गायत्री आर्य

गायत्री आर्य
जरूरत जो बन गई मुसीबत
Posted on 05 Jul, 2011 11:36 AM
रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक इस तरह रच-बस गया है कि उससे पूरी तरह छुटकारा पाना कठिन है। यह जितना उपयोगी है उतना ही नुकसानदेह। प्लास्टिक की व्यापकता और इससे मुक्ति के उपायों का जायजा ले रही हैं गायत्री आर्य।

प्लास्टिक का इतने लंबे समय तक न गलना सबसे बड़ी परेशानी का कारण है। इसी कारण इसे न तो जमीन में गाड़ा जा सकता, न ही हवा में उड़ते छोड़ा जा सकता, न ही पानी में तैरते छोड़ा जा सकता, न ही जलाया जा सकता है, क्योंकि इसे जलाने से जहरीले तत्त्व हवा में घुलते हैं। प्लास्टिक का यह लगभग ‘अमर रूप’ न सिर्फ इंसानों का जीवन संकट में डाल रहा है बल्कि जानवरों को भी मौत के घाट उतार रहा है।

बारिश के कारण 2009 में मुंबई में जो तबाही मची थी उसके लिए काफी हद तक पॉलिथीन से अटी पड़ीं नालियां और नाले जिम्मेदार थे। इंसानी सभ्यता की वाहक नदियां अब पॉलिथीन और दूसरे प्लास्टिक के कचरे से अटी पड़ी हैं। इंसानों और जीवों के जीवनदायी नदी, झील, तालाब, समुद्र प्लास्टिक के कचरे को ढोने वाले बनकर ही रह जाएंगे। सस्ता, हल्का, टिकाऊ, मजबूत, कम जगह घेरने वाला, लोचदार, हर तरह के सामान को ले जा सकने वाला, तापरोधी जैसी खासियतों के साथ प्लास्टिक एक बहुउपयोगी और बहुउद्देशीय वस्तु की तरह जहन में आता है। फिर ऐसा क्या है कि पूरी दुनिया में इस बहुउपयोगी चीज के प्रति
×