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मौसम क्या है?
Posted on 11 Jul, 2011 04:53 PM

पृथ्वी द्वारा वापस भेजी जाने वाली ऊर्जा को पहले पृथ्वी पर ही काफी “कार्य” करना पड़ता है तब वह

मन की मैल से गंगा मैली
Posted on 11 Jul, 2011 10:11 AM

अगर गंगा को स्वच्छ करना है तो पहले दृष्टि बदलनी होगी। उसके लिए धन जुटाने की नहीं, मन बनाने की आवश्यकता है। गंगा की अस्वच्छता को पर्यावरण और स्वास्थ्य वाली भौतिकवादी दृष्टि से देखना छोड़ना होगा। उसके दूषण के लिए मूलतः बढ़ती आबादी, उद्योगों और शहरों का विस्तार, दाह-संस्कार की प्रथा आदि को प्राथमिक दोषी ठहराना भी सही नहीं है।

दो सप्ताह पहले आधिकारिक तौर पर घोषणा की गई कि सन् 2020 तक गंगा में शहरी गंदगी और औद्योगिक कचरा गिराना पूरी तरह बंद हो जाएगा। इसके लिए विश्व बैंक से एक अरब डॉलर की सहायता मिलने का करार हुआ है। प्रश्न है कि क्या धन की कमी के चलते गंगा मैली होती गई है? अपने घर के पूजा-घर की गंदगी भी हम अपने श्रम या साधन से दूर न कर सकें तो इससे विचित्र बात क्या हो सकती है। किस तरह की प्रगति या विकास कर रहे हैं हम, यह भी सोचने की बात है। मगर पहले इस पर विचार करें कि पिछले पच्चीस वर्षों में गंगा सफाई अभियान में जितना खर्च हुआ, उससे क्या निकला है। सन् 1985 में शुरू हुई गंगा कार्य योजना प्रायः विफल रही, जबकि उसमें आठ सौ सोलह करोड़ रुपए से अधिक धन खर्च किया जा चुका है। इसकी ईमानदार समीक्षा के बिना यह नई योजना भी वैसी ही साबित होगी। यह तो एक यांत्रिक, भौतिकवादी, नौकरशाही, आलसी समझ है कि किसी कार्य के लिए धन का आबंटन कर देने मात्र से फल प्राप्त हो सकता है।
मानसून की बिगड़ी चाल
Posted on 08 Jul, 2011 11:50 AM

जून से सितंबर के बीच बारिश कम होने का सीधा अर्थ है इस मौसम की फसलों पर असर पड़ना। इस मौसम में

मानव जीवन में मौसम का महत्व
Posted on 06 Jul, 2011 01:14 PM

मौसम चाहे कितना ही सुखद क्यों न हो, यदि वह लगातार कई सप्ताहों तक एक-सा बना रहता है तब भी लोग उस

जल, जोत और जीवन..
Posted on 06 Jul, 2011 09:15 AM

21वीं सदी में दूसरी हरित क्रांति लानी हो तो अ-सिंचित क्षेत्रों की प्रमुखता, जल संचयन तकनीकी और

जलभराव से कैसे मिले छुटकारा
Posted on 05 Jul, 2011 03:13 PM

मानसून की आहट के साथ ही पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में छिटपुट बारिश क्या हुई कि साथ-साथ मुसीबत आ गयी। गर्मी से निजात के आनंद की कल्पना करने वाले लोग सड़कों पर पानी भरने से ऐसे दो-चार हुए कि अब बारिश के नाम से ही डर रहे हैं। बारिश के मौसम में यह हालत केवल दिल्ली की ही नहीं बल्कि कमोबेश हर शहर की है। बरसात में ऐसा ही होता है। सड़कों पर पानी के साथ वाहनों का सैलाब और दिन बीतते-बीतते पानी के लिए त्

जल भराव
जरूरत जो बन गई मुसीबत
Posted on 05 Jul, 2011 11:36 AM रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक इस तरह रच-बस गया है कि उससे पूरी तरह छुटकारा पाना कठिन है। यह जितना उपयोगी है उतना ही नुकसानदेह। प्लास्टिक की व्यापकता और इससे मुक्ति के उपायों का जायजा ले रही हैं गायत्री आर्य।

प्लास्टिक का इतने लंबे समय तक न गलना सबसे बड़ी परेशानी का कारण है। इसी कारण इसे न तो जमीन में गाड़ा जा सकता, न ही हवा में उड़ते छोड़ा जा सकता, न ही पानी में तैरते छोड़ा जा सकता, न ही जलाया जा सकता है, क्योंकि इसे जलाने से जहरीले तत्त्व हवा में घुलते हैं। प्लास्टिक का यह लगभग ‘अमर रूप’ न सिर्फ इंसानों का जीवन संकट में डाल रहा है बल्कि जानवरों को भी मौत के घाट उतार रहा है।

बारिश के कारण 2009 में मुंबई में जो तबाही मची थी उसके लिए काफी हद तक पॉलिथीन से अटी पड़ीं नालियां और नाले जिम्मेदार थे। इंसानी सभ्यता की वाहक नदियां अब पॉलिथीन और दूसरे प्लास्टिक के कचरे से अटी पड़ी हैं। इंसानों और जीवों के जीवनदायी नदी, झील, तालाब, समुद्र प्लास्टिक के कचरे को ढोने वाले बनकर ही रह जाएंगे। सस्ता, हल्का, टिकाऊ, मजबूत, कम जगह घेरने वाला, लोचदार, हर तरह के सामान को ले जा सकने वाला, तापरोधी जैसी खासियतों के साथ प्लास्टिक एक बहुउपयोगी और बहुउद्देशीय वस्तु की तरह जहन में आता है। फिर ऐसा क्या है कि पूरी दुनिया में इस बहुउपयोगी चीज के प्रति
कुछ बड़ी परियोजनाओं के सफल प्रयोग
Posted on 02 Jul, 2011 11:13 AM

अंतरबेसिन जल स्थानांतरण द्वारा सिंचाई, बाढ़ की रोकथाम और जल प्रबंधन के प्रयास इससे पहले भी किए गए हैं। देश और विदेश में ऐसे सफल प्रयोगों द्वारा जनजनित समस्याओं को दूर करके खुशहाल जीवन जिया जा रहा है।
 

प्रस्तावित नदी जोड़ परियोजना (National River Linking Project)
Posted on 02 Jul, 2011 10:44 AM

एनडब्लूडीए के नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के तहत हिमालयी और प्रायद्वीपीय क्षेत्र की चिह्नित नदियों एवं स्थानों को कुल 30 नहरों द्वारा आपस में जोड़ा जाना है। इनमें हिमालयी क्षेत्र में 14 और प्रायद्वीपीय क्षेत्र में 16 संयोजक नहरें शामिल हैं।

नदी जोड़ो परियोजना
थम न जाए धारा
Posted on 02 Jul, 2011 10:14 AM

देश की जल समस्या के लिए नदी जोड़ने का नुस्खा डेढ़ सौ साल से भी पुराना है, लेकिन इस नुस्खे की पेचीदगियों ने हर बार ऐसी किसी भी कोशिश का रास्ता रोका है। इस कोशिश का सबसे बड़ा अवरोध पर्यावरण को होने वाला नुकसान है। नदियों को जोड़ना चाहिए या नहीं, जोड़ें तो कैसे व कितना और किस कीमत पर, ऐसे ढेरों सवाल नदियों के जोड़े जाने की कवायद पर मंडराते रहते हैं। करीब एक दशक पहले जब राजग सरकार के समय नदियों को

नदी जोड़ो परियोजना पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध होगा
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