौजूदगी की पुरजोर पैरवी करते हैं। उनके अनुसार, पर्यावरणी प्रवाह, नदी में पानी की वह न्यूनतम मात्रा है जो हर परिस्थिति में अनिवार्य रूप से नदी में बहना ही चाहिए।

इस अनुक्रम में नदियों का बारहमासी पर्यावरणी प्रवाह हकीकत में जीवनरक्षक प्रवाह भी है। इसके अतिरिक्त, उस प्रवाह को नदी की बारहमासी अविरलता या नदी की अस्मिता से भी जोड़कर देखा जा सकता है। उसके बिना नदी की कल्पना करना व्यर्थ है। वह शरीर में प्राण की तरह है।

पर्यावरणी प्रवाह की आवश्यकता को सबसे पहले सन 1940 के अन्तिम वर्षों में अमेरिकन वैज्ञानिकों द्वारा पहचाना गया। उसके बाद, मछलियों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों द्वारा सिद्दत से उसकी पैरवी की गई और अनुसन्धानकर्ताओं ने उसे आगे बढ़ाया। उस पैरवी में सैमन और ताजे पानी की मछलियों (Salmon – a large silver scaled fish and Trout – a fresh water fish) की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण रही है। धीरे-धीरे इस अध्ययन में अनेक विषय जुड़ते गए।

उन अध्ययनों ने स्थापित किया कि नदियों में उद्गम से लेकर समुद्र तक के मार्ग तथा उनके बाढ़-क्षेत्र के वेटलैंडों (नम इलाकों) में सम्पन्न होने वाली इकोलॉजिकल प्रक्रियाओं के लिये पर्यावरणी प्रवाह की आवश्यकता है। इसलिये उसे किसी भी परिस्थितियों में लक्ष्मण रेखा या न्यूनतम स्तर के नीचे नहीं जाना चाहिए। उसका लक्ष्मण रेखा के नीचे उतरना नदी तंत्र के लिये उतना ही घातक है जितना मनुष्यों के लिये कोमा में चले जाना।

वैज्ञानिक बताते हैं कि इकोलॉजिकल प्रक्रियाओं का सम्बन्ध बाढ़ के असर को कम करने, नदी के पानी की अपने आप साफ-सफाई, मछली उत्पादन और खाद्य पदार्थों जैसी कुछ महत्त्वपूर्ण सेवाओं से है। इस कारण प्रवाह की अविरलता और उसकी सुरक्षा को नदी तंत्र के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस कारण आधुनिक युग में उसका महत्त्व लगातार बढ़ रहा है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि नदियों के प्रवाह की घट-बढ़ का सम्बन्ध उसके कछार के मौसम, उसके पैटर्न, उसकी अवधि और बाढ़ की विभीषिका या सूखे के समय की वस्तुस्थिति जैसे कुदरती घटकों पर निर्भर होता है। नदियों के प्रवाह की घट-बढ़, हर नदी के लिये अलग-अलग होती है। पहले यह घट-बढ़ कुदरती होती थी पर अब, उस कुदरती घट-बढ़ के सामने बढ़ते मानवीय हस्तक्षेपों और जलवायु की उथल-पुथल ने गम्भीर संकट खड़ा कर दिया है। यह संकट साल-दर-साल बढ़ रहा है। इस वैश्विक एवं बहुआयामी संकट के कुप्रभावों से बचने के लिये हर देश में न्यूनतम पर्यावरणी प्रवाह को परिभाषित करने और उसे टिकाऊ बनाने की पैरवी हो रही है। भारत में भी उसकी शुरुआत हुई है।

नदियों के बदलते तथा बिगड़ते इकोसिस्टम के कारण पर्यावरणी प्रवाह के आकलन (Environmental Flow Assessment) का सिलसिला प्रारम्भ हुआ। वैज्ञानिकों ने पर्यावरणी प्रवाह के आकलन के लिये अनेक विधियों का विकास किया है। हर साल उसमें अनेक नई-नई विधियाँ जुड़ रही हैं। पुरानी विधियाँ परिमार्जित हो रही हैं। उन विधियों का उद्देश्य, हमें, नदी के प्रत्येक हिस्से के जलीय इकोसिस्टम की सलामती के लिये साफ पानी के न्यूनतम प्रवाह की आवश्यकता से परिचित कराना है। अर्थात यह तथ्य अच्छी तरह रेखांकित करना है कि नदी तंत्र में साल भर, कम-से-कम कितना पानी प्रवाहित होना चाहिए ताकि उसका इकोसिस्टम सुरक्षित बना रहे। इस एक्सरसाइज में वृहत नदी तंत्र की उन इष्टतम या स्वीकार्य छोटी इकाइयों को पहचानने, जीवन रक्षक प्रवाह तय करने तथा प्रवाह सुनिश्चित करने की भी है। इस कारण अब कुछ चर्चा उन आयामों की।

हम सबको पता है कि धरती पर बरसा पानी छोटी-छोटी नदियों के मार्फत बड़ी नदियों में पहुँचता है। वही पानी एकत्रित हो बाढ़ पैदा करता है पर बरसात की समाप्ति के बाद, कछार की धरती की उथली परतों से बाहर आया पर्याप्त भूजल, लगभग आठ माह तक नदियों के प्रवाह की निरन्तरता को सुनिश्चित करता है। छोटी नदियों के मार्फत आगे बढ़ने वाला यही प्रवाह अन्ततः उस नदी परिवार की सबसे बड़ी नदी को मिलता है। इस प्रवाह के कम होने से नदी के पर्यावरणी प्रवाह पर संकट पनपता है।

आल इण्डिया स्वायल एंड लैंड यूज सर्वे (AISLUS), कृषि मंत्रालय, भारत सरकार ने देश के सभी नदी-तंत्रों का समावेश करते हुए वाटरशेड एटलस आफ इण्डिया प्रकाशित किया है। उस एटलस के अनुसार देश में मात्र 06 जल संसाधन क्षेत्र (water resource region) हैं। उन जल संसाधन क्षेत्रों को मय नदी घाटियों के, नीचे दिये नक्शे में दर्शाया गया है-

वाटरशेड एटलस आफ इण्डिया के अनुसार भारत में 06 जल संसाधन क्षेत्र हैं। उन जल संसाधन क्षेत्रों के अन्तर्गत 36 नदी घाटियाँ स्थित हैं। उन 36 नदी घाटियों में 36 प्रमुख नदियाँ बहती हैं। उन 36 नदियों की सहायक नदियों की संख्या 112 है। उन 112 नदियों की सहायक नदियों की संख्या लगभग 500 तथा उन 500 नदियों की सहायक नदियों की संख्या लगभग 3237 है। उल्लेखित नदियाँ उत्तरोत्तर छोटी होती सहायक नदियों के क्रम में हैं।

जल संसाधन क्षेत्रों में प्रवाह की हकीकत का अध्ययन करने से पता चलता है कि प्रवाह की कहानी सबसे छोटी नदी इकाई से प्रारम्भ होकर सबसे बड़ी नदी पर समाप्त होती है। इन जल संसाधन क्षेत्रों की नदियों के अध्ययन से जो दूसरी बात सामने आती है उससे पता चलता है कि इन जल संसाधन क्षेत्रों की कोई भी नदी, पर्यावरणी प्रवाह की आपूर्ति के लिये भी, किसी अन्य नदी से, पानी की अदला-बदली नहीं करती।

भारतीय नदियों में पर्यावरणी प्रवाह का मुद्दा 6 जल संसाधन क्षेत्रों या 36 नदी घाटियों या 112 कैचमेंटों की मुख्य नदियों पर समाप्त नहीं होता। वह उन नदियों पर भी समाप्त होता जिन पर कई परियोजना प्रस्तावित हैं। उसका सम्बन्ध उनकी उत्तरोत्तर छोटी होती इकाइयों में स्थित नदियों से भी है। सबसे अधिक खराब हालत वाटरशेडों से होकर बहने वाली 3237 नदियों तथा उनकी सहायक नदियों की है।

इस अनुक्रम में सबसे पहले न्यूनतम पर्यावरणी प्रवाह को सभी 3237 इकाइयों की मुख्य नदियों के लिये निर्धारित होना चाहिए। उसके बाद उत्तरोत्तर बढ़ते क्रम की 500, 112 और 36 मुख्य नदियों के लिये निर्धारित होना चाहिए। उसे सुनिश्चित करने के लिये काम करना चाहिए। जल प्रबन्ध होना चाहिए। मौजूदा व्यवस्था को कारगर बनाना चाहिए। प्रकृति के अनुकूल बनाना चाहिए। इस व्यवस्था से भारत में पर्यावरणी प्रवाह सुनिश्चित हो सकेगा। इस क्षेत्र में हमें लम्बी छलांग लगाने की आवश्यकता है।

 

 

 

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