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जल स्वराज अभियान में भागीदारी करें
Posted on 30 Jun, 2011 09:25 AM यमुना, गए एक हजार वर्षों में नौ विभिन्न राजवंशो की राजधानी रही दिल्ली की जीवनदायिनी बनी रही है, किन्तु बेपरवाही और अनियंत्रित विकास के कुछ ही दशकों में अब यह गन्दे नाले में तब्दील हो गई है। अब ऐसे हजारों तालाबों, झीलों, और जोहड़ों का अस्तित्व नहीं रहा, जिनमें बरसात का पानी जमा होता था। भूमि के ऊपरी तल का पानी गायब हो गया या प्रदूषित होकर रह गया है। अब स्थिति यह है कि निचली सतह का पानी निकालने की ह
क्यों होती है कम या ज्यादा बरसात
Posted on 28 Jun, 2011 08:38 AM बच्चों, बारिश कैसे आती है, यह जानने से पहले यह याद रखो कि हवाएं हमेशा उच्च वायुदाब से कम वायुदाब वाले इलाके की ओर चलती हैं। गर्मी के दिनों में भारत के उत्तरी मैदान और प्रायद्वीपीय पठार भीषण गर्मी से तपते हैं और यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इसके उलट दक्षिण में हिंद महासागर ठंडा रहता है। ऐसी भीषण गर्मी के कारण ही महासागर से नमी लेकर हवाएं भारत के दक्षिणी तट से देश में प्रवेश करती हैं।
पहाड़ी नदी की ध्वनि
Posted on 25 Jun, 2011 09:46 AM

रात भर बारिश टिन की छत को किसी ढोल या नगाड़े की तरह बजाती रही। नहीं, वह कोई आंधी नहीं थी। न ही वह कोई बवंडर था। वह तो महज मौसम की एक झड़ी थी, एक सुर में बरसती हुई। अगर हम जाग रहे हों तो इस ध्वनि को लेटे-लेटे सुनना मन को भला लगता है, लेकिन यदि हम सोना चाहें तो भी यह ध्वनि व्यवधान नहीं बनेगी। यह एक लय है, कोई कोलाहल नहीं। हम इस बारिश में बड़ी तल्लीनता से पढ़ाई भी कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि बाहर

दस साल से 29 जून को नहीं पहुंचा है मानसून
Posted on 24 Jun, 2011 09:39 AM

भीषण गर्मी से व्याकुल हैं लोग

पानी चोर कहां से आए!
Posted on 23 Jun, 2011 12:08 PM

विकास की इस आंधी ने बहुत कुछ किया। मनुष्य के जीवन को आसान किया लेकिन कितना अनिश्चित कर दिया!

‘लो’ कार्बन के साथ ‘लो’ वॉटर इकॉनमी भी जरूरी
Posted on 23 Jun, 2011 11:17 AM

‘लो’ वॉटर इकॉनमी का अर्थ है, पानी को कम खर्च करना और उसका दोबारा इस्तेमाल करना। इसके पीछे यह सिद्धांत है कि पर्यावरण में प्राकृतिक अवस्था में जितना भी पानी है, उसे जहां तक संभव है बचाया जाए। पानी की हर बूंद का दोबारा इस्तेमाल किया जाए।

पानी के बिना जीवन की कल्पना मुश्किल है। गर्मियों के मौसम में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है और यही वह समय होता है, जब इसकी सबसे ज्यादा किल्लत होती है। भारतीय उपमहाद्वीप की भीषण गर्मी के बीच हर साल मानसून में हम अच्छी बारिश की कामना करते हैं। हमारे जल स्रोत बहुत हद तक बारिश पर निर्भर करते हैं। वैसे पानी की कमी सिर्फ गर्मियों की समस्या नहीं है। अगर पिछले दशक का सारा संघर्ष तेल को लेकर था, तो बेशक यह दशक पानी के नाम रहने वाला है। धरती पर पानी तेजी से खत्म हो रहा है और जो उपलब्ध है, वह भी अच्छी क्वालिटी का नहीं है।

लुप्त होते जा रहे हैं तालाब
Posted on 23 Jun, 2011 10:43 AM

पानी और पनिहारिन का बहुत पुराना नाता रहा है जो अब खत्म हो गया है। सच तो यह है कि तालाबों के कि

आज भी खरे हैं तालाब (पोस्टर)
Posted on 22 Jun, 2011 05:42 PM अनुपम मिश्र की कालजयी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ में हम सीता बावड़ी का एक चित्र देखते हैं।
समुद्री तटों का संरक्षण जरूरी
Posted on 21 Jun, 2011 10:29 AM

भारत में भी समुद्र तटीय विकास को लेकर नई चेतना और दृष्टि की आवश्यकता है, क्योंकि सुनामी की विभी

पहले जंगल लगाएं, फिर पेड़ काटें
Posted on 21 Jun, 2011 10:12 AM

जंगल कटेंगे, तो पर्यावरण को क्षति होगी। जंगल नहीं कटेंगे, तो आर्थिक विकास रुकेगा। इस संकट का हल

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